(२००वीं पोस्ट)
किताबों के पन्ने यूँ पलटते हुए सोचते हैं,
यूँ आराम से पलट जाए जिन्दगी तो क्या बात हो ।
तमन्ना जो पूरी होती है सिर्फ ख्वाबों में,
एक दिन हकीकत बन जाए तो क्या बात हो ।
शरीफों की शराफत में भी जो न हो बात,
कोई मयकश ही वो कह जाए तो क्या बात हो ।
कुछ लोग अकसर मतलब के लिए ढूँढते हैं मुझे,
कोई बस हाल पुछने ही आ जाए तो क्या बात हो ।
कत्ल करके तो सब ले लेंगे जान मेरी,
कोई बस लुभा के ही ले जाए तो क्या बात है ।
जिंदगी रहने भर तो खुशियाँ लुटाता ही रहुँगा,
कोई मेरी मौत से भी खुश हो जाए तो क्या बात हो ।
(यह रचना मूल रूप से मेरी नहीं है | अच्छी लगी तो हल्का फुल्का सुधार के साथ यहाँ प्रस्तुत कर दिया )
किताबों के पन्ने यूँ पलटते हुए सोचते हैं,
यूँ आराम से पलट जाए जिन्दगी तो क्या बात हो ।
तमन्ना जो पूरी होती है सिर्फ ख्वाबों में,
एक दिन हकीकत बन जाए तो क्या बात हो ।
शरीफों की शराफत में भी जो न हो बात,
कोई मयकश ही वो कह जाए तो क्या बात हो ।
कुछ लोग अकसर मतलब के लिए ढूँढते हैं मुझे,
कोई बस हाल पुछने ही आ जाए तो क्या बात हो ।
कत्ल करके तो सब ले लेंगे जान मेरी,
कोई बस लुभा के ही ले जाए तो क्या बात है ।
जिंदगी रहने भर तो खुशियाँ लुटाता ही रहुँगा,
कोई मेरी मौत से भी खुश हो जाए तो क्या बात हो ।
(यह रचना मूल रूप से मेरी नहीं है | अच्छी लगी तो हल्का फुल्का सुधार के साथ यहाँ प्रस्तुत कर दिया )