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शुक्रवार, 31 जुलाई 2020

तुम भी रिटायर हम भी रिटाय
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हुये तुम रिटायर, है हम भी रिटायर
मगरअब भी जिन्दा,दिलों में है 'फायर '

हुए साठ के और ,रिटायर हुए हम
मगर फिटऔरफाइन,जवानी है कायम
उमर बढ़ गयी पर ,नहीं तन  ढला  है
है  चुस्ती  और फुर्ती ,बुलंद होंसला है
 अधिक काबलियत ,अनुभव बढ़ा है
मगर फिर भी जीवन ,गया गड़बड़ा है
नहीं कोई करता ,हमें 'एडमायर '
हए तुम रिटायर ,है हम भी रिटायर

निठल्ले से बैठे ,समय काटते अब
बेवक़्त ही ,फालतू  बन  गए सब
कोई पोते पोती को अपने घुमाता
कोई दूध सब्जी ,सवेरे जा लाता
 किसी  ने नयी नौकरी ढूंढ़ ली  है
कदर सबकी घर में ,कम हो चली है
डटे रहते फिर भी ,नहीं है हम कायर
हुए हम रिटायर ,हो तुम भी रिटायर

कोई वक़्त काटे ,करे बागवानी
सुबह शाम गमलों में ,देता है पानी
कोई टी वी देखे ,है चैनल बदलता
मोबाईल से अपने ,रहे कोई चिपका
कोई 'सोशल सर्विस ',लगा अब है करने
धरम की किताबें ,लगा कोई पढ़ने
कोई ब्लॉग लिखता ,बना कोई शायर
हुए तुम रिटायर ,है हम भी रिटायर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बहन से
(राखी के अवसर पर विशेष )

एक डाल के  फल हम बहना
संग संग सीखा,सुखदुख सहना

एक साथ थे ,जब कच्चे थे
मौज मनाते  ,सब बच्चे  थे
वो दिन भी कितने अच्छे थे
एक दूजे पर ,प्यार लूटना ,
याद आता वो मिलजुल रहना
एक डाली के  फल हम बहना

ना कोई  चिन्ता , जिम्मेदारी
बचपन की  सब  बातें न्यारी
कितनी सुखकर,कितनी प्यारी
तितली सा उन्मुक्त उछलना ,
शीतल मंद पवन सा बहना
एक डाल के फल हम बहना

पके समय संग ,टूटे,बिछड़े
पाया स्वाद ,मधुर हो निखरे  
अलग अलग होकर सब बिखरे
हमने अपना काम संभाला ,
और तुम बनी ,किसी का गहना
एक डाल  के फल हम बहना

एक डोर बांधे जो माँ थी
दूजी डोर बांधती राखी
प्रेम का बंधन ,अब भी बाकी
मिलकर,सुख दुःख बांटा करना  ,
दिल की अपने , बातें कहना
एक डाल के फल हम बहना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

गुरुवार, 30 जुलाई 2020

बुढ़ापा
एक पैराडी
गीत -बहारों ने मेरा चमन लूट कर---
फिल्म -देवर

समय ने जवानी मेरी लूट कर ,
बुढ़ापे को अंजाम क्यों दे दिया
रिटायर मुझे काम से कर दिया ,
बिठा करके आराम क्यों दे दिया

पूरी उमर मैंने मेहनत करी ,
तब जाके आयी है ये बेहतरी
मुझे काम से कर दिया है बरी ,
और वृद्ध का नाम क्यों दे दिया
समय ने जवानी मेरी लूट कर ,
बुढ़ापे को अंजाम क्यों दे दिया

अभी भी जवानी सलामत मेरी
भली चंगी रहती है सेहत मेरी
बूढा बना, कर दी फजीयत मेरी ,
मुझे ऐसा  इनाम क्यों दे दिया
समय ने जवानी मेरी लूट कर ,
बुढ़ापे का अंजाम क्यों दे दिया

अभी ज्ञान पहुंचा है मेरा चरम
समझदारी वाला हुआ आचरण
अभी दूर जीवन का अंतिम चरण
तड़फना सुबह शाम क्यों दे दिया
समय ने जवानी मेरी लूट कर ,
बुढ़ापे को अंजाम क्यों दे दिया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
एक पाती -पोते के नाम

तरक्की करो खूब पोते मेरे ,
तुम्हे अपने दादा की आशीष है
सफलताएं चूमे तुम्हारे चरण ,
हमे तुमसे कितनी ही उम्मीद है

तुम्हारे पिताजी ने मेहनत करी ,
और पायी कितनी ही ऊंचाइयां
लहू में तुम्हारे  समाई  हुई ,
है व्यापार करने की गहराइयाँ
बढे काम इतना कि सब ये कहे ,
कि बेटा पिता से भी इक्कीस है
तरक्की करो खूब पोते मेरे ,
तुम्हे अपने दादा की आशीष है

विदेशों में तुमने पढाई करी ,
बहुत कुछ करूं मन में सपना पला
बहुत ही लगन  और उत्साह है ,
और है बुलंदी लिए हौंसला
भरपूर उपयोग हो ज्ञान का ,
हमारी तुम्हे ये ही ताकीद है
तरक्की करो खूब पोते मेरे ,
तुम्हे अपने दादा की आशीष है

आगे भले कितने बढ़ जाओ तुम ,
कभी गर्व से पर नहीं फूलना
सहकर्मियों से रहो मित्र बन
बुजुर्गों को अपने नहीं भूलना
सबसे मिलो ,प्यार करते रहो ,
परिवार की अपने तहजीब है
तरक्की करो खूब पोते मेरे ,
तुम्हे अपने दादा की आशीष है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

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