मोमबत्ती जल रही है
आजकल इस देश में क्या हो रहा है,
नहीं कोई की समझ में आ रहा है
लोग कहते हम तरक्की कर रहे है,
रसातल पर देश लेकिन जा रहा है
दो बरस की नन्ही हो मासूम बच्ची ,
या भले बुढ़िया पिचासी साल की है
हो रही है जबरजस्ती सभी के संग ,
दरिंदों के हाथों ना कोई बची है
पाशविक अपनी पिपासा पूर्ण करके ,
मार देते,पेड़ पर लटका रहे है
आजकल तो इसतरह के कई किस्से,
रोज ही सबकी नज़र में आरहे है
कोई साधू कर रहा है रासलीला,
कोई नेता ,लड़कियों को रौंदता है
और सुरक्षा के लिए तैनात है जो,
पुलिसवाले ,थाने में करते खता है
नौकरी का देके लालच कोई लूटे,
कोई शादी का वचन दे और भोगे
कोई शिक्षागृहों में कर जबरजस्ती,
खेलता है नन्ही नन्ही बच्चियों से
मामला जब पकड़ता है तूल ज्यादा,
कान में सरकार के जूँ रेंगती है
दे देती मुआवजा कुछ लाख रूपये ,
अफसरों को ट्रांसफर पर भेजती है
नेता करने लगते है बयानबाजी,
देश है इतना बड़ा ,क्या क्या करें हम
अपराधी है अगर नाबालिग बचेगा,
इस तरह अपराध क्या होंगे भला कम
आज ये हालात है अस्मत किसी की,
किस तरह से भी सुरक्षित है नहीं अब
किस तरह इस समस्या का अंत होगा,
किस तरह हैवानगी यह रुकेगी सब
रोज ही ये वारदातें हो रही है ,
और मानवता सिसकती रो रही है
और नेता सांत्वना बस दे रहे है,
सभी शासन की व्यवस्था सो रही है
देश के नेता पड़े कर बंद आँखें,
जागरूक जनता प्रदर्शन कर रही है
किन्तु होता सिर्फ ये कि पीड़िता की,
याद में कुछ मोमबत्ती जल रही है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
आजकल इस देश में क्या हो रहा है,
नहीं कोई की समझ में आ रहा है
लोग कहते हम तरक्की कर रहे है,
रसातल पर देश लेकिन जा रहा है
दो बरस की नन्ही हो मासूम बच्ची ,
या भले बुढ़िया पिचासी साल की है
हो रही है जबरजस्ती सभी के संग ,
दरिंदों के हाथों ना कोई बची है
पाशविक अपनी पिपासा पूर्ण करके ,
मार देते,पेड़ पर लटका रहे है
आजकल तो इसतरह के कई किस्से,
रोज ही सबकी नज़र में आरहे है
कोई साधू कर रहा है रासलीला,
कोई नेता ,लड़कियों को रौंदता है
और सुरक्षा के लिए तैनात है जो,
पुलिसवाले ,थाने में करते खता है
नौकरी का देके लालच कोई लूटे,
कोई शादी का वचन दे और भोगे
कोई शिक्षागृहों में कर जबरजस्ती,
खेलता है नन्ही नन्ही बच्चियों से
मामला जब पकड़ता है तूल ज्यादा,
कान में सरकार के जूँ रेंगती है
दे देती मुआवजा कुछ लाख रूपये ,
अफसरों को ट्रांसफर पर भेजती है
नेता करने लगते है बयानबाजी,
देश है इतना बड़ा ,क्या क्या करें हम
अपराधी है अगर नाबालिग बचेगा,
इस तरह अपराध क्या होंगे भला कम
आज ये हालात है अस्मत किसी की,
किस तरह से भी सुरक्षित है नहीं अब
किस तरह इस समस्या का अंत होगा,
किस तरह हैवानगी यह रुकेगी सब
रोज ही ये वारदातें हो रही है ,
और मानवता सिसकती रो रही है
और नेता सांत्वना बस दे रहे है,
सभी शासन की व्यवस्था सो रही है
देश के नेता पड़े कर बंद आँखें,
जागरूक जनता प्रदर्शन कर रही है
किन्तु होता सिर्फ ये कि पीड़िता की,
याद में कुछ मोमबत्ती जल रही है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'