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शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

अचार 

कच्ची सी अमिया ,अगर पक जाती 
तो मधुर रस से भर जाती 
निराला स्वाद देती 
खाने वाले को आल्हाद देती 
पर बेचारी को ,बाली उमर में रोना पड़ा 
स्वाद के मारों के लिए ,कुर्बान होना पड़ा 
टुकड़े टुकड़े होकर कटना पड़ा 
चटपटे मसालों से लिपटना पड़ा 
और आने वाले साल भर तक ,
लोगों को चटखारे देने को तैयार हो गयी 
सबका प्यार हो गयी 
कोई भी चीज का ,
जब अधकचरी उमर में ,
इस तरह बलिदान दिया जाता है 
और बाद में दिनों तक ,
उसके स्वाद का मज़ा लिया जाता है 
इसे पूर्णता प्राप्त किया हुआ ,
अधूरा अफसाना कहते है 
जी हाँ इसे अचार बनाना कहते है 

मदनमोहन बाहेती 'घोटू '
बारिश की घटायें -कालेज की छाटाएँ 

देखो कितनी छायी घटाएं भरी भरी है 
चंचल है ये ,एक जगह पर कब ठहरी है 
कई बदलियां ,बरसा करती ,कभी नहीं है 
और लड़कियां भी तो पटती ,सभी नहीं है 
कोई बदली घुमड़ घुमड़ कर गरजा करती 
तो कोई बिजली बन कर के कड़का करती 
कोई बदली ,बरसा करती ,रिमझिम रिमझिम 
कोई मूसलाधार लुटाती अपना यौवन 
कोई की इच्छाएं ,अब तक जगी नहीं है 
और लड़कियां भी तो पटती सभी नहीं है 
कोई है बिंदास ,कोई है सहमी सहमी 
कोई रहे उदास ,किसी में गहमा गहमी 
कोई आती ,जल बरसाती ,गुम  हो जाती
कोई घुमड़ घुमड़ कर मन में आस जगाती 
कोई उच्श्रंखल है ,रहती दबी  नहीं है 
और लड़कियां भी तो पटती सभी नहीं है 

मदनमोहन बहती 'घोटू ' 
 
पति ही है वो प्राणी 

कठिन सास का अनुशासन है और ननद के नखरे 
देवर के तेवर तीखे है ,और  श्वसुर सुर  बिखरे 
बेटा  सुनता नहीं जरा भी ,कुछ बोलो तो रूठे 
बेटी  हाथों से मोबाईल , मुश्किल से ही  छूटे 
और देवरानी  देवर से ,चार कदम  है  आगे 
नौकर से जो कुछ बोलो तो काम छोड़ कर भागे
पर जिससे हर  काम कराने में होती है आसानी
पत्नी आगे पीछे   नाचे  ,पति ही है वो  प्राणी 
मेहरी ,कामचोर नंबर वन ,फिर भी है नखराली 
दिन भर खुद ही खटो काम में ,समय न मिलता खाली 
सुनु एक की दस ,सब से ही ,जो मैं बोलूं चालूं  
अपने मन की सब भड़ास मैं ,बोलो कहाँ निकालूँ 
जिसे डाट मन हल्का कर लूं ,और जो सुन ले मेरी 
बिना चूं चपड़ ,बात मान ले ,बिना लगाए  देरी 
सिर्फ पति हर बात मानता ,है बिन आना कानी 
पत्नी आगे पीछे नाचे ,पति ही है वो  प्राणी 

मदनमोहन बाहेती 'घोटू '
  
ससुर का सन्मान करना  चाहिए 

मांग में जिसका सिन्दूरी रंग है  
सदा सुख दुःख में जो रहता संग है 
प्यार करता ,तुम्हारा  मनमीत है 
जिंदगी का जो मधुर  संगीत  है 
लहलहाई जिसने जीवन की लता 
लाया है जो जिंदगी में पूर्णता 
जो हृदय से तुम्हे करता स्नेह है  
खुश रहो तुम यही जिसका ध्येय है 
रात दिन खटता  है जो परिवार हित 
करती करवा चौथ तुम जिस प्यार हित 
दिया जिसने सुख तुम्हे मातृत्व का 
लुटाता जो खजाना ,अपनत्व  का 
सुख सदा बरसाता जिसका साथ है 
जिसके कारण सुहागन हर रात है 
जिसके संग ही जिंदगी में है ख़ुशी 
जिसके कारण होठों पर थिरके हंसी 
संवरना सजना सभी जिसके लिए 
मुस्करा तुम संग में जिसके  जिये 
मुश्किलों में साथ जो हरदम खड़ा 
जिसकी बाहों का सहारा है बड़ा 
जो है हमदम ,दोस्त है और हमसफ़र 
जिसके संग बंधन बंधा सारी उमर 
जिसके कारण खनकती है चूड़ियां 
धन्य वो जिनने दिया ऐसा  पिया 
सर्वाधिक अनमोल निधि संसार की 
जो है बहती हुई गंगा प्यार  की 
गंगा से गंगोत्री अति पूज्य है 
पिता माता,पति के, अति पूज्य है 
सास का गुणगान करना चाहिए 
ससुर का सन्मान करना चाहिए 

मदनमोहन बाहेती 'घोटू '

गुरुवार, 19 जुलाई 2018

Re:

thanks dhall saheb

2018-07-19 18:37 GMT+05:30 Ram Dhall <dhall.ram@gmail.com>:
Kyaa baat hai,  Baheti ji.

Bechare nimboo ki vyatha, ati sunder shabdon mein likhi hai.

On Thu, 19 Jul 2018, 18:14 madan mohan Baheti, <baheti.mm@gmail.com> wrote:
बेचारे नीबू 

भले हमारी स्वर्णिम आभा ,भले हमारी मनहर खुशबू 
फिर भी बलि पर हम चढ़ते है ,हम तो है बेचारे नीबू 
सारे लोग स्वाद के मारे ,हमें काटते और निचोड़ते 
बूँद बूँद सब रस  ले लेते ,हमें कहीं का नहीं छोड़ते 
सब्जी,दाल,सलाद  सभीका ,स्वाद बढ़ाने हम कटते है
सभी तरह की चाट बनालो ,स्वाद चटपटा हम करते है 
हमें निचोड़ शिकंजी बनती , गरमी में ठंडक  पाने को 
हमको काट अचार बनाते ,पूरे साल ,लोग खाने को 
बुरी नज़र से बचने को भी ,हमें काम में लाया जाता 
दरवाजों पर मिरची के संग ,हमको है लटकाया जाता 
टोने और टोटके में भी ,बढ़ चढ़ होता  काम हमारा 
नयी कार की पूजा में भी ,होता है  बलिदान हमारा 
कर्मकांड में बलि हमारी ,नज़रें झाड़ दिया करती है 
ढेरों दूध ,हमारे रस की ,बूंदे   फाड़ दिया करती  है 
चूरण और पचन पाचन में ,कई रोग की हम भेषज है 
छोटे है पर अति उपयोगी ,हम मोसम्बी के वंशज है 
हम भरपूर विटामिन सी से ,हर जिव्हा पर करते जादू 
फिर भी हम बलि पर चढ़ते है ,हम तो है बेचारे नीबू 

मदनमोहन बाहेती 'घोटू '

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