एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

सोमवार, 4 जनवरी 2021

इक्कीस का 'किस'

इक 'किस' लेकर इक्कीस आया ,ढेरों नेह भरा इसमें
मैं मुश्किल में पड़ा हुआ हूँ ,इसको बांटू किस किस में

एक मेरी प्यारी पत्नी जो जनम जनम की साथी है
एक मेरी प्यारी बेटी जो ,मुझ पर प्यार लुटाती है
एक मेरा अच्छा  बेटा  जो मेरा वंश  चलायेगा
प्यार लुटाते भाई बहन ,ये किस किसमे बंट पायेगा
किस को दूँ और किस को ना दूँ ,पड़ा हुआ इस बंदिश में
मैं मुश्किल में पड़ा हुआ हूँ ,इक 'किस 'बांटूं किस किस में

रिश्तेदार कई प्यारे है दोस्त और शुभचिंतक है
थोड़ा थोड़ा उनको भी दूँ ,उनका भी बनता हक़ है
सूरज ,चंदा और सितारे ,वृक्ष ,फूल पत्ते सारे
प्राणदायिनी हवा और जल ,सब लगते मुझको प्यारे
जी करता है ,सब में बांटूं ,प्यार लुटाया जिस जिस ने
मेरे इतने सारे प्रेमी ,इक 'किस' ,बांटूं  किस किस में  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

रविवार, 3 जनवरी 2021

चलती है

नहीं है पैर ,नहीं सर है नहीं काया है
मगर कुदरत ने उसे इस तरह बनाया है
कभी हलकी है ,कभी तेज, हवा चलती है
दिखाई देती नहीं ,मगर चला करती है

बड़ी नाजुक है जिससे स्वाद हम चखा करते
जिसपे बत्तीस चौकीदार ,नज़र रखा करते
कोई न रोक पाता ,जब जुबान चलती है
एक स्थान पर रहती है मगर चलती है

एक जगह टिकती नहीं ,होती है बड़ी चंचल
देखती ही सदा रहती है इधर और उधर
चलाती तीर भी है ,खुद भी मगर चलती है
बड़ी ही कातिल हुआ करती ,नज़र चलती है

रौब साहब का बहुत चला करता ,दफ्तर में
मामला उल्टा ,मगर हुआ करता है घर में
कोई भी मसला हो बीबी की बात चलती है
साहब चुप रहते है ,बीबी की सदा चलती है

वक़्त अच्छा बुरा ,आता है चला जाता है
बदलता रहता है ,रोता है कभी  गाता है
चाल तारों की, पर तक़दीर को बदलती है
नज़र आती नहीं किस्मत जो चाल चलती है

घोटू 
युग परिवर्तन

हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है

काली स्लेट ,खड़िया लेकर बच्चे अ आ ई पढ़ते थे  
स्याही और होल्डर से लिख कर आगे पढाई में बढ़ते थे
फिर फाउंटेन पेन आया ,और बाल पेन ने किया राज
अब पेपर लेस पढाई से ,चलता है सारा काम काज
कम्यूटर पर और ऑन लाइन ,बच्चे पढाई अब करते है
सारी दुनिया का वृहद ज्ञान ,निज लैपटॉप में  भरते है
छोटे बच्चों को बड़े बड़ों ,के कान काटते देखा है
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है
 
उन दिनों सास का शासन था ,बहुएं सासों से डर रहती
करती थी दिन भर काम और उनके ताने भी थी सहती
बच्चे उन्मुक्त खेलते थे ,बस्तों का बोझा भी कम था
चाचा ,ताऊ सब संग रहते ,और मस्तीवाला आलम था
माहौल इस तरह अब बदला ,बहुओं से डरती थी सासें
और मात पिता भी बच्चों से ,डर  कर रहते,अच्छे खासे
परिवार नहीं संयुक्त रहे ,अब खिंची बीच में  रेखा है
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है

तब गावों के कुछ घर में ही ,रखते थे रेडियो लोगबाग
फिर ट्रांजिस्टर ले बड़ी शान से घूमा करते उसे टांग
काले सफ़ेद टेलीविज़न ने नयी क्रांति का बोध दिया
रंगीन हुआ टेलीविजन ,लोगो ने हाथों हाथ लिया
सबको पछाड़ जब मोबाईल ,आया तो सबके मन भाया
रेडियो ,कैमरा और टीवी ,अब सबकी मुट्ठी में आया
यह छोटा उपकरण काम का है और बड़े मजे का है
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है

तब सिगरेट पांचसोपचपन का , डिब्बा निज हाथों में लेकर
कुछ लोग शान से धूम्रपान ,करते रहते है रह रह कर
फिर पान मसाले ने  आकर ,ऐसा लोगों का रुख बदला
सबके हाथों की शान बना,डिब्बा एक पानपराग  भरा
वो युग बीता ,कोरोना ने ,फिर फैलाया ऐसा डर है
कि उससे बचने ,लोगों के ,हाथों में सेनेटाइजर है
बदले हालातों के आगे ,हमने घुटनो को टेका है
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 

शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

Whitehat monthly plans for blogger.com

hi there

After checking your website SEO metrics and ranks, we determined that you
can get a real boost in ranks and visibility by using any%of our plan below
https://www.cheapseosolutions.co/cheap-seo-packages/index.html

Cheap and effective SEO plan
Onpage SEO included

For the higher value plans, DA50 DR50 TF20 SEO metrics boost is inlcuded

Thank you
Mike
support@cheapseosolutions.co
दो दो लाइना

पहली सुबह धुंध वाली है ,सूरज भी है बुझा बुझा
जैसे हो नाराज बहू से ,मुंह सास का सुझा सुझा

ख़ामोशी जैसी छाई है ,लगते है हालत वही
पतिदेव नाराज हो गए ,मिली सुबह की चाय नहीं

बिगड़ा वातावरण ठंड में ,आयी है आफत गहरी
घर गंदा ,बर्तन जूंठे है ,छुट्टी चली गयी मेहरी

कोहरे की चादर ओढ़े है ,ये पृथ्वी चुपचाप पड़ी
मुझे रजाई छोड़,जगाने की जिद पर तुम मगर अड़ी

ओस पेड़ पत्तों से टपके ,तनिक हवा जो चल जाए
जैसे याद पिया की आये ,विरहन आंसूं टपकाये

मुड़े तुड़े घर के कोने में ,बिखरे है कल के अखबार
ज्यों किसान आंदोलन करते ,हो दिल्ली की सीमा पार

घोटू 

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-