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बुधवार, 23 नवंबर 2011

मनाते खुशियाँ रहो तुम जियो जब तक

मनाते खुशियाँ रहो तुम जियो जब तक
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दर्द का क्या भरोसा,आ जाय जब तब
मनाते खुशियाँ रहो तुम जियो जब तक
है बड़ी अनबूझ  ये जीवन पहेली
है कभी दुश्मन कभी सच्ची सहेली
बांटती खुशियाँ,कभी सबको हंसाती
कभी पीड़ा,दर्द के  आंसू रुलाती
क्या पता कब मौत आ दे जाय दस्तक
मनाते खुशियाँ रहो तुम जियो जब तक
आसमां में जब घुमड़ कर मेघ छाते
नीर बरसा प्यास धरती की बुझाते
तो गिराते बिजलियाँ भी है कहीं पर
धूप,छाँव,सर्द ,गर्मी,सब यहीं पर
कौन जाने,कौन मौसम ,रहे कब तक
मनाते खुशियाँ रहो ,तुम जियो जब तक
कभी शीतल पवन जो मन को लुभाती
वही लू के थपेड़े बन है तपाती
धूप सर्दी में सुहाती बहुत मन को
वही गर्मी में जला देती बदन को
कौन का व्यहवार ,जाए बदल कब तक
मनाते खुशियाँ रहो तुम जियो जब तक

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

3 टिप्‍पणियां:

  1. डेढ़ बजे की पोस्ट थी, दो पर दी फिर ठोक |
    कुछ अंतर रखिये भले, रखो जरा सा रोक ||

    जवाब देंहटाएं
  2. डेढ़ बजे की पोस्ट थी, दो पर दी फिर ठोक |
    कुछ अंतर रखिये भले, रखो जरा सा रोक ||

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