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शनिवार, 7 जून 2014

कमी हम मे रही होगी

        कमी हम मे रही होगी

उन्होंने छोड़ हमको थामा दामन ,और कोई का,
                 कमी  हम में ही निश्चित ही,कुछ न कुछ तो रही होगी
हमारे ही मुकद्दर में ,नहीं थी दोस्ती उनकी ,
                  गलत हम ही रहे होंगे ,और वो ही सही होगी
नहीं किस्मत में ये होगा ,जुल्फ सहलाएं हम उनकी,
                    और उनके रस भरे प्यारे ,लबों  का ले सके चुम्बन
बांह में बाँध कर के फूल जैसे बदन को कोमल,
                     महकते जिस्म की उनके,चुरा लें सारी खुशबू हम
नहीं तक़दीर में लिख्खी थी इतने हुस्न की दौलत ,      
                     जिसे संभाल कर के रख सकें ,अपने खजाने में
करे थे यत्न कितने ही कि उनको कर सकें हासिल,
                      मिली नाकामयाबी हमको ,उनका साथ पाने में
या फिर उनके मुकद्दर में ,कोई बेहतर लिखा होगा ,
                      करी कोशिश हमने पर,कशिश हम में,नहीं होगी
उन्होंने छोड़ हम को ,थामा दामन और कोई का,
                     कमी हम में ही निश्चित ही,कुछ न कुछ तो रही होगी
वो उनका मुस्कराना ,वो अदाएं चाल वो उनकी ,
                     और वो संगेमरमर का,तराशा सा बदन उनका
गुलाबी गाल की रंगत ,दहकते होंठ प्यारे से ,
                       कमल से फूल सा नाजुक ,वो गदराया सा तन उनका
तमन्ना थी कि उनका हाथ लेकर हाथ में अपने ,
                          काट दें साथ उनके सफर सारा जिंदगानी का
मगर अरमान सारे रह गए बस दिलके दिल में ही ,
                          यही अंजाम होना था, हमारी  इस  कहानी   का 
खुदा ही जानता है ,बिछड़ कर अब कब मिलेंगे हम,
                           न जाने हम कहाँ होंगे,न जाने वो कहीं होगी
उन्होंने छोड़ हमको ,थामा  दामन और कोई का,
                          कमी हम में ही ,निश्चित ही,कुछ न कुछ तो रही होगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'     

शुक्रवार, 6 जून 2014

एक नारी-दुखिया बेचारी

           एक नारी-दुखिया  बेचारी

एक पूरब की नारी और एक दक्षिण की नारी ने,
                एक इटली की नारी की ,बड़ी हालत बिगाड़ी है
एक चौथी भी है जो राज,राजस्थान में करती ,
                 हरा कर इटली वाली को,छीन सब सीट डाली है
वो जब सत्ता में थी पत्ता भी ना हिलता इजाजत बिन,
                  उसीके लोग देते ,उसके शहजादे को गाली  है
जो टस से मस न   होती थी,हिला डाला है लोटस ने,
                  डुबो दी नाव मोदी ने ,बड़ी दुखिया  बिचारी है

घोटू 

गुरुवार, 5 जून 2014

जिंदगी का सफर

        जिंदगी का सफर

टर्मिनस से टर्मिनस तक ,बिछी हुई,लोहे की रेलें
जिन पर चलती रेल गाड़ियां ,कोई पीछे, कोई पहले
कोई तेज और द्रुतगामी,कोई धीमे और रुक रुक कर
स्टेशन से स्टेशन तक ,बस काटा करती है चक्कर
कोई भीड़ भरी पैसेंजर ,तो कोई ऐ. सी. होती है
कोई मालगाड़ियों जैसी ,जो केवल बोझा  ढोती है  
यात्री चढ़ते और उतरते ,हर गाडी में बहुत भीड़ है
हर यात्री की अलग ख़ुशी है,हर यात्री की अलग पीड है
कोई लूटता ,मज़े सफर के,कोई रहता परेशान है
कोई हेंड बेग लटकाये ,कोई के संग ताम झाम  है
अपनी यात्रा कैसे काटें,यह सब तुम पर ही निर्भर है
प्लानिंग सही,रिज़र्वेशन हो ,तो होता आसान सफर है
इन्ही रेल की यात्रा जैसा,होता है अपना जीवन पथ
एक जन्म का टर्मिनस है ,एक मृत्यु का है टर्मिनस
कोई गाड़ी कैसी भी हो,लेकिन सबका पथ है निश्चित
दुर्घटना का ग्रास बनेगी ,अगर हुई जो पथ से विचलित
और हम बैठे हुए ट्रेन में,जीवन का कर रहे सफर है 
रेल गाड़ियां,आती ,जाती,हम तो केवल ,पैसेंजर है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अपना अपना स्वभाव

     अपना अपना स्वभाव

ऊपर के दांत,भले ही ,
नीचे के दांतों के साथ रहते है
मगर  आपस में किटकिटाते ,
और झगड़ते ही रहते है
सबके सब बड़े  सख्त मिजाज है
पर रहते नाजुक सी जिव्हा के साथ है
बिचारी जिव्हा को ,बड़ा ही ,
संभल संभल कर रहना पड़ता है
कभी कभी ,दांतों का,कोप भी सहना पड़ता है
फिर भी जीभ ,अपनी सज्जनता ,नहीं छोड़ती है
दांत के बीच ,यदि कुछ फंस जाता है,
तो उसे टटोल टटोल कर ,निकाल कर ही  छोड़ती है
सुई,तीखी और तेज होती है,चुभती है
मगर चुभे हुए कांटे निकाल देती है
और फटे हुए कपड़ों को टांक देती है
खजूर  का वृक्ष,इतना ऊंचा होते हुए भी ,'
छाया विहीन होता है
और आम ,भले ही छोटा है
पर देता फल और छाँव है
सबका अपना अपना स्वभाव है

 मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

लकीर के फ़कीर

            लकीर के फ़कीर

जो चलते है निश्चित पथ पर ,उनकी यात्रा होती सुखमय
ना तो  ऊबड़ खाबड़ रस्ता ,नहीं भटकने का कोई भय
लोह पटरियां, बिछी रेल की,पथ मजबूत ,बराबर,समतल
निश्चित पथ पर आती,जाती, ट्रेन चला करती है दिन भर
हम लकीर के यदि फ़कीर है ,सुगम जिंदगी का होता पथ
बिन बाधा के ,तीव्र गति से ,चलता रहता  है जीवन रथ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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