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रविवार, 17 जून 2018

बावन पत्ते 

हम और तुम और बावन पत्ते 

जब तुम पीसो ,तब मै काटूँ 
जब तुम काटो ,तब मैं बांटू 
चौके,पंजे ,अट्ठे,सत्ते 
हम और तुम और बावन पत्ते 

इक्के दुक्के कभी कभी हम 
तीन पांच करते आपस में 
तुम चौका, मैं छक्का मारूं,
बड़ा मज़ा आता है सच में 
ये क्या कम हम साथ साथ है 
और बिखरे, सात आठ नहीं है 
तुम मारो नहले पर दहला ,
फिर भी मन में गाँठ नहीं है 
तुम बेगम बन रहो ठाठ से ,
बादशाह मैं ,पर गुलाम हूँ 
तुम हो हुकुम ,ईंट मैं घर की ,
तुम चिड़िया मैं लालपान हूँ 
कभी जीतते,कभी हारते ,
हँसते हँसते  बावन हफ्ते 
हम और तुम और बावन पत्ते 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

पिताजी आप अच्छे थे 

संवारा आपने हमको ,सिखाया ठोकरे सहना 
सामना करने मुश्किल का,सदा तत्पर बने रहना 
अनुभव से हमें सींचा ,तभी तो हम पनप पाये 
जरासे जो अगर भटके ,सही तुम राह पर लाये 
मिलेगी एक दिन मंजिल ,बंधाया हौंसला हरदम 
बढे जाना,बढे जाना ,कभी थक के न जाना थम 
जहाँ सख्ती दिखानी हो,वहां सख्ती दिखाते थे 
कभी तुम प्यार से थपका ,सबक अच्छा सिखाते थे 
तुम्हारे रौब डर  से ही,सीख पाए हम अनुशासन 
हमें मालुम कितना तुम,प्यार करते थे मन ही मन 
सरल थे,सादगी थी ,विचारों के आप सच्चे थे 
तभी हम अच्छे बन पाए ,पिताजी आप अच्छे थे 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 13 जून 2018

आजकल तो रह गए हम छाछ है 

जवानी के वो सुहाने दिन गए ,बुढ़ापे का हो गया आग़ाज़ है 
थे कभी फुलक्रीम वाले दूध हम,आजकल तो रह गए बस छाछ है 
जवानी में थोड़ी भी ऊष्मा मिली ,खूं हमारा था उछालें  मारता 
दूध जैसे उफनने लगते थे हम,बड़ा ही मस्ती भरा  संसार था 
मलाई बन हसीं गालों पर लगे ,होते थे टॉनिक सुहागरात के 
उन दिनों की बात ही कुछ और थी ,मुश्किलों से संभलते जज्बात थे 
दिल किया खट्टा किसी ने फट गए ,किसी ने जावन जो डाला ,जम गए 
खोया बन के खोया अपने रूप को ,मथा जो कोई ने मख्खन बन गए 
अब पिघलते झट से आइसक्रीम से ,हमसे यौवन हो गया नाराज है 
थे कभी फुलक्रीम वाले दूध हम ,आजकल तो रह गए बस छाछ है 
जवानी का सारा मख्खन खुट गया ,कुछ यहाँ कुछ वहां यूं ही बंट गया 
लुफ्त तो सबने ही जी भर कर लिया ,खजाना सब लुट यूं ही झटपट गया 
मलाई जो भी थी थोड़ी सी बची ,बुढ़ापे की बिल्ली ,आ चट कर गयी 
स्निग्धता अब भी बची है प्यार की ,दूध की ताक़त भले ही घट गयी 
अब तो खट्टी छाछ सी है जिंदगी ,मगर फिर भी ,स्वास्थवर्धक स्वाद है 
तुम बनाओ कढ़ी चाहे रायता ,अब  भी देती ,हृदय को आल्हाद है 
सुरों में अब भी मधुरता है वही ,भले ही अब ये पुराना  साज है 
थे कभी फुलक्रीम वाले दूध हम,आजकल तो रह गए बस छाछ है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
तुम पीठ खुजाओ हमारी 

हम संग है एक दूजे के ,तो फिर कैसी लाचारी 
मैं पीठ खुजाऊँ तुम्हारी,तुम पीठ खुजाओ हमारी 
इस बढ़ती हुई उमर में ,जो आई शिथिलता तन में 
 बढ़ गयी प्रगाढ़ता उतनी  ,हम दोनों के  बंधन में 
हम रोज घूमने जाते ,हाथों में  हाथ  पकड़ कर 
मिलती जब धुंधली नज़रें ,बहता है प्यार उमड़ कर 
रह कर के व्यस्त हमेशा 
हम रहे कमाते  पैसा 
बस यूं ही उहापोह में  ,ये उमर बिता दी सारी 
मैं पीठ खुजाऊँ तुम्हारी,तुम पीठ खुजाओ हमारी 
है दर्द मेरे घुटनो में ,तुम इन पर बाम लगा दो 
नस चढ़ी पिंडलियों की है ,तुम थोड़ा सा सहला दो 
हमने झुकना ना सीखा ,जीवन भर  रहे तने हम 
अब रहा नहीं वो दमखम ,आया झुकने का मौसम 
नाखून बढे  पैरों के 
काटे हम एक दूजे के 
काम एक दूजे के आएं ,यूं हम तुम बारी बारी 
मैं पीठ खुजाऊँ तुम्हारी ,तुम पीठ खुजाओ हमारी 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
पुराने दिनों की यादें 

आते है याद वो दिन ,जब हम जवान थे 
कितने ही हुस्नवाले हम पे मेहरबान  थे 
हमारी शक्शियत का जलवा कमाल था
आती थी खिंची लड़कियां कुछ ऐसा हाल था 
लेकिन हम फंस के एक के चंगुल में रह गए 
शादी की ,अरमां दिल के आंसुओ में बह गए 
फंस करके गृहस्थी में, हवा सब निकल गयी 
चक्कर में कमाई के ,जवानी फिसल गयी
 होकर के रिटायर , हुए ,बूढ़े  जरूर  है 
चेहरे पे हमारे अभी भी ,बाकी नूर   है 
लेकिन हम हसीनो के  चहेते  नहीं  रहे 
आती है पास लड़कियां ,अंकल हमें कहे 
अब मामले में इश्क के ,कंगाल हो गए 
गोया पुराना ,बिका हुआ, माल हो गए 
एक बात दिल को हमारे,रह रह के सालती 
बुढ़ियायें भी तो हमको नहीं घास डालती 
हालांकि उनका भी तो है उजड़ा हुआ चमन 
मिल जाए जो आपस में तो कुछ गुल खिला दे हम 
लेकिन हमारी किस्मत ही कुछ रूठ गयी  है
हाथों से जवानी की पतंग ,छूट गयी  है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

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