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गुरुवार, 29 अक्तूबर 2020

मिरची

मिरची,लाल,हरी या काली
सब है स्वाद  बढ़ाने  वाली
कोई पिसी ,कोई बिन पिसी
सबको करवाती है सी सी
चाट चटपटी ,मन को भाती
हरी मिर्च  पर  बहुत लुभाती
जितनी हरी ,छरहरी होती
उतनी अधिक चरपरी होती  
और ज्यों ज्यों वो मोटी होती
त्यों त्यों निज तीखापन  खोती
लोग इसलिए ही कहते है
मोटे  लोग ,ख़ुशी रहते है
हम सब लोग ,स्वाद के मारे
हरी मिर्च खा , लें  चटखारे
मुंह से काटो ,अगर ज़रा सी
तो बस निकला करता सी सी
खाकर मज़ा बहुत आता है
सारा मुंह ,झन्ना जाता है
आँखों में  ,पानी आ भरता
और कान से धुंवा निकलता
छूट पसीने भी जाते है
किन्तु चाव से सब खाते है
मीठा खाओ ,शांत हो जाती
पर अंदर खलबली मचाती
इसका असर देर तक टिकता
असली असर सुबह है दिखता
माने  आप या न माने पर
खाने से आने तक बाहर
असर हमेशा रहता कायम
मिर्ची में होता इतना दम
इसीलिये है मेरा कहना
तुम मिर्ची से बच कर रहना

घोटू  
यार तुम्हारा प्यार गजब है  

यार तुम्हारा प्यार गजब है,और तुम खुद भी यार गजब हो
मैं तो कुछ भी ना कहता हूँ ,किन्तु समझ तुम जाती सब हो

मेरा मूड समझ लेने का ,तुम्हारा अंदाज निराला
बिन मांगे हाज़िर कर देती ,मेरे लिए चाय का प्याला
मेरी शकल देख ,मेरे दिल के हालत समझ लेती हो
मेरे होंठ हिले ,इस पहले ,मेरी बात समझ लेती हो
बिन मांगे ही मिल जाता है ,जिसकी मुझको लगी तलब हो
यार तुम्हारा प्यार गजब है,और तुम खुद भी यार गजब हो

मेरी हर एक हरकत से तुम ,मन के भाव भांप  लेती हो
 मेरे अंदर क्या पकता है , बाहर से ही   झांक  लेती  हो
तुम्हे पता पहले चल जाता ,मैं क्या चाल चलूँगा ,अगली
मेरे पागलपन में  मेरा ,साथ  निभाती ,बन कर  पगली
 देख मेरा व्यवहार बदलता  ,लेती  जान ,मेरा मतलब हो
यार तुम्हारा प्यार गजब है,और तुम खुद भी यार गजब हो

इतने दिन तक ,रहे संग संग ,एक रंग हो गया हमारा
एक हमारी सोच हो गयी ,एक ढंग हो गया हमारा
झगड़े नहीं हुआ करते है ,जब विचार मिलते आपस में  
तुम मेरे बस में  रहती हो  ,मैं रहता तुम्हारे  बस में
हर मुश्किल से लड़ सकता मैं ,मेरे साथ खड़ी तुम जब हो
यार तुम्हारा प्यार गजब है ,और तुम खुद भी यार गजब हो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
हवा की गड़बड़

बाकी सबकुछ ठीक ,हवा में कुछ गड़बड़ है
लेकिन सारी परेशानियों की  बस  ये जड़ है

सड़कों पर कितने ही वाहन दौड़ रहे है
और सबके सब ,कितना धुँवा छोड़ रहे है
उद्योगों से चिमनी भी है धुवाँ उगलती
गावों के खेतों में उधर पराली  जलती
दिवाली पर ,बम पटाखे ,करे प्रदूषण
साँसों को मिल नहीं पा रही है ऑक्सीजन
इतना ज्यादा वातावरण ,हो गया मैला
और फेफड़ों का दुश्मन कोरोना फैला
जीना मुश्किल हुआ ,मची इतनी भगदड़ है
बाकि सब कुछ ठीक ,हवा में कुछ गड़बड़ है  

उधर पश्चिमी हवा ,देश को रुला रही है
नव पीढ़ी भारतीय संस्कृति भुला रही है
संस्कार ,रिश्ते नाते और खाना पीना
रहन सहन सब बदल रहा है जीवन जीना
कुछ नेताओं ने माहौल बिगाड़ दिया है
हमको आपस में लड़वा दो फाड़ किया है
जाति धर्म ,अगड़ा पिछड़ा में कर बंटवारा
अपनी रोटी सेक, हवा को बहुत बिगाड़ा
पहन शेर की खाल ,राज्य करते गीदड़ है
बाकी सब कुछ ठीक,हवा में कुछ गड़बड़ है  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

रविवार, 25 अक्तूबर 2020

गाली देना ही अच्छा है

अगर गालियां दे लेने से ,जाती निकल भड़ास हृदय की ,
तो घुट घुट गुस्सा करने से ,गाली देना ही अच्छा है
मन के शिकवे और गिले सब,चिल्ला कर के जाहिर कर दो,
अगले को मालूम पड़ जाता ,कि तुम्हारे मन में क्या है
मन हो जाता साफ़ गलतियां ,अपनी सब लेते सुधार है ,
गलतफहमियां  कम  हो जाती ,फिर से प्यार पनपने लगता
होते रिश्ते जो कगार पर ,टूट फूट अलगाव राह पर ,
उनमे पुष्प प्यार के खिलते ,सब कुछ अच्छा लगने लगता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
हाल- ए -बुढ़ापा

आते याद जवानी के दिन ,जब हम मचल मचल जाते थे ,
दीवाने हो पगला जाते ,जवां हुस्न के जलवे लख  कर
हुई बुढ़ापे में ये हालत ,छूटे नहीं पुरानी आदत ,
मन बहलाते ,देख हुस्न को ,यूं ही दूर से ,बस तक तक कर
पति हुए बेंगन का भड़ता ,पत्नी रही मलाई कोफ्ता ,
मगर स्वाद मारे बेचारे ,खुश रहते है ,बस चख चख कर
भीनी भीनी खुशबू वाली ,मिस सी {मिस्सी}रोटी गरम चाहिए
तन्दूरी गोभी भी खाते ,लेकिन तन से दूरी रख कर
कभी जोश में दौड़ा करते ,चुस्ती फुर्ती भरे हुए थे ,
अब थोड़ी भी मेहनत करलो ,बुरा हाल होता है थक कर
दुष्ट बुढ़ापा ऐसा आया , जोश ए जवानी ,हुआ सफाया ,
अपना समय बिताते है हम ,बस आपस में ही झक झक कर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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