बूढा बुढ़िया और तन्हाई
एक बूढा और उसकी बुढ़िया ,दोनों हाथों में हाथ धरे
बस बैठ यूं ही तन्हाई में ,बीती बातों को याद करे
क्या दीप्त चमकता यौवन था ,फुर्ती से भरा हुआ तन था
थी भरी भरी सी कसी देह,और चंदा जैसा आनन था
हम दोनों पागल प्रेमी इक ,दूजे को निहारा करते थे
बंध कर बाहों के बंधन में ,हम वक़्त गुजारा करते थे
पर समय संग वो रंगरलियां और गया जमाना मस्ती का
जब जिम्मेदारी सर आई और लादा बोझ गृहस्थी का
हो गयी गुटर गू बंद और हम लुल्लु चप्पू सब बिसरे
बस बैठ यूं ही तन्हाई में ,बीती बातों को याद करे
याद आते है वो प्रेमपत्र ,जो मुझको बहुत सुहाते थे
पढता था इतनी बार उन्हें कि मन को रट रट जाते थे
अपने मन का सब प्रेमभाव ,तुम प्रकट किया करती लिखके
मोती से अक्षर बीच बीच ,वो चुंबन चिन्ह लिपस्टिक के
वो पोस्टमेन का इन्तजार ,आता है अब भी याद हमें
जिस दिन तेरी चिट्ठी मिलती ,छा जाता था उन्माद हमें
अब प्रेमपत्र का थ्रिल न बचा ,सब मोबाइल पर बात करे
बस बैठ यूं ही तन्हाई में ,बीती बातों को याद करे
फिर एक दिवस वो भी आया जब मैं दूल्हा तुम दुल्हन बन
अग्नि के फेरे सात लिए ,बंध गया जनम भर का बंधन
है प्रथम मिलन की याद तुम्हे ,तुम बैठी थी सकुचाई सी
मैंने जब घूंघट पट खोले ,तुम लिपट गयी शरमाई सी
मैं मधुर प्रेम रस में डूबा ,बाँहों में तुझको घेरा था
कोरे कागज पर प्रथम प्रेम का पहला शब्द उकेरा था
संग जीने मरने की कसमें ,खाई थी मन विश्वास भरे
बस बैठ यूं ही तन्हाई में ,बीती बातों को याद करे
कुछ दिन फिर ऊंचे गगन उड़े ,थोड़े चहके ,महके बहके
वो मस्ती करना ,वो उड़ान ,याद आते वो दिन रह रह के
फिर फंसे गृहस्थी चक्कर में ,बच्चे आये ,पाले पोसे
उड़ना सीखा,सब छोड़ गये ,निज नीड बसा ,किसको कोसे
अब तो बस मैं हूँ और तुम हो ,आपस में हम ही सहारा है
ना चिंता ना जिम्मेदारी ,ये वक़्त बड़ा ही प्यारा है
लेना न किसी से ना देना ,कोई से हम क्यों भला डरें
बस बैठ यूं ही तन्हाई में ,बीती बातों को याद करे
ना रही बसंती ऋतू है अब ,ना है उमंग ना है तरंग
तन क्षीण ,बिमारी ने घेरा ,अब रूठ गया हमसे अनंग
फिर भी हम तुम दोनों संग है ,ये साथ हमारा क्या कम है
है अक्षुण ,अमर प्यार अपना ,जीवित जब तक दम में दम है
मैं ख्याल तुम्हारा रखता हूँ ,तुम रखती मेरा ख्याल सदा
कल भी था आज और कल भी ,जिन्दा है अपना प्यार सदा
बस वक़्त गुजारा करते है ,सह एक दूसरे के नखरे
बस बैठ यूं ही तन्हाई में ,बीती बातों को याद करे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
एक बूढा और उसकी बुढ़िया ,दोनों हाथों में हाथ धरे
बस बैठ यूं ही तन्हाई में ,बीती बातों को याद करे
क्या दीप्त चमकता यौवन था ,फुर्ती से भरा हुआ तन था
थी भरी भरी सी कसी देह,और चंदा जैसा आनन था
हम दोनों पागल प्रेमी इक ,दूजे को निहारा करते थे
बंध कर बाहों के बंधन में ,हम वक़्त गुजारा करते थे
पर समय संग वो रंगरलियां और गया जमाना मस्ती का
जब जिम्मेदारी सर आई और लादा बोझ गृहस्थी का
हो गयी गुटर गू बंद और हम लुल्लु चप्पू सब बिसरे
बस बैठ यूं ही तन्हाई में ,बीती बातों को याद करे
याद आते है वो प्रेमपत्र ,जो मुझको बहुत सुहाते थे
पढता था इतनी बार उन्हें कि मन को रट रट जाते थे
अपने मन का सब प्रेमभाव ,तुम प्रकट किया करती लिखके
मोती से अक्षर बीच बीच ,वो चुंबन चिन्ह लिपस्टिक के
वो पोस्टमेन का इन्तजार ,आता है अब भी याद हमें
जिस दिन तेरी चिट्ठी मिलती ,छा जाता था उन्माद हमें
अब प्रेमपत्र का थ्रिल न बचा ,सब मोबाइल पर बात करे
बस बैठ यूं ही तन्हाई में ,बीती बातों को याद करे
फिर एक दिवस वो भी आया जब मैं दूल्हा तुम दुल्हन बन
अग्नि के फेरे सात लिए ,बंध गया जनम भर का बंधन
है प्रथम मिलन की याद तुम्हे ,तुम बैठी थी सकुचाई सी
मैंने जब घूंघट पट खोले ,तुम लिपट गयी शरमाई सी
मैं मधुर प्रेम रस में डूबा ,बाँहों में तुझको घेरा था
कोरे कागज पर प्रथम प्रेम का पहला शब्द उकेरा था
संग जीने मरने की कसमें ,खाई थी मन विश्वास भरे
बस बैठ यूं ही तन्हाई में ,बीती बातों को याद करे
कुछ दिन फिर ऊंचे गगन उड़े ,थोड़े चहके ,महके बहके
वो मस्ती करना ,वो उड़ान ,याद आते वो दिन रह रह के
फिर फंसे गृहस्थी चक्कर में ,बच्चे आये ,पाले पोसे
उड़ना सीखा,सब छोड़ गये ,निज नीड बसा ,किसको कोसे
अब तो बस मैं हूँ और तुम हो ,आपस में हम ही सहारा है
ना चिंता ना जिम्मेदारी ,ये वक़्त बड़ा ही प्यारा है
लेना न किसी से ना देना ,कोई से हम क्यों भला डरें
बस बैठ यूं ही तन्हाई में ,बीती बातों को याद करे
ना रही बसंती ऋतू है अब ,ना है उमंग ना है तरंग
तन क्षीण ,बिमारी ने घेरा ,अब रूठ गया हमसे अनंग
फिर भी हम तुम दोनों संग है ,ये साथ हमारा क्या कम है
है अक्षुण ,अमर प्यार अपना ,जीवित जब तक दम में दम है
मैं ख्याल तुम्हारा रखता हूँ ,तुम रखती मेरा ख्याल सदा
कल भी था आज और कल भी ,जिन्दा है अपना प्यार सदा
बस वक़्त गुजारा करते है ,सह एक दूसरे के नखरे
बस बैठ यूं ही तन्हाई में ,बीती बातों को याद करे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।