सांत्वना
चार दिनों की रही चांदनी, सब आए मिल चले गए
इतना हम पर प्यार लुटाया,हम विव्हल हो छले गए
तुम्हे पता हम वृद्ध किस तरह अपना जीवन काट रहे
वृद्धावस्था के सब सुख दुख,आपस में है बांट रहे
अपनी खुशियों में हंस लेते , अपने ग़म में रो लेते
बात फोन पर हो जाती है तो पल भर खुश हो लेते
टूट गए सब के सब सपने ,मन में जो थे पले गए
चार दिनों तक रही चांदनी सब आए मिल चले गए
सब मिल जुल कर रहते होती खुशियों की बरसात सदा
एकाकी जीवन के सुख दुख, क्या होते, है हमें पता
पर धन अर्चन की मजबूरी अपनों को बिछड़ाती है
जुदा एक दूजे से करती ,बहुत हमें तड़फाती है यही सांत्वना ,कभी-कभी मिल ,जीवन के दिन भले गए
चार दिनों की रही चांदनी सब आए मिल चले गए
मदन मोहन बाहेती घोटू
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