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शनिवार, 21 मार्च 2015

"निरंतर" की कलम से.....: आज पकड़ते हैं कल छोड़ते हैं

"निरंतर" की कलम से.....: आज पकड़ते हैं कल छोड़ते हैं: वे शाख-ऐ-नाज़ुक पर, आशियाना बनाना चाहते हैं गुलफाम बिना दिल का गुलिस्तां बसाना चाहते हैं दिल दिए,बिना दिल लेना चाहते हैं बुझी हुई...

"निरंतर" की कलम से.....: ये पत्थरों का शहर है

"निरंतर" की कलम से.....: ये पत्थरों का शहर है: ये पत्थरों का शहर है, यहाँ अश्कों का क्या काम जहाँ पत्थर के बुत रहते हों, वहां मोहब्बत का क्या काम जहां जिस्मों में दिल नहीं वहां दर्द का ...

"निरंतर" की कलम से.....: मेरे चमन के वीराने दिखते नहीं है

"निरंतर" की कलम से.....: मेरे चमन के वीराने दिखते नहीं है: मेरे चमन के  वीराने, दिखते नहीं है लदा है फूलों से  पर उनमें   महक नहीं है मुस्कान से पुते चेहरे के गम, दिखते नहीं है लब्जों से  इत्मान...

बुधवार, 18 मार्च 2015

मैं पूर्ण हुई

                 मैं पूर्ण हुई

फटे दूध का छेना थी मैं ,डूबा प्यार के रस में,
        तुमने नयी जिंदगी दे दी ,बना मुझे रसगुल्ला
दिन चांदी से ,रात सुनहरी ,जीवन मेरा  बदला ,
         जिस दिन से तुमने पहनाया मुझे स्वर्ण का छल्ला
सिन्दूरी सी सुबह हो गयी ,रात हुई रंगीली  ,
           जब से तुम्हारे हाथों ने , मांग भरी  सिन्दूरी
बड़ा अधूरा सा जीवन था सूना सा छितराया,  
            प्रीत तुम्हारी जब से पायी ,हुई कामना   पूरी
तुमने वरमाला पहना कर बाँध लिया बंधन में ,
         जनम जनम का साथ दे गए ,फेरे सात   अगन के
जबसे मैंने अपना सब कुछ किया समर्पित तुमको ,
           पूर्ण हुई मैं ,तबसे आये ,स्वर्णिम  दिन  जीवन के
              
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुजरा ज़माना

          गुजरा ज़माना
याद आता है हमें वो ज़माना ,
              गुल खिलाते थे बड़े गुलफाम थे 
जवानी की बात ही कुछ और थी ,
              देखती थी लड़कियां दिल थाम के
बुढ़ापे में हाल ऐसा हो गया ,
               रह गए है आदमी  बस नाम के
उम्र ने हमको निकम्मा कर दिया ,
                वरना हम भी आदमी थे काम के
घोटू

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