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शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

एक कबूतर ---

एक कबूतर ---
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एक कबूतर आता जाता
मेरा फ्लेट सातवीं मंजिल पर बिल्डिंग की,
फिर भी ऊपर उड़ कर आता,ना इतराता
वही सादगी और भोलापन
मटकाता रहता है गरदन
अपनी वही गुटरगूं  करना
सहम सहम धीरे से चलना
कभी कभी जब होता प्यासा,
रखे गेलरी में पानी से भरे पात्र में,
चोंच डूबा,कुछ घूंटे भर कर प्यास बुझाता
एक कबूतर आता जाता
एक दिन उसके साथ आई थी एक कबूतरी
सुन्दर सी मासूम ,जरा सी भूरी भूरी
उसकी नयी प्रेमिका थी वो,
ढूंढ रहे थे वो तन्हाई
बैठ गेलरी के कोने में चोंच लड़ाई
इधर उधर ताका और झाँका,
प्यार जताया एक दूजे से
और प्रणय क्रीडा में थे वो लीन हो गए
फिर दोनों ने पंख फैलाये,फुर्र हो गए
देखा कुछ दिन बाद साथ में कबूतरी के,
चोंचे भर भर तिनके लाता
शायद निज परिवार बसाने,नीड़ बनाता
एक कबूतर आता जाता

मादा मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 9 नवंबर 2011

ग़ज़ल

ग़ज़ल
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जो कम बालों वाले या गंजे होते है
अक्सर उनकी जेबों में कंघे होते है
अपने घर में वो ताले लटका कर रखते,
जो धनहीन और भूखे नंगे होते है
प्रेम भाव,मिल जुल रहना ,सब धरम सिखाते,
नाम धरम का  ले फिर क्यों दंगे  होते है
जो कुर्सी पर बैठे ,वो ही बतलायेंगे,
कुर्सी के खातिर कितने पंगे होते है
हो दबंग कितने ही कोई,मर जाने पर,
दीवारों पर ,बन तस्वीर ,टंगे होते है
पांच साल तक ,शासन करते,पर चुनाव में,
वोट मांगते,नेता,भिखमंगे  होते है
इनकी सूरत मत देखो,फितरत ही देखो,
होते सभी सियार,मगर रंगे होते है
'घोटू' ज्यादा मत सोचो,मन में दुःख होगा,
वो खुश रहते,जिनके मन चंगे होते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

मंगलवार, 8 नवंबर 2011

ममता तुम कितनी निर्मम हो

ममता,तुम कितनी निर्मम हो
गाहे बगाहे,जब जी चाहे,
हमें डराती रहती तुम हो
ममता तुम कितनी निर्मम हो
तुम्हे पता,कितनी मुश्किल,पर
घेर लिया है सब ने मिल कर
आन्दोलन करते है अन्ना
पत्रकार है,सब चोकन्ना
भ्रष्टाचार और मंहगाई
काबू होती,नहीं दिखाई
रोज फूटते ,कांड नये है
साथी कई तिहाड़ गये है
मंहगाई हद लांघ गयी है
जनता भी अब जाग गयी है
फेल हो रहे,सभी दाव है
और अब तो सर पर चुनाव है
डगमग है कानून व्यवस्था
मै बेचारा,क्या कर सकता?
हालत बड़ी बुरी हम सबकी
ऊपर  से तुम्हारी धमकी
कहती ,गठबंधन छोडोगी
बुरे वक़्त में ,संग छोडोगी
अटल साथ भी यही किया था
बार बार तंग बहुत किया था
क्या है भेद तुम्हारे मन का
धर्म न जानो,गठबंधन का
शायद इसीलिए क्वांरी हो
पर पड़ती सब पर भारी हो
देखो एसा,कभी न करना
अब संग जीना है संग मरना
कोई किसी को ,दगा न देगा
जो चाहो,पैकेज  मिलेगा
मौका देख ,दिखाती दम हो
ममता तुम कितनी निर्मम हो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

सोमवार, 7 नवंबर 2011

सुरमई -सुबह


आँखें खुली ...
अँधेरा सा लगा 
कमरे से जब बहार आया 
सूरज की लाल -लाल किरणे मद्धम -मद्धम 
आसमान को निगल रहा था 
पड़ोस में 
संगीत की धुन कानो को झंझकृत कर रही थी 
सुबह सूरज 
मेरे नैनों को नई रह दिखा रही थी 
मेरा नन्हा "यज्ञेय " 
हंसते हुए ..... 
किलकारी ले रहा था 
वह सुबह मेरी जीवन की 
नई जंग बन गई 
चेहेरे पर मुस्कान थी पर 
जेम्मेदारी की इक .... नई आगाज बन गई ...
...........लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल "

रविवार, 6 नवंबर 2011

लेपटोप क्या आया घर में----

लेपटोप क्या आया घर में----
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लेपटोप क्या आया घर में,जैसे  सौत आ गयी मेरी
दिन भर साथ लिए फिरते हो,करते रहते छेड़ा छेड़ी
एक ज़माना था जब मेरी,आँखों में दुनिया दिखती थी
कलम हाथ में  थाम उंगलियाँ,प्यारे प्रेमपत्र लिखती थी
अब तो लेपटोप परदे पर,नज़रें रहती गढ़ी तुम्हारी 
छेड़ छाड़ 'की पेड'बटन से,उंगली करती रहे  तुम्हारी
अब मुझको तुम ना सहलाते,अब तुम सहलाते हो कर्सर
लेपटोप को गोदी में ले,बैठे ही    रहते  हो     अक्सर
कभी कभी तो उसके संग ही , लेटे काम किया करते हो
'मेल' भेजते,'चेटिंग','ट्विटीग' ,सुबहो- शाम किया करते हो
रोज 'फेस बुक' पर तुम जाने किस किस के चेहरे हो ताको
और खोल कर के' विंडो 'को,जाने कहाँ कहाँ तुम झांको
कंप्यूटर था,तो दूरी थी,ये तो मुआ रहे है चिपका
करते रहते 'याहू याहू',फोटो देखो हो किस किस का
मेरे लिए जरा ना टाइम ,दिन है सूना,रात अँधेरी
लेपटोप क्या आया घर में,जैसे सौत आ गयी मेरी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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