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शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

मेरा दिल कमजोर हो गया

             मेरा दिल कमजोर हो गया
तब भी था कमजोर हुआ जब देखा पहली बार तुम्हे
होकर पागल दीवाना सा ,ये कर बैठा  प्यार  तुम्हे
ऐसी डोर बंध गयी फिर तो,तुम्हारे संग नातों में
पड़ जाता कमजोर बिचारा ,तुम्हारी हर  बातों में
इतना तुमने प्यार जताया ,मन आनंद विभोर हो गया
                                    मेरा दिल कमजोर हो गया
फिर बच्चों की जिद या हठ का,इस पर इतना जोर पड़ा
कभी प्यार से या गुस्से से ,ये हरदम  कमजोर  पड़ा
दफ्तर में साहब की घुड़की ,इस दिल को धड़काती  थी
सीमित साधन और बढती मंहगाई  इसे सताती थी
अब तो देखो  ये विद्रोही बनकर के  मुंहजोर   हो   गया
                                      मेरा दिल कमजोर हो गया
धीरे धीरे ,साथ उमर के ,आई ऐसी    कमजोरी
सांस फूलने लग जाती है,करने पर मेहनत  थोड़ी 
डोक्टर ने चेकिंग की और बतलाया कारण मुश्किल का
रक्त प्रवाह हो गया है कम ,तुम्हारे नाजुक   दिल का
बढती उमर ,परेशानी का,अब कुछ ऐसा दौर हो गया
                                      मेरा दिल कमजोर  हो गया

मदन मोहन बहेती'घोटू'
    

आइना

           आइना 
सज संवर कर जब हुई तैयार वो ,
                   देखने  खुद को लगी  ले  आइना 
हम प्रतीक्षा में खड़े  बेचैन है ,
                    और देखो, अब तलक वो आई ना 
खुद से है या आईने से इश्क है,
                     बात अपनी समझ में ये आई  ना 
वो वहां पर और मै हूँ यंहां पर,
                      बहुत चुभती ,और कटे तनहाई  ना             
नहीं मुझको याद ऐसा कोई पल,
                      जब तुम्हारी याद मुझको आई ना 
तरसते है तुम्हारे दीदार को,
                       खुली  आँखें और दिल का आइना 
आते ही जल्दी करोगी जाने की,
                         बात  अपनी इसलिए बन पाई ना 
इस तरह आओ कि जाओ ही नहीं,
                          जिस तरह पहले कभी तुम आई ना 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

ऋतू जब रंग बदलती है

               ऋतू जब रंग बदलती है 

सूरज मंद,छुपे कोहरे में,   आये सर्दी  का  मौसम 
बढ़ जाती है इतनी ठिठुरन,सिहर सिहर जाता है तन 
साँसे,सर्द,शिथिल हो जाती,सहम सहम कर चलती है 
                     ऋतू जब रंग बदलती है 
कितने हरे भरे वृक्षों के , पत्ते      पीले  पड़ जाते 
कर जाते सूना डालों  को,साथ छोड़ कर उड़ जाते  
झड़ते पात पुराने तब ही ,नयी कोंपलें  खिलती है 
                       ऋतू जब रंग बदलती है 
तन जलता है,मन जलता है,सूरज इतना जलता है 
अपना उग्र रूप दिखला कर,जैसे आग उगलता  है 
 उसकी प्रखर तेज किरणों से,सारी  जगती जलती है 
                        ऋतू जब रंग बदलती  है 
आसमान में ,काले काले से ,बादल छा जाते है 
तप्त धरा को शीतल करने,प्रेम नीर बरसाते है 
माटी  जब पानी में घुल कर,उसका रंग बदलती है 
                            ऋतू जब रंग बदलती है 

मदनमोहन बाहेती'घोटू' 

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

अंतर की वेदना

अंतर की वेदना का कोई अंत नहीं
दुःख की संयोजना का कोई पंथ नहीं
जो मेरा है वोह मेरा सर नहीं
जिसमें जीवित हूँ वोह मेरा संसार नहीं
रक्त रंजित अधर हैं फिर भी मैं गा रहा हूँ
रुधिर बहते नयन हैं फिर भी मुस्करा रहा हूँ
व्यक्त हूँ अव्यक्त हूँ आक्रोश हूँ पर मौन हूँ
सत्य सह मैं सत्य पर मिथ्या रहा हूँ
अंतर की वेदना का कोई अंत नहीं अब 'निर्जन'
जो होता है अभिव्यक्त समक्ष वोह सहता ही जा रहा हूँ
सहता ही जा रहा हूँ...

बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

जीवन बोध

           जीवन बोध

आगम बोध,प्रसूति गृह में,निगमबोध श्मसान में
जीवनबोध  बड़ी मुश्किल से ,आता है इंसान में
आता जब मानव दुनिया में ,होता उसको बोध कहाँ
भोलाभाला निश्छल बचपन,काम नहीं और क्रोध कहाँ
और जब जाता है तो उसको,बोध कहाँ रह पाता  है
खाली हाथ  लिए आता  है,खाली हाथों  जाता है
जिन के खातिर ,सारा जीवन,रहता है खटपट करता
नाते जाते छूट सभी से, सांस आखरी जब  भरता
जीवन भर चिंता में जलता,चिता जलाती मरने पर
एक राख की ढेरी बन कर ,रह जाता  अस्थिपंजर
कंचन काया ,जिस पर रहता ,था अभिमान जवानी में
अस्थि राख बन ,तर जाते है ,गंगाजी के  पानी में
उसे बोध है,मृत्यु अटल है,फिर भी है अनजाना सा
मोह माया के चक्कर में फस,रहता है दीवाना  सा
पास फ़ैल होता रहता है,जीवन के  इम्तिहान में
जीवनबोध  बड़ी मुश्किल से ,आता है इंसान में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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