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शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

उंगलियाँ

         उंगलियाँ
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अंगूठा बस दिखाने  के काम का,
                             काम में पर बहुत आती उंगलियाँ
बालपन में थाम उंगली बढों की,
                             खड़ा कर चलना सिखाती  उंगलियाँ
जवानी  में पकड़ उंगली,पहुंचे तक,
                               पहुँचने की   राह  दिखाती उंगलियाँ
पहन कर के सगाई की अंगूठी,
                                 प्यार बंधन में बंधाती उंगलियाँ    
बाद शादी,बीबियों के इशारों,
                                 पर पति को  है  नचाती  उंगलियाँ
बीबियों की उँगलियों में जादू है,
                                 चटपटा  खाना बनाती उँगलियाँ
स्वाद की मारी हमारी जीभ है,
                                 जी न भरता, चाट जाती उंगलियाँ
चार मौसम,तीन महीने हर एक के,
                                 बरस पूरा है दिखाती उंगलियाँ
बड़ी छोटी,सभी मिल कर साथ है,
                                  एकता हमको सिखाती उंगलियाँ
बंध गयी तो एक मुट्ठी बन गयी,
                                     चपत मिल कर है  लगाती  उंगलियाँ
   आत्म गर्वित पडोसी है अंगूठा,
                                      दूरियां  उससे  बनाती   उंगलियाँ
कुछ उठाने की अगर जरुरत पड़े,
                                      अंगूठे को साथ लाती   उंगलियाँ
  उंगली टेड़ी करने से घी निकलता,
                                      पाठ जीवन का सिखाती  उंगलियाँ
एक उंगली गर किसी को दिखाओ,
                                      तीन है तुमको दिखाती उंगलियाँ
चार उंगली ,चार दिन की जिंदगी,
                                       याद हरदम है  दिलाती उंगलियाँ


मदन मोहन बाहेती'घोटू'



       




       

गुरुवार, 19 जनवरी 2012

सोना तो सोना ही रहेगा


वक़्त की मार से
काला पड़ गया
मिटटी में दबा हुआ
लोहे का टुकडा
सदा सोचता था
कोई उसे मिटटी से निकाले
झाड पोंछ कर फिर से
काम आने लायक बना दे
किस्मत ने
उसे चमकते सोने का
साथ दे दिया
सोने का साथ मिलते ही
लोहा चमकने लगा
भ्रमित हो गया
अपने को
सोना समझने लगा
सपनों की
दुनिया में खोने लगा
राह से भटकने लगा  
निरंतर सोने का सानिध्य
चाहने लगा
भूल गया था
सैकड़ों हथोड़े खाया हुआ
कई बार तपाया गया
लोहे का टुकडा था
सोने के साथ कितना भी
चमक जाए 
लोहा ही रहेगा
एक दिन उसने सुन लिया
कोई कह रहा था
लोहा सोने के साथ
क्या कर रहा
तुरंत उसे याद आया
वो मात्र लोहे का टुकडा था
सोना तो सोना ही रहेगा
निरंतर चमकता रहेगा
जिसे के भी साथ रहेगा
उसकी कीमत बढ़ाएगा
सोच विचार के बाद
विनम्रता से सोने से बोला
मुझे भूलना नहीं
निरंतर साथ निभाना
दूर से ही सही
अपनी चमक से
नहलाते रहना 
ज़िन्दगी के हथोडों से
बचने का तरीका बताते रहना
कभी पथ से ना डिगने देना
मंजिल तक पहुंचाना
फिर से 
किसी लायक बन कर
किसी के काम आऊँ
ऐसी हिम्मत देते रहना 
अपना स्नेह बनाए
रखना
19-01-2012
65-65-01-12

न हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा तु इन्सान की औलाद है सैकुलर शैतान बनेगा

JAGO HINDU JAGO: जनरल VK Singh ji बचा सकते हो तो बचा लो हमें व हमार...: 1985 में अलकायदा की स्थापना ने बाद बाकी सारी दुनिया की तरह भारत में भी मुस्लिम जिहादियों को नये सिरे से संगठित होने का मौका मिला । जिसका प...

आठवीं मंजिल से भोंकता हुआ कुत्ता

  आठवीं मंजिल से  भोंकता हुआ कुत्ता
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गली में पट्टा
पर मन में,
स्वच्छंद विचरने की विकलता
रेलिंग से बंधा हुआ,
आठवीं  मंजिल से भोंकता हुआ कुत्ता
मन में छटपटाहट है
या शायद मालिकिन के आने की आहट है
दर्द है या ख़ुशी है
या कोई पीड़ा छुपी है
या जमीन का निरीह प्राणी ,
इतनी ऊँचाई पर पहुँच कर चौंक रहा है
और नीचे वालों को देख कर भोंक रहा है
सुबह ही तो मालकिन ने टहलाया था
अपने नरम नरम हाथों से,
उसके रेशमी बालों को सहलाया था
और खिलाये थे दूध और बिस्कुट
तो चुपचाप उसी प्रेम से अभिभूत
अपनी मालकिन को निहार रहा था
जाने क्या क्या विचार रहा था
प्यार  के उन चंद पलों ने,
उसे बना दिया है उम्र भर का गुलाम
पूंछ हिलाता रहता है ,सुबह शाम
क्या होगी उसकी मानसिकता
किसी अनजान को देख कर झपटता
आठवीं मंजिल से भोंकता हुआ कुत्ता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

वीरानियों में है कहीं आबाद कोई 
खामोशियों से दे रहा आवाज़ कोई 

हाँ मर गया दिल और दिल की ख्वाइशें
मुझमे मगर जिंदा रहा अहसास कोई 

टहलीं सड़क पर रात भर रानाइयां यूं
निकला बदन पर ओढ़ कर आकाश कोई

फिर ताजदारों से बगावत कर उठा दिल
दिल पर हुकुमत कर रहा बेताज कोई

फिर से दिल में ख्वाहिशें उगने लगी हैं
आँखों ने मेरी फिर से देखा ख्वाब कोई .......



रचनाकार :- कवि पंकज अंगार

ललितपुर, ऊ.प्र.)

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