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बुधवार, 19 जून 2024

चोंचलो के दिन गए 


अब हमारे चोंचलों के दिन गए 


मांग को तेरी सजाने को सुहाने 

आसमान से चांद तारे तोड़ लाने 

के दीवाने हौसलों के दिन गए 

अब हमारे चोंचलो के दिन गए 


कभी तुम पर जान करने को निछावर 

हमेशा ही हम रहा करते थे तत्पर 

पंख लगा कर उड़ें,छूले आसमां को,

उड़ानों के उन पलों के दिन गए 

अब हमारे चोंचलो के दिन गए 


जवानी के दिनों की वो मधुर बातें 

याद आती, मन को समझा नहीं पाते 

उमर ने पर काट डाले हैं हमारे ,

जवानी के जलजलों के दिन गए 

अब हमारे चोंचलो के दिन गए 


अब तो यादों के सहारे जी रहे हैं 

दुखी मन हैऔर आंसू पी रहे हैं 

जैसे तैसे गुजरती हैं जिंदगानी 

मस्ती वाले उन पलों के दिन गए 

अब हमारे चोंचलो के दिन गए


मदन मोहन बाहेती घोटू

शनिवार, 15 जून 2024

बुधवार, 12 जून 2024

शबरी के राम 


बनवासी है रूप ,माथ पर तिलक लगाए हैं शबरी मैया की कुटिया में राम जी आए हैं

 बोलो राम राम राम सीता राम राम 


शबरी खुशी से हुई बावरी मन में उल्लास प्रभु दर्शन की जन्म जन्म की पूरी हो गई आस 

बड़े प्रेम से पत्तल आसन पर प्रभु को बैठाया 

गदगद होकर रामचरण में अपना शीश 

नमाया 

अश्रु जल से पांव पखारे पुष्प चढ़ाए हैं शबरी मैया की कुटिया में राम जी आए हैं

बोलो राम राम राम सीता राम राम 


बरसों से करती आई थी राम नाम की टेर प्रभु प्रसाद को लाया करती ताजेताजे बेर इतनी हुई भाव विव्हल वो राम प्रभु को देख 

चख कर मीठे बेर प्रभु को, बाकी देती फेंक 

जूंठे बेर किए शबरी के, राम ने खाए हैं शबरी मैया की कुटिया में राम जी आए है

बोलो राम राम राम सीता राम राम राम 


मदन मोहन बाहेती घोटू

झगड़ने का बहाना 


बहुत दिन हुए ,जंग ना छिड़ा 

हम मे तू तू मैं मैं का 

आओ चले ढूंढते हैं 

हम कोई बहाना लड़ने का 


मैं कुछ बोलूं,, तुम झट मानो

 तुम कुछ बोलो मैं मानू 

सदा मिलाते हो हां में हां 

किस पर भृकुटी मैं तानू 

डांट लगाओ मेहरी को तो 

काम छोड़ बैठेगी घर 

अपने अंदर दबा हुआ सब 

रौब निकालूं मैं किसी पर 

हंसकर मिले पड़ोसन,

ना दे मौका बात बिगड़ने का 

आओ चलो ढूंढते हैं हम 

कोई बहाना लड़ने का


जो भी तुम्हें पका कर देती 

खाते हो तारीफ कर कर

तेज नमक या ज्यादा मिर्ची 

कभी ना आई तुम्हें नजर 

मैं जैसा भी जो भी पहनू 

तुमको सभी सुहाता है 

ढलता यौवन चढ़ा बुढ़ापा

 तुमको ना दिखलाता है 

गलती से झट कहते सॉरी 

दोष न हम पर मढ़ने का 

आओ ढूंढे कोई बहाना 

हम आपस में लड़ने का 


कितने बरस हुए शादी को

 याद तुम्हें ना आई क्या 

मेरी मैरिज एनिवर्सरी 

तुमने कभी मनाई क्या

किया स्वयं की वर्षगांठ पर 

गोवा या कश्मीर भ्रमण 

लेकिन मेरे विवाह दिवस पर 

किया न कोई आयोजन 

अबकी बार बनेगा उत्सव 

मेरा डोली चढ़ने का 

आओ ढूंढते कोई बहाना 

हम आपस में लड़ने का


मदन मोहन बाहेती घोटू

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