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शनिवार, 8 जून 2013

इस हाथ देना -उस हाथ लेना

     
          इस हाथ देना -उस हाथ लेना 

हम गाय को घास डालते है ,
ये सोच कर कि  दूध मिलेगा 
शादी में बहू को गहने चढाते है,
इस उम्मीद से कि वंश बढेगा 
बीबी की हर बात मानते है ,
क्योंकि उससे प्यार है पाना 
कुछ पाने की आशा में ,कुछ चढ़ाना ,
ये तो है चलन पुराना 
अब आप इसे रिश्वत कह दो ,
या दे दो कोई भी नाम 
पर ये तो इन्वेस्मेंट है ,
जिससे हो जाते है बड़े बड़े काम 
जब हम मंदिर में चढ़ावा चढाते है ,
या कोई दान करते है 
भगवान् हमें कई गुना देगा,
ये अरमान रखते है 
और काम हो जाने पर,
भगवान को परसाद चढाते है 
भगवान को दो प़ेडे,
और बाकी प्रशाद खुद खाते है 
जिस मंदिर में मनोकामना पूर्ण होती है ,
वहीँ पर लोग उमड़ते है 
सब इन्वेस्टर है,जहाँ अच्छा रिटर्न है,
वहीँ  इन्वेस्ट करते है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 
 

अन्दर की बात

              अन्दर की बात 
               
समुन्दर  का हुआ मंथन ,निकले थे चौदह रतन ,
उनमे से एक चाँद भी था ,वो कहानी याद  है 
छोड़ कर निज पिता  का घर,आसमां में जा बसा ,
समुन्दर तो है पिताजी ,और बेटा चाँद है 
पूर्णिमा को पास दिखता ,तो हिलोरें मारता ,
बाप का दिल करता है की जाकर बेटे से मिले 
और अमावस्या के दिन  जब वो नज़र आता नहीं,
परेशां होता समुन्दर ,बढती दिल की हलचलें 
चाँद के संग ,समुन्दर से ही थी प्रकटी  लक्ष्मी ,
वारुणी ,अमृत,हलाहल,भाई और बहना हुये 
पत्नी जी गृहलक्ष्मी है ,चाँद उनका भाई है ,
इसी  कारण चंद्रमाजी ,बच्चों के  मामा हुये 
वारूणी ,साली हमारी ,है बड़ी ही नशीली ,
पत्नीजी ने भाई बहनों से है उनका  गुण लिया 
होती है नाराज तो लगती हलाहल की तरह,
प्यार करती,ऐसा लगता ,जैसे अमृत घट पिया 
ससुरजी ,खारे समुन्दर ,रत्नाकर कहते है सब,
पर बड़े कंजूस है ,देते न कुछ  भी  माल है 
बात ये अन्दर की है पर आप खुद ही समझ लो,
जिसके तेरह साले ,साली,कैसा उसका  हाल है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 7 जून 2013

मियानी

   

सफ़ेद कुर्ता और कसा पायजामा          
आप पर बहुत  फबता है ये जामा 
खींसे निपोर और हाथ जोड़ ,
आप जब मुस्कराते है 
रंगे हुये सियार नज़र आते है 
बाहर से तो दिखते है बड़े चगे 
पर आप भी जानते है और हम भी,
कि आप अन्दर से है कितने नंगे 
आपको एक मशवरा है ,
 अच्छा लगे तो मान जाइयेगा 
ज्यादा पैर मत फ़ैलाइयेगा 
वरना आपके तंग पायजामे की ,
मियानी उधड़ जायेगी 
और आपकी नंगई ,
सबके सामने नज़र आ जायेगी 

घोटू 

दुनिया के रंग

           दुनिया के रंग 
        
इस दुनिया के कई रंग है 
कोई का दिल बड़ा  तंग है 
कोई के मन में  उमंग  है 
सबके अपने पृथक ढ़ंग है 
             बाहर से दिखता सफ़ेद पर 
              देखो यदि त्रिपार्श्व लगा कर 
             सतरंगी  दिखता है  मंज़र 
             खूब मज़ा लो इसका जी भर 
ये दुनिया तो सतरंगी है 
तृप्त कभी,भूखी नंगी  है 
कभी अजब है ,बेढंगी है 
दानी भी है,भिखमंगी  है 
              कोई मुहब्बत में है डूबा 
              तो कोई नफरत में डूबा 
              कोई इस दुनिया से ऊबा  
               सबका अलग अलग मंसूबा 
कोई लगा कमाने में है 
कोई लगा लुटाने में है 
कोई लगा बनाने  में है 
कोई लगा गिराने में है 
                कोई मालामाल बहुत है
                तो कोई कंगाल बहुत है 
                कोई तो खुशहाल बहुत है  
                तो कोई बदहाल बहुत है 
कोई भूखा रहे बिचारा 
तो फिर कोई अपच का मारा 
खा न सके ,तरसे बेचारा 
कोई फिरता मारा मारा 
                  तो कोई बीमार बहुत है 
                   दुखी और लाचार बहुत है 
                   तो कोई दमदार  बहुत है 
                    बहुरंगी  संसार  बहुत है 
मीठा मीठा सबसे बोलो 
अंतर्मन की आँखें खोलो 
सबके मन में प्यार संजोलो  
सबको एक तराजू तौलो 
                     सदविचार का चश्मा पहनो 
                      संस्कार का चश्मा  पहनो 
                      सदा  प्यार का चश्मा पहनो 
                       सदाचार का चश्मा पहनो 
धुन्धलाहट सब मिट जायेगी 
दुनिया साफ़ नज़र आयेगी 
प्रेम लगन जब लग जायेगी 
सदा जिन्दगी मुस्कायेगी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

                               

जिन्दगी -चार मुक्तक

         जिन्दगी-चार मुक्तक 
         
                        १ 
 जिन्दगी थी ,खूबसूरत ,जिन पलों में 
  रहे उलझे,सांसारिक , सिलसिलों में 
   फेर में नन्यान्वे के रहे फंस  कर ,
  फायदे  ,नुक्सान की ही अटकलों में 
                         २ 
   हमें अच्छा या बुरा कुछ  दिख न पाया 
  भटकता  ही रहा ये मन, टिक न पाया 
  अभी तक  हिसाब ये हम कर न पाये ,
  हमने क्या क्या खोया और क्या क्या कमाया 
                          ३    
   जिन्दगी का मुल्य हम ना जान पाये 
    आपाधापी में यूं ही बस दिन बिताये 
    व्यर्थ की ही उलझनों में रहे उलझे ,
    अधूरी रह गयी मन की कामनायें 
                           ४ 
    सांझ आयी ,सूर्य ढलने लग गया है 
    उम्र का ये दौर  ,खलने  लग गया है 
    जितना भी हो सके,जीवन का मज़ा लें,
    ख्याल मन में ये  मचलने लग गया है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुढापे की खुराक

          बुढापे की खुराक 
          
खा लिया करते थे 'घोटू',पाच छह गुलाब जामुन ,
                उम्र का एसा असर है ,सिर्फ  जामुन खा रहे है 
दिल जलाया ,जलेबी ने,और रसगुल्ला हुआ गुल,
                  खीर खाना अब मना है,सिर्फ खीरा   खा रहे है 
भूल करके गर्म हलवा ,करेले का ज्यूस कड़वा ,
                    लूखी रोटी ,फीकी सब्जी, कैसे भी गटका रहे है  
तली चीजों पर है ताला ,चाय ,काफी पड़ी फीकी ,
                      शुगर  ना बढ़ जाए तन में,इसलिये घबरा रहे है 

  'घोटू'

बुजुर्गों का आशीर्वाद

                  
                       बुजुर्गों का आशीर्वाद 

प्रगति पथ पर जब भी बढ़ता आदमी ,
                        चढ़ने लगता तरक्की की सीढियां 
एक उसके कर्म से या भाग्य से ,
                         जाती है तर ,कई उसकी  पीड़ियाँ 
बनाता पगडंडियो को है सड़क ,
                         साफ़ होती राह जिसके काम से 
उसकी मेहनत का ही ये होता असर ,
                          सबकी गाडी  चलती  है आराम से 
बीज बोता ,उगाता है सींचता ,
                            वृक्ष होता तब कहीं फलदार  है 
खा रहे हम आज फल ,मीठे सरस ,
                             ये बुजुर्गों का दिया  उपहार  है 
आओ श्रद्धा से नमाये सर उन्हें ,
                               आज जो कुछ भी है,उनकी देन है 
उनके आशीर्वाद से ही हमारी ,
                                जिन्दगी में अमन है और चैन  है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'     

गुरुवार, 6 जून 2013

प्यार की बरसात करदे

      
        प्यार की बरसात करदे 

छा रहे बादल घनेरे 
पास आकर मीत मेरे 
घन भले ,बरसे न बरसे ,प्यार की बरसात कर दे 
चाँद बादल में छुपा है 
मुख तुम्हारा चंद्रमा है 
चांदनी में नहा कर हम,सुहानी ये रात  कर दें 
उष्म मौसम है ,उमस है 
बड़ी मन में कशमकश है 
पास आओ,साथ मिल कर,पंख फैला कर उड़े हम 
मै हूँ पानी ,तुम हो चन्दन 
बाँध कर बाहों का बंधन 
एक दूजे में समायें, एक दूजे संग  जुड़े  हम 
हर तरफ बस प्यार बरसे 
प्रीत की मधु धार बरसे 
हवाएं शीतल बहे और हो हरेक मौसम सुहाना 
पुष्प विकसे,मुस्कराये 
बहारे हर तरफ  छाये 
और भवरे गुनगुनाये ,प्यार का मादक खजाना 
मिलन रस में माधुरी है 
जिन्दगी खुशियाँ भरी है 
जिन्दगी महके सभी की ,कोई ऐसी बात कर दें 
छा रहे बादल घनेरे 
पास आकर मीत मेरे 
घन भले बरसे न बरसे ,प्यार की बरसात कर दें 

 मदन मोहन बाहेती 'घोटू'     

आज तुम जब नहाई होगी

       आज तुम  जब नहाई होगी 
       
                          आज तुम जब नहाई  होगी 
देख खुद को आईने में ,मुदित हो मुस्काई होगी 
                           आज तुम जब नहाई होगी 
विधी ने  तुम पर् लुटाया ,रूप का अनुपम खजाना 
किया घायल सैकड़ों को ,बनाया पागल दीवाना 
गुलाबों की मधुर आभा ,गाल पर तेरे बिखेरी 
बादलों की कालिमा सी ,सजाई जुल्फें घनेरी 
और अधरों में भरी है,सुधा संचित  प्रेम रस की,
आईने में स्वयं का चुम्बन किया ,शरमाई होगी 
                             आज तुम जब नहाई होगी 
कदली के स्तंभ ऊपर ,देख निज चंचल जवानी 
डाल चितवन,स्वयं पर तुम हो गयी होगी दीवानी 
देख  अमृत कलश उन्नत,बदन की  शोभा  बढाते 
झुका करके नज़र देखा उन्हें होगा ,पर लजाते 
भिन्न कोणों से निहारा होगा निज तन के गठन को ,
संगेमरमर सा सुहाना ,बदन लख, इतराई  होगी 
                             आज तुम जब नहाई होगी 
पडी ठंडी जल फुहारें ,मगर ये तन जला होगा 
स्वयं अपने हाथ से जब बदन अपना मला होगा 
स्निग्ध कोमल कमल तन से बहा होगा जल फिसल कर 
चाहता था संग रहना  ,मगर टिक पाया न पल भर 
रहा सूखा तौलिया ,तन रस न पी पाया अभागा ,
किन्तु खुश स्पर्श से था ,तुमने ली  अंगडाई होगी 
                                आज तुम जब नहाई होगी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 5 जून 2013

आओ पर्यावरण बचाएं

पर्यावरण दिवस पर विशेष 
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        आओ पर्यावरण बचाएं 
जबसे भार्या वरण  किया है,
                  और  बंधा वैवाहिक बंधन 
मस्ती भरे स्वच्छ जीवन में ,
                   चिंताओं का  बढ़ा प्रदूषण 
धुल धूसरित हुई हवाएं,
                   मुश्किल लेना सांस हो गया 
खर्चे है हो गए चोगुने ,
                    जीवन में अब त्रास  हो गया 
नित्य नित्य नूतन फरमाईश ,
                    मेरी जेब प्रदूषित करती 
कितनी करे सफाई कोई,
                      मुश्किल हर दिन दूनी बढ़ती
लोभ मोह और कपट क्रोध का,
                       इतना  कचरा इसमें डाला 
निर्मल  स्वच्छ धार गंगा की,
                       आज रह  गयी बन कर नाला    
मुक्त करें इसको कचरे से ,
                         निर्मल,सुन्दर, स्वच्छ बनाएं 
         आओ,पर्यावरण  बचाएं 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 4 जून 2013

रसीले रिश्ते

            रसीले  रिश्ते 
            
                       
               पत्नी 
पत्नियाँ ,फ्रिज में रखी ,घर की मिठाई 
जब भी जी  चाहे ,गरम कर,जाए खायी  
प्यार करती तो लगे मख्खन मलाई 
 सर्दियों से बचाती ,बन कर रजाई 
                 साली 
सालियाँ तो जलेबी ,गरमागरम है 
स्वाद पाने,बनना पड़ता ,बेशरम है 
टेडी मेडी ,रस भरी है, अटपटी  है 
मगर सुन्दर,शोख ,चंचल,चटपटी है 
                 साला 
पत्नी जी का भाई जो होता है साला 
बड़ा तीखा ,तेज है इसमें  मसाला 
अनुभवी जो लोग है ,सब ये कहे है 
इसे खुश रख्खो तो बीबी खुश रहे है 
            सास-ससुर 
सास का अहसास होता बड़ा प्यारा 
जिसे है दामाद ,बेटी से दुलारा 
और ससुर के साथ सुर में सुर मिलाओ 
पत्नी भी खुश,लुफ्त जीवन का उठाओ 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'                  

सोमवार, 3 जून 2013

शुक्रिया

             शुक्रिया 
        
आपने हमको दिये  ,दो पल ख़ुशी के ,
                            तहे दिल से आपका है शुक्रिया 
चंद  लम्हे ,मुस्कराहट और खुशी के,
                              तहे दिल से आपका है शुक्रिया 
पोंछ आंसू सभी डाले  ,बेबसी के,
                               तहे दिल से आपका है शुक्रिया 
और  बिखेरे रंग सुन्दर जिन्दगी के ,
                                 तहे दिल से आपका है शुक्रिया 
हम हैं जो भी,आपकी ही है बदौलत ,
                                 तहे दिल से आपका है  शुक्रिया 
आप ही जीवन की पूँजी और दौलत,
                                  तहे दिल से आपका है  शुक्रिया 
आपने दी है हमें सच्ची  महोब्बत ,
                                  तहे दिल   से आपका है  शुक्रिया 
आपका अहसान हम पर उमर भर तक,
                                   तहे दिल से आपका है शुक्रिया 

मदन  मोहन बाहेती'घोटू'

उलझनों में फंसा जीवन

       उलझनों में फंसा जीवन 
        
बिना भोजन ,भजन कोई क्या करेगा 
ह्रदय चिंतित,कोई चिंतन क्या  करेंगा 
 आग की है तपन जब तन को तपाती,
हाथ जलते,  हवन कोई क्या  करेगा 
मूर्तियां परसाद जो खाने लगे तो,
चढ़ा व्यंजन,कोई पूजन  ,क्या करेगा 
पास ना धन और यदि ना कोई साधन ,
तीर्थ में जा ,कोई वंदन  क्या करेगा 
गंगा में डुबकी लगा कर पाप धुलते ,
पुण्य और सत्कर्म कोई  क्या करेगा 
आजकल के गुरु,गुरुघंटाल है सब,
कोई निज सर्वस्व अर्पण क्या करेगा 
हाथ में माला ,सुमरनी , पढ़े गीता,
मगर चंचल ,भटकता मन ,क्या करेगा 
इधर जाऊं,उधर जाऊं,क्या करूं मै ,
उलझनों में फंसा जीवन,क्या करेगा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

रविवार, 2 जून 2013

अंगूठा -सबसे अनूठा


बंद कर मुट्ठी को,ऊपर अंगूठा करो,
                      इसे कहते  थम्स अप ,मतलब सब ठीक है 
बंद  कर  मुट्ठी को,नीचे अंगूठा करो,
                       लिफ्ट तुमको चाहिए ,ये  इसका प्रतीक है 
उंगली ,अंगूठे साथ ,होता जब चोडा हाथ,
                        या तो मारे झापट या फिर मांगे भीख  है 
काम निकल जाने पर,अंगूठा दिखाते सब,
                        किसी पे भरोसा नहीं करो ये ही सीख  है 

'घोटू ' 

स्वर

       स्वर 
      
       हर उमंग में स्वर होता है 
       हर तरंग में स्वर  होता है 
उड़ पतंग ऊपर जाती है 
बीच हवा में इठलाती  है 
आसमान में चढ़ी हुई है 
पर डोरी से बंधी  हुई है 
डोर थाम देखो तुम कुछ क्षण 
उंगली पर तुम उसकी थिरकन 
       कर महसूस ,जान पाओगे ,
       हर  पतंग में   स्वर होता है 
जब आती यौवन की बेला 
ये मन रह ना पाए अकेला 
प्यार पनपता  है  जीवन में 
कोई  बस जाता है मन में 
जीवन में छा जाते रंग  है 
और मन में उठती तरंग है 
       प्रीत किसी से कर के देखो,
        प्रियतम संग में ,स्वर होता है 
 छोटी  ,लम्बी लोह सलाखें 
अगर ढंग से रखो सजाके 
या फिर लेकर सात कटोरी 
पानी से भर भर कर थोड़ी 
अगर बजाओगे ढंग से तुम 
उसमे से निकलेगी सरगम 
         लोहे में,जल में, बसते स्वर,
          जलतरंग  में स्वर होता है 
नन्ही जूही,श्वेत चमेली 
पुष्पों की खुशबू अलबेली 
मस्त मोगरा,खिलता चम्पा 
रात महकती ,रजनीगन्धा 
और गुलाब की खुशबू मनहर 
मन में देती है  तरंग  भर   
          किसी भ्रमर के दिल से पूछो ,
           हर सुगंध  में स्वर होता  है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अंगूठा

      अंगूठा
    
उंगलिया  छोटी बड़ी है
साथ मिल कर  सब खड़ी है
          मगर गर्वान्वित  अकेला,
            है नज़र  आता  अंगूठा
उंगलियाँ पहने अंगूठी
जड़ी रत्नों से   अनूठी
            नग्न सा ,सबसे अलग पर,
             हमें  दिखलाता  अंगूठा
एक जैसे दिखे   सब है
मगर रेखायें  अलग है
               हरेक दस्तावेज ऊपर ,
               लगाया जाता  अंगूठा
 तिलक मस्तक पर लगाता
उँगलियों के संग   उठाता
                चुटकी भर सिन्दूर लेकर ,
                  मांग   भर  जाता अंगूठा
स्वार्थ हो तब किये जाते
कई कसमे ,कई  वादे
                   निकल जब जाता है मतलब ,
                     दिखाया  जाता  अंगूठा
उँगलियों का साथ पाता
तब कलम वो पकड़ पाता
                        गीत,कवितायें ,कथाएं,
                         तभी  लिख पाता अंगूठा
 गुरु गुड़ ,चेले है शक्कर
शिष्य ना एकलव्य बनकर
                           दक्षिणा में है  चढ़ाता ,
                            मगर दिखलाता अंगूठा
बंधी मुट्ठी लाख की है
खुल गयी तो खाक की है
                       एकता और संगठन का ,
                        पाठ सिखलाता ,अंगूठा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शनिवार, 1 जून 2013

बुढ़ापे ने है निकम्मा कर दिया ...

     

आशिकी का वो ज़माना याद है ,
                       हम रसीले,स्वाद,मीठे  आम थे 
रोज मियां ,मारते थे ,फ़ाक़्ता ,
                       बड़े ही दिलफेंक  और बदनाम थे 
थी जवानी की महक और ताजगी ,
                       जिन्दगी गुलज़ार थी,गुलफाम थे 
बुढापे ने है निकम्मा कर दिया ,
                        वरना हम भी  आदमी थे काम के 
'घोटू '

घोटू की घंटी

         घोटू की घंटी 
       
जब होती पूजा मंदिर में ,बजती घंटी 
जब होती छुट्टी स्कूल में ,बजती घंटी 
जब घर में है कोई आता,  बजती घंटी 
फोन किसी का जब भी आता,बजती घंटी 
चपरासी को साहब बुलाते,  बजती घंटी 
आग बुझाने ,दमकल आते ,बजती घंटी 
जग जाते हम,जब अलार्म की,बजती घंटी 
सुलझे उलझन ,जब दिमाग की,बजती घंटी
जब कोई दिल में जाता बस, बजती घंटी 
शादी करते और गले में  ,बंधती  घंटी 
इसकी टनटन ,करे टनाटन ,बजती घंटी 
और बाद में,जब जाती ठन  ,बजती घंटी 
बिल्ली गले ,बाँधना है जो ,तुमको घंटी 
एक बार,देखो पढ़ कर ,'घोटू की घंटी'
घोटू  

शुक्रवार, 31 मई 2013

आज का मौसम

                 आज का मौसम 
                  
आज ठंडी सी हवाएं चल रही है ,
                       ऐसा लगता है कहीं बरसात आई 
मेरे दिल को बड़ी ठडक मिल गयी है ,
                        देख मुख पर तुम्हारे मुस्कान छाई 
कल तलक तो थी तपिश,मौसम गरम था ,
                        और थपेड़े गरम लू के चल रहे थे 
आपकी नाराजगी से दिल दुखी था ,
                         और विरह की आग में हम जल रहे थे 
बहुत तडफा मन,तुम्हारी याद में था ,
                          आँख कितनी बार मेरी डबडबाई 
आज ठंडी सी हवाएं चल रही है,
                            एसा  लगता है कहीं बरसात आई 
आपका भी हाल होगा हमारे सा,
                            आपको भी याद मेरी आई होगी 
घिरे होंगे याद के बादल घनेरे ,
                             भावनाएं घुमड़ कर मंडराई होगी 
 चाह तुममे भी हमारी जगी होगी,
                              मिलन को बैचैन हो तुम कसमसाई 
आज ठंडी सी हवाएं चल रही है ,
                                   ऐसा लगता है कहीं बरसात आई 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 30 मई 2013

mazza

                  मज़ा 
घास हो जो हरी कोमल,घूमने में है मज़ा 
गुलाबी हो गाल या लब ,चूमने ने है मज़ा 
फलों वाली डाल हो तो , लूमने में है मज़ा 
और नशा हो प्यार का तो,झूमने में है मज़ा 

घोटू 

तुम्हे रात भर नींद न आती

    

        दिन में क्यों इतना सो जाती 
           तुम्हे रात भर नींद आती 
           बार बार करवट लेती हो,
           और जगा मुझको  देती हो  
         मै सारा  दिन मेहनत करता,
        आफिस  में हूँ ,खटपट करता 
        थका हुआ जब घर पर आता 
         खाना  खाता ,और सो जाता 
        तुम टी,वी,के सभी सीरियल 
        देखा करती ,देर रात तक 
         मै  गहरी निद्रा में सोता 
         लेकिन अक्सर ऐसा होता 
         मुझे नींद से उठा,जगा कर 
         तुम पूछा करती ,अलसाकर 
         अजी ,सो रहे हो क्या,जागो 
         क्या टाइम है,ये बतला दो 
          और मुझको लिपटा लेती हो 
          मेरी नींद उड़ा   देती  हो 
           कभी कभी ,दिन में ना सोती 
           तो भी मेरी मुश्किल होती 
           इतने भरती हो खर्राटे 
           कि हम मुश्किल से सो पाते 
           ये तुम्हारा खेल पुराना 
           जैसे भी हो ,मुझे जगाना 
           और सताती रहती ,जब तब 
           सीख कहाँ से आई ,ये सब 
            मुझ पर ढेरो प्यार लुटाती 
            जगा जगा कर हो तडफाती  
             दिन में क्यों इतना सो जाती 
             तुम्हे रात भर,नींद न आती 

      मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
  

थका हुआ घोड़ा

          
            थका  हुआ घोड़ा 

जीवन के कितने ही दुर्गम ,पथ पर सरपट ,भागा दोड़ा 
                                          मै  तो थका हुआ हूँ घोड़ा 
मै हूँ अश्व रवि के रथ का ,करता हूँ ,दिन रात नियंत्रित 
सेवा और परोपकार में, मेरा सारा    जीवन  अर्पित 
कभी ,किसी तांगे  में जुत कर ,लोगों को मंजिल दिलवाई 
कभी किसी दूल्हे को अपनी ,पीठ बिठा ,शादी करवाई 
कितने वीर सैनिको ने थी ,करी सवारी,मुझ पर ,रण  में
' पोलो'और खेल कितने ही ,खेले मैंने  ,क्रीडांगन    में 
राजा और शूरवीरों का ,रहा हमेशा ,प्रिय साथी बन 
उनके रथ को दौडाता था,मै  ही था द्रुतगामी  वाहन 
झाँसीवाली  रानी के संग ,अंग्रेजों  से युद्ध किया था 
अमर सिंह राठौर सरीखे,वीरों के संग ,मरा,जिया था  
महाराणा प्रताप से योद्धा ,बैठे थे मेरी काठी   में 
मेरी टापों के स्वर  अब भी ,गूँज रहे हल्दी घाटी में 
दिया कृष्ण ने अर्जुन को जब,गीता ज्ञान,महाभारत में 
ज्ञान सुधा मैंने भी पी थी ,मै  था   जुता  हुआ उस रथ में 
प्रकटा  था समुद्र मंथन में ,लक्ष्मीजी का मै भाई  हूँ 
मै शक्ती का मापदंड हूँ , अश्व -शक्ती की मै  इकाई  हूँ  
हुआ अशक्त मशीनी युग में ,लोगों ने मेरा संग छोड़ा 
                                       मै  तो थका हुआ हूँ घोडा 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुधवार, 29 मई 2013

क्या वजह क्या वजह कहर बरपा रहे....


क्या वजह क्या वजह कहर बरपा रहे
मेहरबां - मेहरबां से नजर आ रहे

ये दुपट्टा कभी यूं सरकता न था
आज हो क्या गया यूं ही सरका रहे

चूडियां यूं तो बरसों से खामोश थी
बात क्या है हुजूर आज खनका रहे

यूं तो चेहरे पे दिखती थीं वीरानियां
औ अचानक बिना बात मुस्का रहे

दिल ये 'चर्चित' का यूं ही बडा शोख है
देख लो आप ही इसको भडका रहे

- विशाल चर्चित

मंगलवार, 28 मई 2013

दान की महिमा

  

दान की महिमा बड़ी महान 
रतन जवाहर उगले धरती ,खोदो अगर खदान 
और  खेत का सीना चीरो, तो उपजे  धन धान 
सच्चे मन से प्रभु को सुमरो ,मिलता है वरदान 
जीवन सारा है साँसों का बस  आदान  ,प्रदान 
मेरे सास ससुर ने मुझको ,दे निज कन्या दान 
बिन घर, बना दिया घरवाला ,किया बहुत अहसान 
पांच   साल में नेता चुनती  जनता,  कर  मतदान 
जीत चुनाव,करे जनता पर ,ढेरों टेक्स  लदान 
बेईमानी,लूटमार का ,है क्या कोई  निदान 
बड़े गर्व  से पर हम कहते ,मेरा देश   महान 

मदन मोहन  बाहेती 'घोटू'

अपच

       

गेंहू ,चना ,चावल या और भी कोई अन्न,
ऐसे ही नहीं खाया जाता ,
पहले उसको दला ,पीसा,
भूना या उबाला जाता है 
तब कहीं खाने के योग्य,
और सुपाच्य बनता है  
हमारे समझदार नेता ,
खाने पीने वाले   होते है ,
और अन्न  ,भोलीभाली जनता है 
वो पहले जनता को दुखों से दलते है,
परेशानियों से पीसते है,
मंहगाई  से भूनते है  
गुस्से से उबालते है 
और उसकी मेहनत का करोड़ों रुपिया ,
बड़े प्रेम से डकारते है  
कुछ जो ज्यादा जल्दी में होते है ,
कभी कभी कच्चा अन्न ही खा जाते है 
और उनकी समझ में ये बात नहीं आती है 
कि  ज्यादा और जल्दी जल्दी खाने से,
अपच  हो जाती है 

मदन मोहन बाहेती' घोटू'

क्यों?

             
              क्यों?
तुम भगवान् को मानते हो,
जो एक अनुपम अगोचर शक्ती है ,
जिसने इस संसार का निर्माण किया है 
तुम साधू,संत और गुरुओं को पूजते हो,
क्योंकि उन्होंने तुम्हे ज्ञान का प्रकाश दिया है   
तुम  अपनी पत्नी के गुण गाते हो,
क्योंकि उसने तुम्हारी जिन्दगी को,
प्यार के रंगों से सजाया है 
तो फिर तुम अपने उन माँ बाप का,
तिरस्कार क्यों करते हो ,
जिन्होने तुम्हारा निर्माण किया,
तुम्हे ज्ञान दिया,और तुम पर,
जी भर भर के प्यार लुटाया  है?

मदन मोहन  बाहेती'घोटू'


सोमवार, 27 मई 2013

मन की खिड़कियाँ

    

जरा देखो,खोल मन की खिड़कियाँ ,
                 ठंडी और ताज़ी हवाएं आयेगी 
जायेंगे अवसाद सारे दूर हट,
                 और मन की घुटन सब घट जायेगी 
आयेगी बौछार खुशियों की मधुर,
                   और सुख से जिन्दगी सरसायेगी 
निकल कर तो देखो अपने कूप से,
                    जगत की जगमग नज़र आ जायेगी 
दिन में सूरज राह रोशन करेगा ,
                     रात में भी चांदनी  छिटकायेगी 
मार कर बैठे रहोगे कुण्डली ,
                      मोह माया  उम्र भर  तडफायेगी
और जब जाओगे दुनिया छोड़ कर ,
                       धन और दौलत ,काम ना कुछ आयेगी 
  आज का पूरा मज़ा लो आज तुम,
                       कल की चिंता ,कल ही देखी  जायेगी  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुढापा -सबको आता

   

राम और कृष्ण का अवतार लेकर ,
  आये भगवान थे
पर मानव शरीर लिए हुए ,
वो भी तो  इंसान थे 
उनने भी मानव शरीर के ,
सारे दुःख उठाये होंगे  
बुढापे की तकलीफ़ भी पाये  होंगे 
रामजी ने चौदह बरस वनवास काटा,
सीताजी का हरण हुआ ,
लंका पर चढ़ाई कर ,
रावण का संहार किया  
अयोध्या आये पर धोबी के कहने पर,
गर्भवती सीता को ,घर से निकाल दिया 
बिना पत्नी के ,उनके जीवन में,
अन्धकार छा गया 
पर अपनी उस गलती के पश्चाताप में ,
बुढ़ापे में,उन्हें भी डिप्रेशन आ गया 
बड़े परेशान और डिस्टर्ब थे रहते 
और इसी घुटन में,
उन्होंने सरयू में डूब कर
 आत्महत्या की,ऐसा लोग है कहते 
कृष्ण जी ने भी किया था ,द्वारका पर शासन 
पर बुढापे में नहीं चला ,उनका अनुशासन 
उनके सब यदुवंशी ,
आपस में ही लड़ने लग गये  
तो शांति की तलाश में,
वो द्वारका छोड़ कर,
दूर प्रभाष क्षेत्र की तरफ चले गये  
अकेले,तनहा,एक वृक्ष के नीचे ,
शांति से कर रहे थे   विश्राम 
और वहीँ पर लगा उन्हें बाण 
और वो कर गए महाप्रयाण 
अंतिम समय में ,उनके परिवार का,
कोई भी सदस्य ,नहीं आया काम 
तो भगवान भी ,जब इंसान का रूप लेते है, 
बढती उम्र में ,उनके साथ भी  ऐसा होता है
 सब साथ छोड़ते , कोई साथ नहीं होता है 
ओ अगर तुझे ,तेरे अपनों ने छोड़ दिया है ,
और बुढापे में  परेशानी होती है,
तो काहे को रोता है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 26 मई 2013

घोटाला ही घोटाला

      घोटाला ही घोटाला 
   

जिधर भी हाथ  डाला 
घोटाला ही घोटाला 
किसी के हाथ काले,
किसी का मुंह  काला 
बड़ा बिगड़ा है मंजर 
घोटाला हर कहीं पर 
घोटाला थोक में है 
ये तीनो लोक में है 
बड़ा  आकाश प्यारा 
वहाँ 'टू जी ' घोटाला 
ख़रीदे  हेलिकोफ्टर 
घोटाला था वहां पर 
जमीं पर रेल में है 
प्रमोशन  खेल में है 
घोटाला भर्तियों  में 
जनाजे अर्थियों   में 
था कामनवेल्थ खेला 
सभी ने कर झमेला 
खेल कुछ खेला ऐसा 
कमाया खूब पैसा 
कोयला ब्लोक बांटे 
अपने ही लोग छांटे 
कर रहे लोग चीटिंग 
किया स्पॉट फिक्सिंग 
एक तो करते चोरी 
उसपे भी सीनाजोरी 
हुई मैली है गंगा 
हरेक नेता है नंगा 
जहाँ भी मिला मौक़ा 
देश को दिया धोका 
भतीजा और चाचा 
ससुर,दामाद राजा 
भांजा और मामा 
भरें अपना खजाना  
इस तरह चला फेशन 
विदेशी देश में धन 
भेजते  कर हवाला 
घोटाला ही घोटाला 
किसी के हाथ काले,
किसी का मुंह काला 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

मेरी माँ सचमुच कमाल है

      मेरी माँ सचमुच कमाल है 
  

बात बात में हर दिन ,हर पल,
                            रखती  जो मेरा ख़याल है 
छोटा बच्चा मुझे समझ कर,
                            करती मेरी  देखभाल  है 
ममता की जीवित मूरत है,
                             प्यार भरी  वो बेमिसाल है 
सब पर अपना प्यार लुटाती ,
                              मेरी माँ सचमुच  कमाल है 
जब तक मै  ना बैठूं,संग में,
                               वो खाना ना खाया करती 
निज थाली से पहले मेरी ,
                               थाली वो पुरसाया  करती
मैंने क्या क्या लिया और क्या ,
                               खाया रखती ,तीक्ष्ण नज़र है 
वो मूरत    साक्षात प्रेम की ,
                               वो तो ममता  की निर्झर  है  
बूढी है पर अगर सहारा  ,
                                दो तो मना किया करती  है 
जीवन की बीती यादों में ,
                                डूबी हुई ,जिया करती  है 
कोई बेटी बेटे का जब ,
                              फोन उसे  आ जाया  करता 
मैंने देखा ,बातें करते  ,
                             उन आँखों में प्यार उमड़ता 
पोते,पोती,नाती,नातिन,
                             सब की लिए फिकर है मन में 
पूजा पाठ,सुमरनी ,माला ,
                               डूबी रहती  रामायण में 
कोई जब आता है मिलने ,
                                 बड़ी मुदित खुश हो जाती है 
अपने स्वर्ण दन्त चमका कर ,
                                    हो प्रसन्न वो मुस्काती है  
बाते करने और सुनने का ,
                                   उसके मन में बड़ा  चाव है 
अपनापन, वात्सल्य भरा है ,
                                   और सबके प्रति प्रेम भाव है 
याददाश्त कमजोर हो गयी ,
                                    बिसरा देती है सब बातें 
है कमजोर ,मगर घबराती ,
                                  है दवाई की गोली  खाते 
उसके बच्चे ,स्वस्थ ,खुशी हो ,
                                  देती आशीर्वाद  हमेशा 
अपने   गाँव ,पुराने घर को ,
                                   करती रहती याद हमेशा 
बड़ा धरा सा ,विस्तृत नभ सा ,
                                 उसका मन इतना विशाल है  
सब पर अपना प्यार लुटाती,
                                  मेरी माँ  सचमुच  कमाल है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हाले चमन

    

था खूबसूरत ,खुशनुमा,खुशहाल जो चमन ,
            भंवरों ने रस चुरा चुरा ,बदनाम  कर दिया 
कुछ उल्लुओं ने  डालों पे डेरे बसा लिए,
             कुछ चील कव्वों ने भी परेशान कर दिया 
था  खूबसूरत,मखमली जो लॉन हरा सा ,
             पीला सा पड  गया है खर पतवार उग गये ,
माली यहाँ के बेखबर ,खटिया पे सो रहे ,
              गुलजार गुलिस्ताँ को बियाबान  कर दिया 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

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