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शुक्रवार, 20 अक्तूबर 2017

क्या बात है उस घरवाली की 

रंगीन दशहरे मेले सी ,
       जो चमक दमक दीवाली की 
जो रौनक है त्योंहारों की, 
       क्या बात है उस घरवाली की 
नवरात्री के गरबे जैसी ,
       ज्योतिर्मय दीपक जो घर का 
जिसमे फूलों की खुशबू है,
          जिसमे गहनों की सुंदरता 
जो रंगोली सी सजीधजी ,
          मीठी ,मिठाई से ज्यादा है 
जो फूलझड़ी ,रंग बरसाती,
          जो लगती कभी पटाखा है 
जो चकरी सी खाती चक्कर,
         आतिशबाजी ,खुशिहाली की 
जो रौनक है त्योंहारों की ,
          क्या बात है उस घरवाली की 
जो करवाचौथ वरत करती ,
          भूखी प्यासी रहकर ,दिनभर 
जो मांगे पति की दीर्घ उमर ,
             और उसे मानती परमेश्वर 
जो शरदपूर्णिमा का चंदा ,
            माथे बिंदिया सी सजी हुई 
सिन्दूरी मांग भरी घर की ,
             हाथों की मेंहदी ,रची हुई 
है  अन्नकूट सी मिलीजुली,
         वह  खनक चूड़ियों वाली की 
जो रौनक है त्योंहारों की,
          क्या बात है उस घरवाली की 
वह जो गुलाल है होली की,
            उड़ता गुबार जो रंग का है 
जीवनभर जो रखता मस्त हमें,
             उसमे वो नशा भंग का है 
मावे की प्यार भरी गुझिया ,
           वह दहीबड़े सी स्वाद  भरी 
रस डूबी गरम जलेबी सी ,
            रसगुल्ले सी ,आल्हाद भरी 
मुंह लगी फिलम के गीतों सी,
             और ताली है कव्वाली की 
जो रौनक है त्योंहारों की,
          क्या बात है उस घरवाली की 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मैं गधे का गधा ही रहा 

मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
         गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मै तो दीपक सा बस टिमटिमाता रहा ,
        तुम शीतल,चटक चांदनी बन गयी 
मैं तो कड़वा,हठीला रहा नीम ही,
     जिसकी पत्ती ,निबोली में कड़वास है 
पेड़ चन्दन का तुम बन गयी हो प्रिये ,
  जिसके कण कण में खुशबू है उच्छवास है 
मैं तो पायल सा खाता रहा ठोकरें ,
    तुम कमर से लिपट ,करघनी बन गयी 
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा ,
       गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मैं था तन्हा कुआँ,आयी पनिहारिने ,
     गगरियाअपनीअपनी सब भरती गयी 
तुम नदी की तरह यूं ठुमक कर चली,
        पाट  चौड़ा हुआ ,तुम संवरती गयी
मैं तो कांव कांव, कौवे सा करता रहा ,
            तुमने मोती चुगे ,हंसिनी हो गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
        गाय थी तुम प्रिये, शेरनी बन गयी 
मैं तो रोता रहा,बोझा ढोता रहा ,
         बाल सर के उड़े, मैंने उफ़ ना करी 
तुम उड़ाती रही,सारी 'इनकम' मेरी,
        और उड़ती रही,सज संवर,बन परी   
मैं फटे बांस सा ,बेसुरा ही रहा,
          बांसुरी तुम मधुर रागिनी बन गयी
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी  
ऐसा टॉफी का लालच मुझे दे दिया ,
        चाह में जिसकी ,मैं हो गया बावला 
तुम इशारों पर अपने नचाती रही,
    आज तक भी थमा ना है वो सिलसिला 
मैं तो भेली का गुड़ था,रहा चिपचिपा,
         रसभरी तुम ,मधुर चाशनी हो गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी हो गयी 
         
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
             पटाखा तुम भी-पटाखा हम भी 

छोड़ती खुशियों का फव्वारा तुम अनारों सा,,
              हंसती तो फूलझड़ी जैसे फूल ज्यों झरते 
हमने बीबी से कहा लगती तुम पटाखा हो ,
             सामने आती हमारे ,जो सज संवर कर के 
हमने तारीफ़ की,वो फट पडी पटाखे सी,
            लगी कहने  पटाखा मैं  नहीं ,तुम हो डीयर 
मेरे हलके से इशारे पे सारे रात और दिन,
           काटते रहते हो,चकरी  की तरह,तुम चक्कर  
भरे बारूद से रहते हो ,झट से फट पड़ते,
           ज़रा सी छूती  मेरे प्यार की जो चिनगारी 
लगा के आग,हमें छोड़, दूर भाग गयी,
            हुई  हालत हमारी ,वो ही  पटाखे वाली 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शनिवार, 14 अक्तूबर 2017

दिवाली मन गयी 
१ 
कल गया घूमने को मैं तो बाज़ार था 
कोना कोना वहां लगता गुलजार था 
हर तरफ रौशनी ,जगमगाहट दिखी 
नाज़नीनों के मुख,मुस्कराहट दिखी 
चूड़ियां ,रंगबिरंगी ,खनकती  दिखी 
कोई बरफी ,जलेबी,इमरती   दिखी 
फूलझड़ियां दिखी और पटाखे दिखे 
सब ही त्योंहार ,खुशियां,मनाते दिखे 
खुशबुओं के महकते नज़ारे  दिखे 
आँखों आँखों में होते इशारे   दिखे 
कोई हमको मिली,और बात बन गयी 
यार,अपनी तो जैसे दिवाली मन गयी 
२ 
कल गया पार्क में यार मैं घूमने 
देख करके नज़ारा, लगा झूमने 
जर्रा जर्रा महक से सरोबार था 
यूं लगा ,खुशबूओं का वो बाज़ार था
 थे खिले फूल और कलियाँ भी कई
रंगबिरंगी दिखी ,तितलियाँ भी कई 
कहीं चम्पा ,कहीं पर चमेली दिखी 
बेल जूही की ,झाड़ी पर फैली दिखी 
थे कहीं पर गुलाबों के गुच्छे खिले 
और भ्रमर उनका रसपान करते मिले 
एक गुलाबी कली ,बस मेरे मन गयी 
यार अपनी तो जैसे दिवाली मन गयी 
३ 
 मूड छुट्टी का था,बैठ आराम से 
देखता था मैं टी वी ,बड़े ध्यान से 
आयी आवाज बीबी की,'सुनिए जरा 
कुछ भी लाये ना,सूना रहा दशहरा 
व्रत रखा चौथ का,दिन भर भूखी रही 
तुम जियो सौ बरस,कामना थी यही 
और बदले में तुमने मुझे क्या दिया 
घर की करने सफाई में उलझा दिया 
आज तेरस है धन की ,मुहूरत भी है 
सेट के सोने की,मुझको जरुरत भी है 
अब न छोडूंगी ,जिद पे थी वो ठन गयी 
यार अपनी तो ऐसे दिवाली मन गयी 

घोटू  



मेहमान 

उमर के एक अंतराल के बाद 
 एक कोख के जाये ,
और पले बढे जो एक साथ,
उन भाई बहनो के रिश्ते भी ,
इस तरह बदल जाते है 
कि जब वो कभी ,
 एक दूसरे के घर जाते है ,
तो मेहमान कहलाते है 
जिंदगी में  परिभाषाएं ,
इस तरह बदलती है 
अपनी ही जायी बेटी भी ,
शादी के बाद ,
हमे मेहमान लगती है 

घोटू 

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