मनुज प्रकृति से दूर गया है
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मनुज प्रकृति से दूर गया है वृक्षों के आवाहन पर ही मेघा आकर पानी
देते, कंकरीट के जंगल आख़िर कैसे उन्हें बुलावा दे दें ! सूना सा नभ तपती
वसुधा शुष्क हुई हैं ...
3 घंटे पहले
बेहतरीन बहुत सुंदर गजल,...
जवाब देंहटाएंविर्क जी ऐसा ही होता है
जवाब देंहटाएंदिल की इस नादानी में .....:))
सुंदर ग़ज़ल .....
बहुत अच्छी ग़ज़ल....
जवाब देंहटाएंलाजवाब!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबधाई महोदय ||
शुभकामनाएं --
छोटी बहर में लिखी कमाल की गज़ल है ... हर शेर पैना पन लिए ...सुभान अल्ला ...
जवाब देंहटाएंभावमयी गज़ल्।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंवाह! वाह! वाह!
भू वाह ... छोटी बहर की लाजवाब गज़ल ... कमाल का लिखा है ... बधाई ...
जवाब देंहटाएंwah.
जवाब देंहटाएंऐसा ही होता भाई ,हर एक प्रेम कहानी में ,छोटी बहर की सुन्दर ग़ज़ल .
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