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बुधवार, 12 अक्तूबर 2011

"पेड़ लगाओ, देश बचाओ !!"




"पेड़ लगाओ, देश बचाओ !!"

बहुत पुराना है नारा ;

हकीकतन इससे सबने

पर कर लिया किनारा |



वो औद्योगीकरण के नाम पे,

जंगल के जंगल उड़ाते हैं;

पेड़ काट के नई इमारतों का,

अधिकार दिए जाते हैं |



नीति कुछ ऐसी है-

"जंगल हटाओ, विकास रचाओ !" 

पर कहते हैं जनता से,

"पेड़ लगाओ, देश बचाओ !!"

मंगलवार, 11 अक्तूबर 2011

आबो हवा


नहीं रहा अब
दुनिया पे यकीन,
भरोसे जैसी कोई
अब चीज कम है ;
बदल गये लोग
बदल गई मानसिकता,
बदल गई सोच
खतम हुई नैतिकता ;
हमने ही सब बदला
और कहते हैं आज
कि अच्छी नहीं रही
अब आबो हवा |

सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

दीपक बाबा की प्रेरणा से -- बक बक

दीपक बाबा की प्रेरणा से -- बक बक

निर्बुद्धि की जिन्दगी, सुख-दुःख से अन्जान |
निर्बाधित जीवन जिए,  डाले  न व्यवधान  ||

बुद्धिमान करता रहे , खाकर-पीकर मौज |
एकाकी जीवन जिए, नहीं  बढ़ाये  फौज ||
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjUvz9teZpa2M2ixiaFOKLsfi-_I-frqZaTW9ifk8szYEoUlev-F7c5DEaI2M9fmhdTmdfuNJwLlxZ5AQ_jcQG_3btMO4eD1OuClyy8uQY4pLMjx-2hllO4koWwav4BuGG3ivyA10Snd75G/s1600/a_mayawati_0414.jpg
बुद्धिवादी परिश्रमी,  पाले  घर  परिवार |
मूंछे  ऐठें  रुवाब से,  बैठे  पैर  पसार  ||
बुद्धिजीवी  का  बड़ा, रोचक  है  अन्दाज |
जिभ्या ही करती रहे, राज काज आवाज ||
Former Chief Minister of Madhya Pradesh and Congress leader Digvijay Singh gestures during an interview, in New Delhi on March 26, 2009.
बुद्धियोगी  हृदय  से,  लेकर  चले समाज |
करे भलाई जगत का, दुर्लभ हैं पर आज ||
Anna Hazare and Mahatma Gandhi

शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2011

दस सिर सहमत नहीं रहे थे |

दस सिर सहमत नहीं रहे थे |

 लंका-नगरी बैठ दशानन त्रेता में मुस्काया था |
बीस भुजाओं से सिर सारे मन्द मन्द सहलाया था ||
सीता ने तृण-मर्यादा का जब वो जाल बिछाया था-
बाँये से पहले वाला सिर बहुत-बहुत झुँझलाया था |
ब्रह्मा ने बाँधा था ऐसा, कुछ  भी  ना  कर पाया था |
 असंतुष्ट  हो  वचन  सहे  थे |
दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||
[2.jpg]
दहन देख दारुण दुःख लंका दूजा मुख गुर्राया था |
क्षत-विक्षत अक्षय को देखा गला बहुत भर्राया था |
अंगद के कदमों के नीचे तीजा खुब  अकुलाया था |
पैरों ने जब भक्त-विभीषण पर आघात लगाया था |
बाएं से चौथे सिर ने नम-आँखों, दर्द  छुपाया था-
भाई   ने   तो   पैर   गहे   थे |
दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||
सहस्त्रबाहु से था लज्जित दायाँ वाला पहला सिर |
दूजे  ने  रौशनी  गंवाई  एक आँख  बाली  से घिर |
तीजा तो बचपन से निकला महादुष्ट पक्का शातिर |
मन्दोदरी से चौथा चाहे  बातचीत हरदम आखिर |
पर  सबके  अरमान  दहे  थे |
दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||
File:Sita Mughal ca1600.jpg[bhrun-hatya_417408824.jpg]
शीश नवम था चापलूस बस दसवें की महिमा गाये |
दो पैरों  के, बीस  हाथ  के,  कर्म - कुकर्म  सदा भाये |
मारा रावण राम-चन्द्र ने, पर फिर से वापस आये |
नया  दशानन  पैरों  की  दस  जोड़ी  पर सरपट धाये |
दसों दिशा में बंटे शीश सब, जगह-जगह रावण छाये -
सब सिर के अरमान लहे थे |
दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||
http://upload.wikimedia.org/wikipedia/en/c/ce/Mohammed_Ajmal_Kasab.jpg Train inferno: Burning oil tankers after a tanker train caught fire following derailment near Chanmana village between
Aluabari and Mangurjaan railway stations in Kishanganj district of Bihar on Wednesday.

एक दीप अँधेरे में ...


एक दीप अँधेरे में ...
बरसों से मंदिर के कपाट में 
एक दीप अँधेरे में जल रहा है 
रोशनी की तलाश में भटककर खुद से लड़ रहा है 
कितने दिन बीत गए ...
अपने रूप को , आईने में नही देख पाया 
थोड़ा सा तेल 
वहीं पुरानी बाती 
उसी कपाट पर 
बंद , पडा अपनी दशा से परेशान
फिर भी धीमें -धीमें  जल रहा है 
उस उजले दिन की इंतजार में 
बुझता और जलता 
नया सबेरा ढूंढ़ रहा है 
बरसों से मंदिर की कपाट में 
एक दीप अँधेरे में जल रहा है 

 लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल " 

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