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गुरुवार, 29 सितंबर 2011

लंका दहन

लंका दहन
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लंका का राजा रावण,
था महान वैज्ञानिक ,
और उसकी सोच थी,
बड़ी आधुनिक
उसके पास,आधुनिकतम,
हथियारों का भंडार था
उसका खुद का हेलिकोप्टर,पुष्पक,
बेमिसाल था
उसने जब लंका का टाउन प्लानिग किया
जल वितरण के लिए,नलों की व्यवस्था की,
लोग बोले, उसने वरुण को कैद कर लिया
 लंका के सारे घरों का डिजाइन एक जैसा करवाया
सभी भवनों के शिखरों को सोने से मंडवाया
इसीलिए लंका,सोने की लंका कहलाई
पर बाद में इसी ने मुसीबत ढाई
बाकि तो सब ठीक था
पर उसका सिविल मेंटेनन्स विभाग ,
थोडा वीक था
सीताजी की तलाश में,
हनुमानजी ने ,जब लंका का हर घर खंगाला था
तो कई छतों पर,
सोने की परत उखड़ी पड़ी थी,
नीचे कुछ काला काला था
हनुमानजी ने जब विवेचन किया
तो पाया की काली काली चपड़ी थी,
जिस पर था सोने के पतरे को मड दिया
और अंत में जब सीताजी ,
रावण के फार्महाउस 'अशोक वाटिका' में मिली
 और रावण द्वारा पकडे जाने पर,
हनुमानजी की पूँछ जली
कहते है हनुमानजी का दिमाग,
कंप्यूटर से भी तेज था,
उन्हें छतों पर,सोने की परत के नीचे,
काली काली चपड़ी की याद आई
तो उन्होंने छतों पर छलांग लगायी
और क्योंकि चपड़ी ,बहुत ज्वलनशील होती है,
उसमे आग लग गयी
और सोने की लंका जल गयी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुधवार, 28 सितंबर 2011

रावण दहन


खुद ही बनाते हैं, खुद ही जलाते हैं,
यूँ कहें कि हम अपनी भड़ास मिटाते हैं |

समाज में रावण फैले कई रूप में यारों,
पर उनसे तो कभी न पार हम पाते हैं |

रावण दहन के रूप में एक रोष हम जताते हैं,
समाज के रावण का खुन्नस पुतले पे दिखाते हैं |

उसी रावण की तरह होता है हर एक रावण,
पुतले की तरह हर रावण को हम ही उपजाते हैं |

हर भ्रष्टाचारी, व्यभिचारी एक रावण ही तो है,
यहाँ तक कि हम सब अपने अंदर एक रावण छुपाते हैं |

इन सब से मुक्ति शायद बस की अब बात नहीं,
इसलिए रावण दहन कर अपनी भड़ास हम मिटाते हैं |

मंगलवार, 27 सितंबर 2011

आओ हम तुम जम कर जीमें

आओ हम तुम जम कर जीमें
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आओ हम तुम जम कर जीमें
तुम भी खाओ,हम भी खायें,बैठ एक पंक्ति में
आओ हम तुम जम कर जीमें
जनता के पैसे से चलता है ये सब भंडारा
रोज रोज ही भोग लगाता ,अपना कुनबा सारा
पत्तल पुरस,बैठ पंगत में,खायें,जो हो जी में
आओ हम तुम जम कर जीमें
जब तक बैठे हैं कुर्सी पर,जम कर मौज  उड़ायें
देशी घी की बनी मिठाई, जा विदेश में   खायें
अपने घर को जम कर भर लें,थोडा धीमे धीमे
आओ हम तुम जम कर जीमें
लेकिन बस उतना ही खायें,हो आसान पचाना
वर्ना जा तिहार का खाना,हमें पड़ेगा  खाना
जाने कल फिर से हो,ना हो,पाँचों उंगली घी में
आओ हम तुम जम कर जीमें

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

सोमवार, 26 सितंबर 2011

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर
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हमारी स्वतंत्र भारत माता को,
सीता की तरह,
भ्रष्ट राजनीतिज्ञ रावणों ने,
कैद कर  रखा रखा है,
हे हनुमान!
उनकी सोने की लंका को जलाओ,
और सीता को छुड़ाओ
मंहगाई सुरसा की तरह,
अपना मुंह फाड़ती ही  जा रही है,
गरीब जनता,बत्तीस रूपये प्रति दिन में,
कैसे लघु रूप धारण कर,बाहर निकले,
हे हनुमान!इतना बतलादो
आम जनता,राम की सेना सी,
समुद्र के इस पार खड़ी है,
और दूसरी ओर,
 सत्ताधारियों की सोने की लंका है ,
इस दूरी को पाटने के लिए,
एक सेतु का निर्माण जरूरी है,
पर एक दुसरे पर पत्थर फेंके जा रहे है,
हे हनुमान!राम का नाम लिखवा कर,
इन पत्थरों को तैरा दो
देश की व्यवस्थाएं
राम और लक्ष्मण जैसी,
भ्रष्टाचार के नागपाश में बंधी है,
हे बजरंगबली! अपने अन्ना जैसे,
गरुड़ मित्र को बुलवा कर,
नागपाश कटवा दो
गरीबी और भुखमरी के ,
ब्रह्मास्त्र की मार ने,
आम आदमी को,
लक्ष्मण  जैसा मूर्छित कर रखा है,
हे पवन पुत्र!
स्वीजरलेंड में जमा,संजीवनी बूंटी लाओ ,
और सबको पुनर्जीवन दिलवा  दो
सत्तारूढ़ दशानन का अहंकार,
दिन ब दिन बढ़ता  ही जा रहा है,
हे अन्जनिनंदन!
अब समय आ गया है,
रावन का दहन करा दो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 24 सितंबर 2011

मेरी परम प्रिया,जलेबी

मेरी परम प्रिया-जलेबी
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पीत वर्णा,
वक्र बदना
कमनीय काया धारिणी,
सुंदरी!
जैसे,अग्नि तपित स्निग्ध कुंड में,
स्नानोपरांत,
रस कुंड से रसरंजित हो,
उतर आई हो,
कोई महकती हुई परी
तुम्हे देख कर
मेरे अधर,
लालायित हो जाते हैं,
करने को तुम्हारा चुम्बन
तुम्हारे सामीप्य से,
एक तृष्णा सी जग जाती है,
और तुम्हे पाने को मचल जाता है मन
तुम्हारी मिठास
देती है एक अवर्णनीय ,
तृप्ति का आभास
स्वर्णिम आभा लिए,
तुम्हारी अष्टावक्र काया
मेरे मन को,
जितना आनंद से है भिगोती
उतना सुख तुम शायद ही दे पाती,
यदि तुम कनक छड़ी सी सीधी होती
मै मधुमेह पीड़ित,
मोहित रहता हूँ,
देख कर तुम्हारी मधुरता
सब कुछ बिसरा कर,
तुम्हारे रसपान का सुख,
भोगने से वंचित नहीं रह सकता
क्योंकि तुम मनभावन,हो ही ऐसी
मेरी परम प्रिया,जलेबी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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