पति का रिटायरमेंट-पत्नीकी आनंदानुभूति
हो गए पति देवता जब से रिटायर,
रूदबा उनका थोड़ा सा ठंडा पड़ा है
निठल्ले है,वक़्त काटे से न कटता ,
व्यवस्थाये ,गयी सारी गड़बड़ा है
अब उमर संग आ गया बदलाव उनमे ,
या कि इसमें ,उनकी कुछ मजबूरियां है
कोई उनकी आजकल सुनता नहीं है,
और बच्चों ने बना ली दूरियां है
जवानी भर ,जरा भी मेरी सुनी ना ,
दबा कर के रखा मुझको उम्र सारी
बुढापे का फायदा ये तो हुआ है,
पतिजी अब लगे है,सुनने हमारी
काटने को वक़्त ,कब तक पढ़ें पेपर ,
टीवी पर कब तलक नज़रोंको गढाये
एक ही अवलम्ब उनका मैं बची हूँ,
साथ जिसके,चाय पियें,गपशपाये
नहीं कुछ भी बताते थे,छुपाते थे,
बात दिलकी खोल अब कहने लगे है
राय मेरी ,मांगते हर बात पर है,
सुनते है और कहने मे रहने लगे है
मूड हो तो खेल लेते,ताश पत्ती,
या सिनेमा में दिखाते नयी पिक्चर
उमर संग व्यवहार में बदलाव आया,
जिसके खातिर तरसती थी जिंदगी भर
ये रिटायरमेंट उनका एक तरह से,
मेरे खातिर आया है वरदान बन के
जवानी में ना ,बुढापे मे ही सही पर,
हो रहे है ,पूर्ण सब अरमान मन के
बच्चे सेटल हो गए अपने घरों में ,
नहीं चिता कोई भी है ,या फिकर है
कट रही अब जिंदगी ये चैन से है ,
मौज मस्ती मनाने की ये उमर है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'