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शनिवार, 27 नवंबर 2021

बुढ़ापा ऐसा आया रे

लगा है जीवन देने त्रास
रहा ना कोई भी उल्लास
मन मुरझाया,तन अलसाया, 
गया आत्मविश्वास 
सांस सांस ने हो उदास ,
अहसास दिलाया रे
वक्त यह कैसा आया रे 
बुढ़ापा तन पर छाया रे 

बदलते ढंग, मोह हैभंग 
समय संग,जीवन है बेरंग 
व्याधियां रोज कर रही तंग 
बची ना कोई तरंग ,उमंग 
रही न तन की तनी पतंग ,
उमर संग ढलती काया रे 
वक्त यह कैसा आया रे 
बुढ़ापा तन पर छाया रे 

बड़ा ही आया वक्त कठोर 
श्वास की डोर हुई कमजोर 
सूर्य ढलता पश्चिम की ओर 
नजर आता है अंतिम छोर
तन का पौर पौर अब तो 
लगता कुम्हलाया रे 
वक्त यह कैसा आया रे 
बुढ़ापा तन पर छाया रे

ना है विलास ना भोग
 पड़ गए पीछे कितने रोग 
 साथ समय के साथी छूटे 
 लगे बदलने  लोग
अपनों के बेगानेपन ने 
बहुत सताया रे
वक्त ये कैसा आया रे
बुढापा हम पर छाया रे


 हमारे मन में यही मलाल
 रहे ना पहले से सुर ताल
 हुई सेहत की पतली दाल 
 नहीं रख पाते अपना ख्याल 
 बदली चाल ढाल में  अब ना 
 जोश बकाया रे
 वक्त ये कैसा आया रे
 बुढापा हम पर छाया रे


 रहा ना जोश,बची ना आब
 बहुत सूने सूने है ख्वाब 
 अकेले बैठे हम चुपचाप 
 बस यही करते रहे हिसाब 
 पूरे जीवन में क्या खोया 
 और क्या पाया रे 
 वक्त ये कैसा आया रे 
 बुढ़ापा हम पर छाया रे

मदन मोहन बाहेती घोटू

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