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गुरुवार, 16 अगस्त 2012

ये बुड्डा मॉडर्न हो गया

ये बुड्डा मॉडर्न हो गया

उम्र का आखरी पड़ाव  है करीब आया,

   मज़ा भपूर मोडर्न होके मै  उठाता हूँ
पहन कर जींस,कसी कसी हुई टी शर्टें,
   दाल रोटी के बदले रोज पीज़ा खाता हूँ
अपने उजले सफ़ेद बालों को रंग कर काला,
     मोड सी स्टाईल में ,उनको सजा देता हूँ
बड़े से काले से गोगल को पहन,मै खुलकर,
     ताकने  ,झाँकने का खूब मज़ा लेता हूँ
नमस्ते,रामराम या प्रणाम भूल गया,
      'हाय 'और ' बाय' से अब बातचीत होती है
फाग का रंग नहीं ,अब तो 'वेलेनटाइन डे' पर ,      
       लाल गुलाब ही देकर के प्रीत  होती है
वैसे तो थोड़ी समझ में मुझे कम आती है,
       आजकल देखने लगा हूँ फिलम अंग्रेजी
उमर के साथ अगर हो रहा हूँ मै मॉडर्न,
       लोग क्यों कहते हैं कि हो रहा हूँ मै क्रेजी
सवेरे जाता हूँ जिम,सायकिलिंग भी  करता हूँ,
       कभी स्टीम कभी सोना बाथ लेता हूँ
और स्विमिंग पूल जाता तैरने के लिए,
         अपनी बुढिया को भी अपने साथ लेता हूँ
 बड़ी कोशिश है कि फिट रहूँ,जवान रहूँ,
         जाके मै पार्लर में फेशियल भी करता  हूँ
आदमी सोचता है जैसा वैसा रहता है,
         बस यही सोच कर ,ये सारे शगल करता हूँ
  घर में मै,आजकल,न कुरता,पजामा ,लुंगी,
        पहनता स्लीव लेस शर्ट और बरमूडा
सैर करता हूँ विदेशों कि,घूमता,फिरता,
        तभी तो लगता टनाटन है  तुमको ये बुड्डा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सवेरे सवेरे नींद बड़ी जोर से आती है

सवेरे सवेरे नींद बड़ी जोर से आती है

बेटियां,

यूं तो माइके में,नोर्मल सी ,
हंसी ख़ुशी रहती है,
पर गले मिल मिल कर रोती है,
जब ससुराल जाती है
राजनेतिक पार्टियाँ,
यूं तो दुनिया भर के टेक्स लगाती है,
पर चुनाव के पहले,
राहत का अम्बार लुटाती,
सुनहरे सपने दिखाती है
दीपक की लौ ,
यूं तो नोर्मल सी जलती रहती,
पर जब बुझने को होती,
बहुत चमक देती है,
फडफडाती है
वैसे ही नींद सारी रात ,
यूं ही आती जाती रहती है ,
पर  सुबह जब,
 उठने का समय होता है
सवेरे नींद बड़ी जोर से ही आती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 15 अगस्त 2012

सवेरे सवेरे नींद बड़ी जोर से आती है

सवेरे सवेरे नींद बड़ी जोर से आती है

बेटियां,

यूं तो माइके में,नोर्मल सी ,
हंसी ख़ुशी रहती है,
पर गले मिल मिल कर रोती है,
जब ससुराल जाती है
राजनेतिक पार्टियाँ,
यूं तो दुनिया भर के टेक्स लगाती है,
पर चुनाव के पहले,
राहत का अम्बार लुटाती,
सुनहरे सपने दिखाती है
दीपक की लौ ,
यूं तो नोर्मल सी जलती रहती,
पर जब बुझने को होती,
बहुत चमक देती है,
फडफडाती है
वैसे ही नींद सारी रात ,
यूं ही आती जाती रहती है ,
पर  सुबह जब,
 उठने का समय होता है
सवेरे नींद बड़ी जोर से ही आती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

फिर भी हम कहते,हम इंडीपेंडेंट है

फिर भी हम कहते,हम इंडीपेंडेंट है

आम आदमी की तरह,जमीन से जुड़े है

हाथ हमारे हमेशा,आपस में  जुड़े है
सब अपने अपने काम धाम से जुड़े है
कई दलों ने आपस में जुड़ कर,
बनायी भारत की गवेर्नमेंट  है
फिर भी हम कहते ,हम इंडीपेंडेंट है
फसल के लिये हम मानसून पर निर्भर है
पेट्रोलियम के लिये,हम खाड़ी देशों पर निर्भर है
विकास के लिये ,विदेशी सहायता पर निर्भर है
 हर जरूरत की चीज के लिये,
हम किसी ना किसी पर डिपेंडेंट है  
फिर भी हम कहते ,हम इंडीपेंडेंट है
हम सब आस्था और संस्कार से बंधे है
हम परंपरा और  व्यवहार से बंधे है
हम शादी और  परिवार से  बंधे  है
कितने ही देशों से हमने कर रखे ,
संधि,ट्रीटी और कई एग्रीमेंट  है
फिर भी हम कहते,हम इंडीपेंडेंट है
 बॉस  के इशारों पर,नाचते है हम
बच्चों की जिदों पर,नाचते है हम
बीबी के इशारों पर ,नाचतें है हम
पत्नी के आज्ञा मानने वाले ,
सबसे ओबीडियन्ट सर्वेन्ट है
फिर भी हम कहते,हम इंडीपेंडेंट  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

मंगलवार, 14 अगस्त 2012

एक कतरा लहू का मेरे बस देश के काम आये


नहीं चाहता मखमल के गद्दे में मुझको आराम आये,
नहीं चाहता व्यापार में मेरा कोई बड़ा दाम आये,
चाहत मेरी बड़ी नहीं बस छोटी सी ही है,
एक कतरा लहू का मेरे बस देश के काम आये |
                                          
नहीं चाहता लाखों की लौटरी कोई मेरे नाम आये,
नहीं चाहता खुशियों भरा बहुत बड़ा कोई पैगाम आये,
ख्वाहिश मेरी ज्यादा नहीं बस थोड़ी सी ही है,
एक कतरा लहू का मेरे बस देश के काम आये |

नहीं चाहता मधुशाला में मेरे लिए अच्छा जाम आये,
नहीं चाहता फायदा भरा बहुत बड़ा कोई काम आये,
सपने  मेरे अनेक नहीं बस एक ही तो है,
एक कतरा लहू का मेरे बस देश के काम आये |

नहीं चाहता प्रसिद्धि हो, नाम मेरा हर जुबान आये,
नहीं चाहता जीवन में कोई अच्छा बड़ा उफान आये,
इश्वर से दुआ मेरी बस इतनी सी ही है,
एक कतरा लहू का मेरे बस देश के काम आये |

नहीं कोई देशभक्त बड़ा मैं, नहीं देश का लाल बड़ा,
पर दिल में एक ज्वाला सी है, देश हित करूँ कुछ  काम बड़ा,
भारत माँ के चरणों में नत एक बात मन में आये,
एक कतरा लहू का मेरे बस देश के काम आये |

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