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शनिवार, 19 मार्च 2022

चंदन 

मुझको जड़ मात्र समझ कर के,
 मत करो मूल्य का आलंकन 
 मैं दिखता हूं निर्जीव मगर,
  भरपूर भरा मुझ में जीवन 
  मुझको तुम अगर जलाओगे 
  तो घर जाएगा महक महक 
  पानी में घिसकर लेप लगा,
  उबटन बन कर दूंगा ठंडक 
  प्रभु के मस्तक और चरणों में,
  मैं चढ़ता उनके पूजन में 
  मोहक खुशबू है भरी हुई,
  तैलीय मेरे तन और मन में 
  विष भरे भुजंग लाख लिपटे,
  होता ना मुझ पर कोई असर 
  हूं सूखा काष्ठ मगर चेतन ,
  मैं चंदन, महकूं जीवन भर

मदन मोहन बाहेती घोटू 
ऐसा जीना भी क्या जीना 

लंबा जीने की तमन्ना में खुद पर न कोई प्रतिबंध रखो 
मत खाते रहो दवाई बस, मिष्ठान ,जलेबी नहीं चखो ऐसा जीना भी क्या जीना तुम तरस तरस काटो जीवन सूखी रोटी,फीकी सब्जी,ना दूध मलाई, ना मक्खन जीवन जितना भी जियो तुम, खुश रहो सदा और मौज करो 
तुम घूमो ,फिरो, पियो खाओ ,मनचाही मस्ती रोज करो इच्छाओं पर कंट्रोल करो, हमको यह बात पसंद नहीं घुट घुट कर के लंबा जीवन, जीने में कुछ आनंद नहीं 
फीका फीका जीवन जियो और अंत समय में पछताओ ऐसा जीना भी क्या जीना, जीने का मजा ना ले पाओ

जब दिवस मौत का तय है तो तुम मन चाहे वैसा जी लो जो भी अब शेष बचा जीवन खेलो कूदो और मस्ती लो मरते दम तक अपने मन की बाकी न रहे कोई हसरत
मरने के बाद मिले कुछ भी,दोखज हो या कि जाओ जन्नत 
 इसलिए स्वर्ग के सारे सुख जीते जी पा लो धरती पर मन में ना कोई मलाल रहे जीवन ना जी पाये जी भर 
 जीवन भर की अर्जित पूंजी को खर्च करो तुम खुद खुद पर 
आनंद उठाओ पल पल का जब तक चलते सांसों के स्वर 
तुम मौज करो मस्ती काटो, रह सदा प्रफुल्लित मुस्काओ
ऐसा जीवन भी क्या जीना जीने का मजा ना ले पाओ

मदन मोहन बाहेती घोटू 

मंगलवार, 15 मार्च 2022

उमर का तगादा

ढीले पड़ गए हाथ पांव और तन में अब कमजोरी है किंतु उछाले भरता रहता ,यह मन बड़ा अघोरी है 
हमको कसकर बांध रखी यह मोह माया की डोरी है बूढ़ा बंदर, किंतु गुलाटी की आदत ना छोड़ी है
 करना बहुत चाहता लेकिन कुछ भी ना कर पाता है उमर का यह तो तगादा है ,उमर का यह तगादा है 
 
डाक्टर कहता शकर बढ़ गई, मीठे पर पाबंदी है 
खाने अब ना मिले जलेबी ,कलाकंद, बासुंदी है 
नहीं समोसे, नहीं कचोरी तली चीज पर बंदी है 
खाना नहीं ठीक से पचता, पाचन शक्ति मंदी है 
मुश्किल से दो रोटी खाते ,खाना रह गया आधा है
 उमर का ये तो तगादा है ,उमर का ये तो तगादा है
 
 रोमांटिक तो है लेकिन अब रोमांस नहीं कर पाते हैं सुंदरियों के दर्शन करके, अपना मन बहलाते हैं 
आंखें धुंधली ,उन्हें ठीक से देख नहीं पर पाते हैं
पर जब वह बाबा कहती ,मन में घुट कर रह जाते हैं अब कान्हा से रास ना होता बूढ़ी हो गई राधा है 
उमर का ये तो तगादा है उमर का ये तो तगादा है

जैसे-जैसे उमर हमारी दिन दिन बढ़ती जाती है 
बीते दिन की कई सुहानी यादें आ तड़पाती है 
रात ठीक से नींद ना आती उचट उचट वो जाती है
यूं ही करवट बदल बदल कर रातें अब कट जाती है
 कैसे अपना वक्त गुजारें, नहीं समझ में आता है 
 उमर का ये तो तगादा है, उमर का ये तो तगादा है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
भूख तो सबको लगती ही है 

चाहे आदमी हो चाहे जानवर 
कीट हो या नभचर
सभी के पेट में आग तो जलती ही है 
भूख तो सबको लगती ही है 

पेट खाली हो तो बदन में ताकत नहीं रहती 
कुछ भी कर सकने की हिम्मत नहीं रहती 
खाली पेट आदमी सो नहीं पाता 
भूखे पेट भजन भी हो नहीं पाता 
इसलिए जिंदा रहने पेट भरना पड़ता है 
पेट भरने के लिए काम करना पड़ता है 
पंछी नीड छोड़ दाने की तलाश में उड़ता है 
आदमी कमाई के लिए काम में जुटता है 
दिन भर की मेहनत के बाद
 दो जून की रोटी नसीब हो पाती है 
 इसी पेट के खातिर दुनिया कमाती है 
 किसान खेती करता है, अन्न उपजाता है 
 जिसे पकाकर पेट भरा जाता है 
 जानवर भी एक दूसरे का शिकार करते हैं 
 सब जैसे तैसे भी अपना पेट भरते हैं 
 मांस हो या बोटी 
 रोटी हो या डबल रोटी 
 चाट हो या पकौड़ी 
 पूरी हो या कचौड़ी 
 बिरयानी हो या चावल 
 सब्जी हो या फल 
 जब तक पेट में कुछ नहीं जाता है 
 आदमी को चैन नहीं आता है 
 सुबह चाय बिस्कुट चाहिए
  फिर नाश्ता और लंच खाइए 
  शाम को फिर चाय और स्नैक्स
   फिर रात में डिनर 
   आदमी चरता ही रहता है दिन भर 
   कुछ नहीं मिलता तो गुजारा करता है पानी पी पीकर फिर भी उसकी भूख खत्म नहीं होती 
   उस की लालसा कम नहीं होती 
   भूख कई तरह की होती है 
   तन की भूख
   धन की भूख
   जमीन की भूख
   सत्ता की भूख 
   कुर्सी की भूख 
   एक भूख खत्म होती है तो दूसरी जग जाती है 
   कई बार एक भूख पूरी करने के चक्कर में,
    पेट की भूख मर जाती है 
    आदमी दवा खाता है 
    आदमी हवा खाता है 
    आदमी डाट खाता है 
    आदमी मार खाता है 
    आदमी रिश्वत खाता है 
    आदमी पूरी जिंदगी भर कुछ न कुछ खाता है 
    पर फिर भी उसका पेट नहीं भरता है
     और जब वह मरता है
     तो उसके घर वाले हर साल 
     पंडित को श्राद्ध में खिलाते हैं 
     उसकी तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाते हैं 
   ये भूख मरने के बाद भी सबको ठगती ही है 
   भूख तो सबको लगती ही है

मदन मोहन बाहेती घोटू
बुढ़ापे में मियां बीवी का प्यार 

कभी झगड़ा ,कभी तकरार 
कभी बातों का प्रहार ,कभी तानो की बौछार 
एक दूसरे को टोकना बार बार
कभी जीत ,कभी हार 
कभी रूठना ,कभी मनवार 
और यूं ही निकाल लेना मन का गुबार 
कभी पिता सा गुस्सा ,कभी मां का दुलार 
बस यही है बुढ़ापे में मियां बीवी का प्यार 

दो प्राणी अकेले बुढ़ापे की मार झेलते हैं 
समय नहीं कटता तो झगड़ा झगड़ा खेलते हैं 
एक दूसरे का सहारा देकर साथ साथ चलना
किसी का सिर दुखे तो बाम मलना 
थोड़ा सा सहलाना ,अपना मन बहलाना 
इतना सीमित रह गया है आजकल अभिसार
 बुढ़ापे में यही है मियां बीवी का प्यार  
 
 नहीं है चिंतायें पर उदास रहता है मन 
 बात बिना बात ही हुआ करती है अनबन 
 फिर एक दूजे को कोई ऐसे मनाता है 
 पत्नी पकोड़े बनाती, पति आइसक्रीम खिलाता है 
 इन्हीं छोटी-छोटी बातों में सिमट गया है संसार 
 बस यही है, बुढ़ापे में मियां बीवी का प्यार 
 
 जब त्योहारों पर बच्चों के शुभकामना संदेश आते हैं थोड़ी देर ,दोनों बच्चों की तरह खुश हो जाते हैं 
 उनके सुखी जीवन के लिए दुआएं देते हैं  
 उनकी खैरियत को अपनी ख़ैरियत बना लेते हैं 
 बहू बेटी पोता पोती मिलने को भी आते हैं ,
 पर वही साल में एक दो बार 
 बस यही है बुढ़ापे में मियां बीवी का प्यार 
 
 कभी कोई हावी है कभी कोई झुकता 
 याद बीती बातें कर ,आती भावुकता  
 किसी से नहीं रही, कोई भी आकांक्षा
  बस दोनों स्वस्थ रहें इतनी सी अभिलाषा
  सुखी रहे घोसले में सिमटा हुआ परिवार 
  बस यही है बुढापे में मियां बीवी का प्यार 

मदन मोहन बाहेती घोटू

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