एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

रविवार, 20 अक्तूबर 2013

ब्रह्मज्ञानी

               ब्रह्मज्ञानी

मै ब्रह्मज्ञानी हूँ
मै जानता हूँ कि विधाता ने ,
ये सारा ब्रह्माण्ड बनाया है
नर और मादा के मिलन से ही,
इस संसार में जीवन आया है
प्रभु की बनायी हुई इस धरती पर ,
करके थोडा बहुत अतिक्रमण
अगर मैंने बना लिए ,अपने आश्रम
तो ये सब ब्रह्मज्ञान फैलाने के लिए है
भक्तों को ,मिलन की महत्ता बतलाने के लिए है
यहाँ ,मेरी भक्तिने और भक्तगण
अपना सबकुछ कर देते है मुझे समर्पण
मै ,इस युग में,कृष्ण बन कर
 द्वापर  युग से प्रेम की प्यासी ,
गोपियों की प्यास बुझाता हूँ
उनके संग ,जल क्रीडा कर,चीरहरण करता हूँ,
और फिर रास रचाता हूँ
सच तो ये है ,कि सम्भोग ही सच्ची समाधि है
तो अपनी भक्तिनो संग ,एकान्त कुटी में,
ब्रह्मज्ञान में लीन होने पर ,
दुनिया  क्यों कहती मुझको अपराधी है
भागवत में लिखी है ये बात साफ़
स्वर्ण में रहता है कलयुग का वास
इसलिए मै स्वर्ण को भस्म कर देता हूँ,
और स्वर्ण भस्म को ,उदरस्त कर लेता हूँ
कितने ही लोगों को कलियुग के अभिशाप से बचाता हूँ
देर तक प्रेम में लीन होने का पाठ पढाता हूँ
एक ऋषि विश्वामित्र होते थे ,वो भी ब्रह्मज्ञानी थे
एक अप्सरा मेनका को देख ,हुए पानी पानी थे
भूल गए थे सब तप ,छाई थी ऐसी मस्ती
मेरे आश्रम में तो ,सैंकड़ों मेनकाएँ है ,
जब विश्वामित्र पिघल गए ,तो मेरी क्या हस्ती
मेरी एकांत कुटी में मेनकाओं के संग,
प्रेम और ब्रह्मज्ञान का दीपक रोज जलता है
दुनिया भले ही कुछ भी बोले ,
पर ब्रह्मज्ञानी को ,कोई भी पाप नहीं लगता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-