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गुरुवार, 1 मार्च 2012

खेलो होली

घरवालों संग खेलो होली ,घरवाली संग खेलो होली
साला तो शैतान बहुत है ,तुम साली संग खेलो होली
जिनको सदा देखते हो तुम ,हसरत भरी हुई नज़रों से
जवां पड़ोसन ,प्यारी समधन,दिलवाली संग खेलो होली
यूँ तो सलहज सहज नहीं है,बस होली का ही मौका है,
कस कर पकड़ो रंग लगा,मतवाली के संग खेलो होली
लेकर रंग भरी पिचकारी,तन को इतना गीला करदो,
चिपके वस्त्र दिखे सब कुछ उस छवि प्यारी संग खेलो होली

होली आई रे

होली आई  रे  

फागुनी बयार चलने लगी है 
फागुन ऋतू आई है 
मोसम सुहाना होने लगा है 
डेसू के फूलों की लालिमा छाई है         




आगे पढ़ने के लिए  नीचे के लिंक पर जाइये /और अपने सन्देश जरुर दीजिये /आभार /
http://prernaargal.blogspot.in/2012/02/happy-holi.html

बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

अबीर गुलाल
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तेरा अबीर ,तेरी गुलाल,
सब लाल लाल, सब लाल लाल
उस मदमाती सी होली में
जब ले गुलाल की झोली मै
       आया तुम्हारा मुंह रंगने
तुम सकुचाई सी बैठी थी
कुछ शरमाई  सी बैठी थी
      मन में भीगे भीगे सपने
मैंने बस हाथ बढाया था
तुमको छू भी ना पाया था
      लज्जा के रंग  में डूब गये,
      हो गये लाल,रस भरे गाल
तेरा अबीर ,तेरी गुलाल
सब लाल लाल,सब लाल लाल
मेंहदी का रंग हरा लेकिन,
जब छूती है तुम्हारा  तन,
       तो लाल रंग आ जाता है
इन काली काली आँखों में,
प्यारी कजरारी आँखों में,
      रंगीन जाल छा जाता  है
चूनर में लाली लहक रही,
होठों पर लाली दहक  रही
     हैं खिले कमल से कोमल ये,
      रखना  संभाल,पग  देख भाल
तेरा अबीर,  तेरी गुलाल
सब लाल लाल,सब लाल

मदन मोहन बाहेती'घोटू'



मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

अबकी होली

अबकी होली में हो जाये,कुछ एसा अदभुत चमत्कार
 हो जाये भ्रष्टाचार स्वाहा, महगाई,झगड़े, लूटमार
सब लाज शर्म को छोड़ छाड़,हम करें प्रेम से छेड़ छाड़
गौरी के गोरे गालों पर ,अपने हाथों से मल गुलाल
जा लगे रंग,महके अनंग,हर अंग अंग हो सरोबार
इस मस्ती में,हर बस्ती में,बस जाये केवल प्यार प्यार
दुर्भाव हटे,कटुता सिमटे,हो भातृभाव का बस प्रचार
अबकी होली में हो जाये,कुछ एसा अदभुत चमत्कार

सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

बचपन

सोचा न था इस तरह चला जायेगा वो
इन्तजार कर लें चाहें जितना ,
पर अब लौट के न आयेगा वो ,
कभी रोता कभी हँसता ,मुस्कुराता हुआ शरारतों से भरा
इस तरह बिछड़ जायेगा वो,
मांगते रह जायेंगे हम, पर अब न मिल पायेगा वो
यादों की दुनिया में जाके चुप गया है इस तरह की ,
अब ढूँढने पर भी नजर नहीं आयेगा वो ,
उस बचपन को अब यादों में ही तलाशना ,
क्योकि इस जनम में तो दोबारा नहीं मिल पायेगा वो ,
वो बचपन जो बिछड़ गया है हमसे सदा के लिए ,
यादों की दुनिया में ही मुस्कुराएगा वो,
सोचा न था इस तरह चला जायेगा वो
इन्तजार कर लें चाहें जितना ,
पर अब लौट के न आयेगा वो |


                                        अनु डालाकोटी

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