कैसी मिलेगी
जो चटपट पटाओगे तो चटपटी मिलेगी
जो खटाखट चाहोगे तो खटपटी मिलेगी
जरा हटके ढूंढना चाहोगे तो हठी मिलेगी
छांटने के चक्कर में रहोगे तो छंटी मिलेगी
मिलेगी वही जो लिखी होगी नसीब में तेरे
फेर में जिसके पड़ तुम लोगे के सात फेरे
घोटू
जय अमरनाथ
जय जय अमरनाथ सरकार
आपकी महिमा अपरंपार
भगत हम आए तेरे द्वार
हमारा भी कर दो उद्धार
अमर गुफा में पहाड़ की
किया आपने वास
लगी भीड़ है भक्त की
हर लो सबके त्रास
नमो बाबा बर्फानी
महिमा जानी मानी
गुफा की अमरनाथ की
सुनो तुम आज कहानी
करी जिद पार्वती ने
यहां पर शंकर जी ने
सुनाई अमर कथा थी
हुई पावन यह गुफा थी
रूप बर्फीला लेकर
हमेशा आते शंकर
श्वेत छवि सुंदर प्यारी
कष्ट हरते त्रिपुरारी
बर्फ रूप में पहाड़ पर
आते हैं महादेव
जीवन में हर भक्त के
लाते शांति सदैव
कृपा भोले की होती
ज्ञान की जलती ज्योती
लुटाते हो तुम सब पर प्यार
जय जय अमरनाथ सरकार
मदन मोहन बाहेती घोटू
भुनना
मैंने देखा है दुनिया में ,
कि औरों की प्रगति देखकर
मन में लगती आग ,जलन से ,
जलते भुनते लोग अधिकतर
लेकिन ऐसे जलना भुनना,
कोई बात नहीं है अच्छी
पर कुछ चीज़ें ऐसी होती
जो भुनने पर लगती अच्छी
भुनता जब मक्की का दाना
तो वह पॉपकॉर्न बन जाता
उसकी सख्ती मिट जाती है
वह स्वादिष्ट नरम हो जाता
भुन जाती है अगर मूंगफली
वह चिनिया बादाम हो जाती
खो देती तैलीय स्वाद है ,
वह खस्ता लजीज हो जाती
पर जब अन्न का दाना भुनता
तो वह बीज नहीं रह जाता
काम आता है एक बार ही
काम नहीं दोबारा आता
इसीलिए अन्न के दाने से
अगर भुने तो पछताओगे
स्वादिष्ट बनोगे एक बार
पर फिर न कभी उग पाओगे
निज ऊर्जा शक्ति खो दोगे
यदि गलत राह को चुनते हो
तुम कभी पनप पाओगे
यदि ज्यादा जलते भुनते हो
भुनना है भुनो रुपये से
जो को भुन देता सिक्के चिल्लर
लेकिन उसकी कृय शक्ति में
आता नहीं जरा भी अंतर
मदन मोहन बाहेती घोटू
कन्हैया बचपन में
तू तो बड़ा ही था शैतान,
कन्हैया बचपन में
करे सबको था परेशान,
बिरज की गलियन में
कभी किसी की हंडिया तोड़ी ,
कभी किसी की छींका तोड़ा
माखन खाया मुंह लिपटा कर
गोप सखा में बांटा थोड़ा
करती थी जब गोपी शिकायत
छुप जाता था आंगन में
तू तो बड़ा ही था शैतान
कन्हैया बचपन में
बाल सखा संग धेनु चराता
बैठ कदंब पर मुरली बजाता
जमुना में जब नहाती गोपिया
उन सबके तू वस्त्र चुराता
करता था सबको परेशान
कन्हैया बचपन में
तू तो बड़ा ही था शैतान
कन्हैया बचपन में
भोली राधा बरसाने की
हुई दीवानी मुरली धुन की
ऐसी जोड़ी बनी तुम्हारी
आज पूजती दुनिया सारी
तेरी लीला बड़ी महान,
कन्हैया बचपन में
तू तो बड़ा ही था शैतान
कन्हैया बचपन में
मदन मोहन बाहेती घोटू
कोरा कागज
मैं जब जन्मा था बस एक कोरा कागज था
पहले दौर में इस पर लिखा गया अआ इ ई
उसके बाद आई अंग्रेजी की एबीसीडी फिर मछली जल की है रानी
और हंप्टी डंप्टी की कहानी
फिर प्लस माइनस गुणा और भाग
ज्ञान ,विज्ञान,साहित्य और इतिहास
बस एक डिग्री पाना ही मेरा लक्ष्य था
जब मैं जन्मा था बस एक कोरा कागज था
इसके बाद जवानी का उन्माद आया
मन में किसी के प्यार का नशा छाया
दिल की भावनाएं उस कोरे कागज पर
उभरने लगी प्रेम पत्र बनकर
वह भी क्या गजब की उम्र आई थी
किसी के प्रति इतनी दीवानगी छाई थी
वह जवानी वाला दौर भी गजब था
मैं जब जन्मा था बस एक कोरा कागज था
फिर शादी हुई और गृहस्थी का फेरा
घर चलाने की चिंता ने था घेरा
नौकरी और बिजनेस में व्यस्त रहकर लिखता रहा बस हिसाब कोरे कागज पर
धीरे-धीरे वक्त के संग संग
काला होता गया मेरा सफ़ेद रंग
जैसे काले बालों का रंग सफेद झक था
मैं जब जन्मा था बस एक कोरा कागज था
उम्र के साथ जब बुढ़ापे ने पकड़ा
धीरे-धीरे कई बीमारी में जकड़ा
अंग पड़े ढीले, बिगड़ने लगी सेहत
पहले जैसी रही ना हमारी अहमियत
मुड़े तुड़े कागज की हालत हो गई दयनीय बस इतनी जगह खाली थी जिस पर लिखा जाना था स्वर्गीय
नियति ने लिखा हुआ पहले ही सब था
मैं जब जन्मा था बस एक कोरा कागज था
मदन मोहन बाहेती घोटू