झुर्रियां
झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां
छा गई पूरे तन पर हैं अब झुर्रियां
मेरा कोमल बदन जो था मांसल कभी
हर जगह अब तो चमड़ी सिकड़ने लगी
अंग तन के गए पड़ है ढीले सभी
हाथ में झुर्रियां,पांव में झुर्रियां
झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां
जोश था जो जवानी का सब खुट गया
ऐसा आया बुढ़ापा कि मैं लुट गया
गाल थे जो गुलाबी, भरी झुर्रियां
आइना भी उड़ाता है अब खिल्लियां
झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां
उम्र ऐसी बड़ी बेवफा हो गई
सारे चेहरे की रौनक दफा हो गई
जब कहती है बाबा हमें सुंदरिया
तो चलती है दिल पर कई छुर्रियां
झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां
छा गई पूरे तन पर अब झुर्रियां
मदन मोहन बाहेती घोटू