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शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

देश द्रोहियों ने रचा, षड्यंत्रों का जाल

 

तू ही लक्ष्मी शारदा, माँ दुर्गा का रूप |
जीव-मातृका मातु तू, प्यारा रूप अनूप ||
जीव-मातृका=माता के सामान समस्त जीवों का
पालन करने वाली सात-माताएं-
धनदा  नन्दा   मंगला,   मातु   कुमारी  रूप |
बिमला पद्मा वला सी, महिमा अमिट-अनूप ||
शत्रु-सदा सहमे रहे, सुनकर सिंह दहाड़ |
काले-दिल हैवान की, उदर देत था फाड़ ||

देश द्रोहियों ने रचा, षड्यंत्रों का जाल |
 सोने की चिड़िया उड़ी, गली विदेशी दाल ||

टुकड़े-टुकड़े था  हुआ,  सारा   बड़ा   कुटुम्ब, 
पाक-बांगला-ब्रह्म  बन, लंका  से  जल-खुम्ब ||
BharatMata.jpg

महा-कुकर्मी पुत्र-गण, बैठ उजाड़े गोद |
माता के धिक्कार को,  माने महा-विनोद ||

कमल पैर से नोचकर,  कमली रहे सजाय |
कमला बसी विदेश तट,  ढपली रहे बजाय || 
तट = Bank


INC-flag.svg 

हाथ गरीबों पर उठा,  मिटी गरीबी रेख |
पंजे ने पंजर किया,  ठोकी दो-दो मेख | 
मेख = लकड़ी का पच्चर / खूंटा 

File:Bahujan Samaj Party.PNG http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/f/f2/ECI-arrow.png

सिंह खिलौना फिर बना, खेले हाथी खेल |
करे महावत मस्तियाँ,  मारे तान गुलेल ||

कुण्डली 
CPI-banner.svg
File:ECI-bow-arrow.png
हँसुआ-बाली काटके,  नटई नक्सल काट |
गैंता-फरुहा खोदता,  माइंस रखता पाट | 
http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/4/45/ECI-corn-sickle.png File:ECI-two-leaves.png
माइंस रखता पाट, डाल  देता दो पत्ती|
खड़ी पुलिस की खाट, बुझा दे जीवन-बत्ती |
File:ECI-hurricane-lamp.pngFile:ECI-bicycle.png
लालटेन को  ढूँढ़, साइकिल लेकर बबुआ | 
मुर्गे जैसा काट,  ख़ुशी से झूमें हँसुआ ||
File:ECI-cock.png
 बिद्या गई विदेश को, लक्ष्मी गहे दलाल |
माँ दुर्गा तिरशूल बिन, यही देश का हाल ||

जगह जगह विस्फोट-बम, महँगाई की मार |
कानों में ठूँसे रुई, बैठी है सरकार ||

लक्ष्मी माता और आज की राजनीति

 लक्ष्मी माता और आज की राजनीति
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जब भी मै देखता हूँ,
कमालासीन,चार हाथों वाली ,
लक्ष्मी माता का स्वरुप
मुझे नज़र आता है,
भारत की आज की राजनीति का,
साक्षात् रूप
उनके है चार हाथ
जैसे कोंग्रेस का हाथ,
लक्ष्मी जी के साथ
एक हाथ से 'मनरेगा'जैसी ,
कई स्कीमो की तरह ,
रुपियों की बरसात कर रही है
और कितने ही भ्रष्ट नेताओं और,
अफसरों की थाली भर रही है
दूसरे हाथ में स्वर्ण कलश शोभित है
ऐसा लगता है जैसे,
स्विस  बेंक  में धन संचित है
पर एक बात आज के परिपेक्ष्य के प्रतिकूल है
की लक्ष्मी जी के बाकी दो हाथों में,
भारतीय जनता पार्टी का कमल का फूल है
और वो खुद कमल के फूल पर आसन लगाती है
और आस पास सूंड उठाये खड़े,
मायावती की बी. एस.  पी. के दो हाथी है
मुलायमसिंह की समाजवादी पार्टी की,
सायकिल के चक्र की तरह,
उनका आभा मंडल चमकता है
गठबंधन की राजनीती में कुछ भी हो सकता है
तृणमूल की पत्तियां ,फूलों के साथ,
देवी जी के चरणों में चढ़ी हुई है
एसा लगता है,
भारत की गठबंधन की राजनीति,
साक्षात खड़ी हुई है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

टिप्पण-रुप्पण एक सम, वापस मिली न एक -

किस्मत  में  पत्थर  पड़े,  माथे  धड़  दीवाल |
भंग  घोटते  कामजित,  घोटे  मदन  कमाल |
Deepavali To Complete With Gambling













घोटे  मदन  कमाल, दिवाली जित-जित आवै |
पा   जावे   पच्चास,  दाँव   पर   एक  लगावे |

रविकर  होय  निराश,  लगा  के  पूरे  सत्तर |
हार जाए सब दाँव, पड़े किस्मत में पत्थर ||
File:Bicycle-playing-cards.jpg
चौपड़ पर बेगम सजे, राजा बैठ अनेक |
टिप्पण-रुप्पण एक सम, वापस मिली न एक |

Custom Imprinted Playing Cards

वापस मिली न एक, दाँव रथ-हाथी-घोड़े |
 थोड़े चतुर सयान, टिपारा बैठे मोड़े |
File:Jack playing cards.jpg
कह रविकर कविराय, गया राजा का रोकड़ |
जीते सभी गुलाम,  हारते रानी-चौपड़ ||
टिपारा=मुकुट के आकार की कलँगीदार  टोपी

मौसम बदला

मौसम बदला
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धूप कुनकुनी,नरम नरम दिन,और सौंधी सौंधी सी राते
साँझ चरपरी,भोर रसभरी,और खट्टी मीठी सी बातें
गरम जलेबी,गाजर हलवा,स्वाद भरा मतवाला  मौसम
छत पर धूप,तेल की मालिश,चुस्ती फुर्ती वाला मौसम
है स्वादिष्ट,चटपटा, मनहर,प्यारा मौसम मादकता का
और उस पर से छोंक लगा है, मधुर तुम्हारी सुन्दरता का
ये मौसम जम कर खाने का,छकने और  छकाने का है
नरम रजाई,कोमल कम्बल,तपने और तपाने का है
प्यारा प्यारा ठंडा मौसम,पर इसकी तासीर गरम है
सिहरन सी पैदा कर देती,तेरे तन की गरम छुवन है
तन की ऊष्मा,मन की ऊष्मा और फिर अपनेपन की ऊष्मा
मादक नयन ,गुलाबी डोरे,बढ़ जाती प्रियतम की सुषमा
सर्दी के आने की आहट,सुबह शाम है ठण्ड गुलाबी
गौरी के गोरे गालों की,रंगत होने लगी   गुलाबी
दिन छोटा,लम्बी है रातें,है ये मौसम मधुर मिलन का
सूरज भी जल्दी घर जाता,पल्ला छोड़ ,ठिठुरते दिन का
इस मतवाली,प्यारी ऋतू में,आओ हम सब मौज मनाएं
त्योंहारों का मौसम आया,आओ हम मिल दीप जलाएं

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'



बुधवार, 19 अक्तूबर 2011

हे अग्नि देवता!

हे अग्नि देवता!
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हे अग्नि देवता!
शारीर के पंचतत्वों  में,
तुम विराजमान हो,
तुम्ही से जीवन है
तुम्हारी ही उर्जा से,
पकता और पचता भोजन है
तुम्हारा स्पर्श पाते ही,
रसासिक्त दीपक
 ज्योतिर्मय हो जाते है,
दीपवाली छा जाती है
और,दूसरी ओर,
लकड़ी और उपलों का ढेर,
तुमको छूकर कर,
जल जाता है,
और होली मन जाती है
होली हो या दिवाली,
सब तुम्हारी ही पूजा करते है
पर तुम्हारी बुरी नज़र से डरते है
इसीलिए,  मिलन की रात,
दीपक बुझा देते है
तुम्हारी एक चिंगारी ,
लकड़ी को कोयला,
और कोयले को राख बना देती है
पानी को भाप बना देती है
तुम्हारा सानिध्य,सूरत नहीं,
सीरत भी बदल देता है
तो फिर अचरज कैसा है
कि तुम्हारे आसपास,
लगाकर फेरे सात,
आदमी इतना बदल जाता है
कि माँ बाप को भूल जाता है
बस पत्नी के गुण गाता है
इस काया की नियति,
तुम्ही को अंतिम समर्पण है
हे अग्नि देवता! तुम्हे नमन है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


 

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