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सोमवार, 11 अप्रैल 2022

प्यार और मिठाई 
तुम्हारी ना को ना और हां को हां ही मानता हूं मैं 
तुम्हें खुश रखने के हथकंडे सब पहचानता हूं मैं 
गर्म गाजर का हलवा तुम हो प्यारा और मनभाता 
मिलेगा स्वाद चमचा बनके ही, यह जानता हूं मैं
भले ही टेढ़ी हो लेकिन रसीली और निराली हो 
जलेबी की तरह स्वादिष्ट हो तुम और प्यारी हो 
तुम्हारा सच्चा आशिक तुम्हें दिल से प्यार करता हूं 
मैं दीवाना तुम्हारा, प्रेमिका तुम ही हमारी हो
 तुम्हारा प्यार लच्छेदार है ,प्यारा सुहाना है 
 रसीला रस मलाई सा, हमें करता दीवाना है 
 मैं लच्छेदार रबड़ी से भरा जब देखता कुल्हड़,
 मेरा मन होताअल्हड़,करता जिद इसको ही खाना है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 10 अप्रैल 2022

आई माई मेरी अम्मा है प्राण सी

 रूपसी थी कभी चांद सी तू खिली

ओढ़े घूंघट में तू माथे सूरज लिए

नैन करुणा भरे ज्योति जीवन लिए

स्वर्ण आभा चमक चांदनी से सजी

गोल पृथ्वी झुलाती जहां नाथती

तेरे अधरों पे खुशियां रही नाचती

घोल मधु तू सरस बोल थी बोलती

नाचते मोर कलियां थी पर खोलती

फूल खिल जाते थे कूजते थे बिहग

माथ मेरे फिराती थी तू तेरा कर

लौट आता था सपनों से ए मां मेरी 

मिलती जन्नत खुशी तेरी आंखों भरी 

दौड़ आंचल तेरे जब मै छुप जाता था

क्या कहूं कितना सारा मै सुख पाता था

मोहिनी मूर्ति ममता की दिल आज भी

क्या कभी भूल सकता है संसार भी

गीत तू साज तू मेरा संगीत भी

शब्द वाणी मेरी पंख परवाज़ भी

नैन तू दृश्य तू शस्त्र भी ढाल भी

जिसने जीवन दिया पालती पोषती

नीर सी क्षीर सी अंग सारे बसी

 आई माई मेरी अम्मा है प्राण सी


सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5

प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत।


सन्यास आश्रम 

हम सन्यास आश्रम की उम्र में है मगर संसार नहीं छूटता 
लाख कोशिश करते हैं मगर मोह का यह जाल नहीं टूटता 
हमारे बच्चे भी अब होने लग गए हैं सीनियर सिटीजन 
पर बांध कर रखा है हमने मोह माया का बंधन शरीर में दम नहीं है ,हाथ पैर पड़ गए है ढीले 
मगर दिल कहता है, थोड़ी जिंदगी और जी ले 
इच्छाओं का नहीं होता है कोई छोर
हमेशा ये दिल मांगता है मोर
जब तलक लालसाओं का अंत नहीं होता है 
सन्यासआश्रम में होने पर भी कोई संत नहीं होता है 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

कान 

चेहरे के दाएं या बाएं 
अगर आप नजर घुमाएं
तो दो अजीब आकृति के छिद्रयुक्त अंग नज़र आते हैं 
जो कान कहलाते हैं 
यह हमारी श्रवण शक्ति के मुख्य साधन है 
जिससे एक दूसरे की बात सुन पाते हम हैं 
यह कान भी अजीब अंग दिया इंसान में है 
हर जगह मौजूद रहते इस जहान में हैं 
वो आपके मकान में हैं 
उपस्थित दुकान में है 
काम करो तो थकान में है 
खुश रहो तो मुस्कान में हैं 
आदमी के ही नहीं दीवारों के भी कान होते हैं 
कोई कान के कच्चे श्रीमान होते हैं
हमें कानो कान खबर नहीं लगती और लोग हमारे विरुद्ध दूसरों के कान भरते हैं 
कोई कान कतरते है 
कोई कान में तेल डालकर बातों को अनसुना करते हैं 
जब हम सतर्क होते हैं हमारे कान खड़े हो जाते हैं कोई बकवास करके हमारे कान पकाते हैं 
कान सा कॉम्प्लिकेटेड आकार का शरीर का कोई अंग नहीं दिखता है
कहते हैं कान का हर पॉइंट शरीर के किसी अंग को कंट्रोल करता है 
कान का सही उपयोग सुनने के लिए होता है पर औरते जो कभी किसी की नहीं सुनती है 
अपने श्रृंगार के लिए कानों को चुनती हैं 
कभी कानों में बाली डालती है 
कभी झुमका लटकाती है 
कभी हीरे के टॉप्स से कानों को सजाती है 
कोरोना की बीमारी में भी कान बहुत काम आए हर कोई रहता था कान से मास्क लटकाए 
मंद दृष्टि वालो को दूरदृष्टि देने वाला चश्मा जिससे साफ दिखता है 
वह भी कानों के सहारे ही टिकता है 
कुछ बातों की किसी को नही होती
 कानोकान खबर है
 ये शरीर का एकमात्र अंग है 
 जिसके नाम पर बसा कानपुर नगर है 
 बचपन में जब स्कूल में पढ़ते थे 
मास्टर जी बहुत ज्ञान की बातें हमारे कानों में भरते थे 
पर हमारे कानों पर जूं नहीं रेंग पाती थी 
इस कान से सुनी बातें उस कान से निकल जाती थी 
और इसकी सजा में हमारे काम उमेंठे जाते थे कभी कान पकड़ कर उठक बैठक लगाते थे 
इस पर भी बात नहीं बनती तो कान पकड़कर मुर्गा बना दिए जाते थे 
तरह-तरह की सजाएं पाते थे 
तब तो हम खिसिया कर पल्लू झाड़ कर खड़े हो जाते थे 
क्योंकि हमारे कई सहपाठी अक्सर ऐसी सजा पाते थे 
पर एक प्रश्न दिमाग में जरूर मचाता था तूफान की सजा देते समय मास्टर जी क्यों मरोड़तें हैं हमेशा कान 
लेकिन इसका उत्तर अब समझ पाए हम है 
कान का मस्तिष्क की ज्ञान तंत्रिका से सीधा कनेक्शन है
कान मरोड़ने से ज्ञान तंत्रिका जागृत हो जाती है ऐसी सजा से अच्छी बुद्धि आती है 
कुछ भी हो अगर कान नहीं होते तो आपस में कम्युनिकेशन नहीं हो पाता 
न सत्संग हो पाता ,ना भजन हो पाता  
इसलिए श्रीमान 
मेरी बात सुनिए खोल कर कान
कान है महान 
गुणों की खान 
आपके चेहरे पर लाते है मुस्कान 
आपस में कानाफूंसी न कर 
ऐसी बातें बोलें
जो लोगों के कानो में मिश्री घोले

मदन मोहन बाहेती घोटू
कशमकश 

मेरा दिल और दिमाग 
कभी नहीं चले एक साथ 
बचपन से ले अब तक 
दोनों चलते रहे अलग-अलग 
दिल ने कुछ कहा,
 दिमाग नहीं माना  
दिमाग में कुछ विचार आए 
दिल नहीं माना 
दोनों कि हमेशा लड़ाई चलती ही रही 
और फिर एक दिन मेरी शादी हो गई 
अब मन और मस्तिष्क की कशमकश बंद है क्योंकि मुझे अब वही करना पड़ता है,
 जो मेरी पत्नी जी को पसंद है 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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