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रविवार, 14 सितंबर 2014

अब तुमसे क्या मांगूं ?

             अब तुमसे क्या  मांगूं ?

इतना कुछ दे दिया आपने ,बोलो अब तुमसे क्या मांगूं ?

तुम मेरे जीवन में आये ,ज्यों मरुथल में जल की धारा
सूख रहे मन तरु को सिंचित करने बरसा प्यार तुम्हारा
तुमने दिया मुझे नवजीवन ,सूने मन में प्रीत जगाई
टिम टिम  करते बुझते  दीपक में आशा  की ज्योत जगाई
बस जीवन भर बंधा  रहूँ  मैं,इस बंधन में,कहीं न भागूं 
इतना  कुछ दे दिया आपने,बोलो अब तुमसे क्या मांगूं ?

मेरी अंधियारी  रातों में ,बनी चांदनी छिटक गयी तुम
तरु सा मैं तो मौन खड़ा था,  एक लता सी,लिपट गयी  तुम
तन का रोम रोम मुस्काया ,तुमने  इतनी प्रीत जगा दी
मैं पत्थर था,पिघल  गया हूँ ,तुमने ऐसी  आग लगा दी
आओ बाहुपाश में बंध  कर ,तुम भी जागो,मैं भी जागूँ
इतना कुछ दे दिया आपने ,बोलो अब तुमसे क्या मांगूं?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शनिवार, 13 सितंबर 2014

बीत गए दिन

       बीत गए दिन

बीत गए दिन अवगुंठन के ,
         अब केवल सहला लेते है
बस ऐसे ही प्रीत जता कर ,
          अपना मन बहला लेते है
जो पकवान रोज खाते थे,
           कभी कभी ही चख पाते है
जोश जवानी का गायब है ,
           अब जल्दी ही थक जाते है
'आई लव यू 'उनको कह देते ,
           उनसे भी कहला लेते है
बस ऐसे ही प्रीत जता कर ,
          अपना मन बहला लेते है
कभी दर्द मेरा सर करता ,
            कभी पेट दुखता तुम्हारा
कभी थकावट, बने रुकावट,
            एक दूजे  से करें किनारा
कोई न कोई बहाना करके ,
             इच्छा को टहला देते  है
बस ऐसे ही प्रीत जता कर,
            अपना मन बहला लेते  है
गया ज़माना रोज चाँद का ,
           जब दीदार हुआ करता  था
मौज ,मस्तियाँ होती हर दिन ,
          जब त्योंहार हुआ करता था
बीती यादों की गंगा में,
           बस खुद को  नहला लेते है
बस ऐसे ही प्रीत जता कर,
           अपना मन बहला लेते है
 शाश्वत सत्य बुढ़ापा लेकिन ,
             उमर बढ़ी और जोश घट गया      
एक दूजे की पीड़ा में ही ,
               हम दोनों का ध्यान  बंट  गया
 शारीरिक सुख ,गौण हो गया ,
              मन का सुख पहला  लेते है
बस ऐसे ही प्रीत जता  कर ,
              अपना मन बहला लेते  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू '       




  

मंगलवार, 9 सितंबर 2014

कश्मीर की अवाम से

          कश्मीर की अवाम से

कहाँ गए वो पाकिस्तानी झंडे फहराने वाले ,
           कहाँ हुर्रियत गयी,कहाँ पर बैठा, छुपा ,गिलानी है
पडी आपदा जब जनता पर ,सब के सब लापता हुए,
           त्राहि त्राहि मच रही हर तरफ ,बस पानी ही पानी है
तावी तड़फ़ी,झेलम उफनी,तोड़ सभी मर्यादायें ,
           इतनी नफरत बरसा दी है ,कुछ मजहब के अंधों ने
कितनी बर्बादी होती और कितनी ही जाने जाती ,
          मदद नहीं पंहुचाई होती,अगर फ़ौज के बन्दों ने
तुम भारत का एक अंग हो,भाई हमारे ,प्यारे हो,
           लोग सियासत करते उनको ,जहर घोलना  आता है
तुम पर आफत टूटी,हमने जी भर के सहयोग दिया,
           विपदा में भी भाई भाई का ,सच्चा  साथ  निभाता है
जो कश्मीर स्वर्ग धरती का ,उसको नर्क  बना डाला ,
             इतनी नफरत फैला दी है,इन अलगाववादियों ने
अब तो सोचो ,समझो ,जानो,है हमदर्द कौन ,किसका,
             भाईचारा लौटा लाओ फिर कश्मीर वादियों में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कश्मीर की त्रासदी

           कश्मीर की त्रासदी

इस धरती के स्वर्ग के ,यूं बदले हालात
गए देव ,अब कर रहे ,हैं राक्षस   उत्पात
है राक्षस उत्पात, हुआ सब   पानी पानी
फैला रहे  गिलानी  जैसे   लोग  ग्लानि
हुर्रियत होगयी  फुर्र ,देख कर आई मुसीबत
बेबस  जब देवेन्द्र ,    नरेन्दर  बांटे  राहत

घोटू

रविवार, 7 सितंबर 2014

इंजीनियरिंग का घरेलू उपयोग

          इंजीनियरिंग का घरेलू उपयोग

मैंने जो इन्जीनीरिंग की ,की पढाई चार साल,
सोच ये कि अच्छी बीबी, नौकरी मिल जाएगी
क्या पता था गृहस्थी की,समस्याएं मिटाने,
काम में हर रोज मेरी इंजीनियरिग  आएगी
होती जब नाराज़ बीबी ,उड़ता उनका फ्यूज है ,
मैं मनाता,प्यार करता ,हाथ भी हूँ जोड़ता
दौड़ने करंट फिर से लगे दिलके तार में ,
इलेक्ट्रिक इंजीनियर  मैं ,फ्यूज उनका जोड़ता
मंहगी मंहगी गिफ्ट देता ,कितना ही चूना लगे ,
बांधता पुल तारीफों के ,बन सिविल इंजीनियर
महल सपनो के बनाता ,ले के करनी प्यार की,
बनाता हूँ सड़क ,पंहुचूं उनके दिल तक उम्र भर
गृहस्थी का इन्टीरियर ,सजता है और संवरता ,
क्योंकि मुझको आर्किटेक्चर का भी थोड़ा ज्ञान है
बीबी,बच्चे ,सास ,ननदें ,सबका सरकिट जोड़ता ,
इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग का ज्ञान आता  काम है
केमिकल इंजीनियरिग की बदौलत ही आजतक ,
मेरी और बीबीजी की ,अब तक केमेस्ट्री ठीक है
साल्ट हम दोनों के मिलते ,रिएक्शन होता नहीं ,
ये मेरी इंजीनियरिग ने ही दिलाई  सीख   है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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