एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

रविवार, 11 दिसंबर 2011

कुंड़लिया ----- दिलबाग विर्क


  आशा से संसार है, रखना दिल में आस 
 मंजिल होगी पास में, करते रहो प्रयास ।
 करते रहो प्रयास , झोंक दो पूरी ताकत 
 जीवन होगा सफल, न टिक पाएगी आफत ।
 मत डालो हथियार, हराती हमें हताशा 
 कहत विर्क कविराय, अमृतधार है आशा ।

                         --------- साहित्य सुरभि

                                  * * * * *

शनिवार, 10 दिसंबर 2011

जैसे जैसे दिन ढलता है------

जैसे जैसे दिन ढलता है------
---------------------------
जैसे जैसे दिन ढलता है ,परछाई लम्बी होती है
जब दीपक बुझने को होता,बढ़ जाती उसकी ज्योति है
सूरज जब उगता या ढलता,
                            उसमे होती है शीतलता
इसीलिए वो खुद से ज्यादा,
                             साये को है लम्बा करता
और जब सूरज सर पर चढ़ता,
                              उसका अहम् बहुत बढ़ता है
दोपहरी के प्रखर तेज के,
                               भय से  साया भी  डरता है
परछाई बेबस होती  है,और डर कर  छोटी होती है
जैसे जैसे दिन ढलता है,परछाई लम्बी होती है
आसमान में ऊँची उड़ कर,
                               कई पतंगें इठलाती है
मगर डोर है हाथ और के,
                            वो ये बात भूल  जाती है
उनके  इतने ऊपर उठने ,
                            में कितना सहयोग हवा का
जब तक मौसम मेहरबान है,
                            लहराती है विजय पताका
कब रुख बदले हवा,जाय गिर,इसकी सुधि नहीं होती है
जैसे जैसे दिन ढलता है,परछाई लम्बी होती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

गजल - दिलबाग विर्क




                        इस दिल ने नादानी में
                   आग लगा दी पानी में ।

                   वा'दे सारे खाक हुए
                   आया मोड़ कहानी में ।

                   तेरी याद चली आए
                   है ये दोष निशानी में ।

                   कब उल्फत को समझ सके
                   लोग फँसे नादानी में ।

                   या रब ऐसा क्यों होता 
                   दुख हर प्यार कहानी में ।

                   टूटा दिल, बहते आँसू
                   पाए विर्क जवानी में ।

                         * * * * *

सोमवार, 5 दिसंबर 2011

लिख रहीं हूँ एक ग़ज़ल मैं


लिख रहीं हूँ एक ग़ज़ल मैं ,
आवाज दे अपनी सामने लाऊँगी
तैयार कर धुन उसकी
सबको वो ग़ज़ल सुनाऊंगी
अभी तो लिख रही हूँ फिर
बाद परीक्षा के सुना पाऊँगी
लिख रहीं हूँ एक ग़ज़ल मैं
आवाज़ दे अपनी सामने लाऊँगी
कुछ महकी बात सुनाऊंगी
कुछ हँसाती सी कुछ रुलाती सी
वो ग़ज़ल जल्द ही ले आऊँगी
थोडा इंतज़ार कर लीजिये
फिर तो इसकी धुन मैं
आपके कानों तक पहुंचाऊँगी
बस मैं गुनगुनाती जाऊँगी
लिख रहीं हूँ एक ग़ज़ल मैं
आवाज़ दे अपनी सामने लाऊँगी

तो मिलते हैं परीक्षा के बाद !!!!!!!!
- दीप्ति शर्मा

रविवार, 4 दिसंबर 2011

तुम भी स्वतंत्र,हम भी स्वतंत्र

तुम भी स्वतंत्र,हम भी स्वतंत्र
-----------------------------------
तुम भी  स्वतंत्र,हम भी स्वतंत्र
भैया ये    तो  है    प्रजातंत्र
अपने अपने ढंग से जीयो,
सुख शांति का है यही मन्त्र
तुम वही करो जो तुम चाहो,
हम वही करे ,जो हम चाहे 
फिर इक दूजे के कामो में,
हम टांग भला क्यों अटकाएं
जब अलग अलग अपने रस्ते,
तो आपस में क्यों हो भिडंत
तुम भी स्वतंत्र,हम भी स्वतंत्र
तुम गतिवान खरगोश और,
हम मंथर गति चलते कछुवे
तुम  प्रगतिशील हो नवयुगीन,
हम परम्परा के पिछ्लगुवे
हम है दो उलटी धारायें,
तुम तेज बहो,हम बहे मंद
तुम भी स्वतंत्र,हम भी स्वतंत्र
तुम नव सरिता से उच्श्रंखल ,
हम स्थिर, भरे सरोवर से
तुम उड़ते बादल से चंचल,
हम ठहरे है,नीलाम्बर से
है भिन्न भिन्न प्रकृति अपनी,
हम दोनों का है भिन्न  पंथ
हम भी स्वतंत्र,तुम भी स्वतंत्र
फिर आपस में क्यों हो भिडंत

मदन मोहन बहेती'घोटू'




हलचल अन्य ब्लोगों से 1-