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बुधवार, 21 जून 2023

सुनहरे सपने 

मैं एक वृद्ध, बूढ़ा, सीनियर सिटीजन 
एक ऐसा चूल्हा खत्म हो गया हो जिसका इंधन 
पर बुझी हुई राख में भी थोड़ी गर्मी बाकी है 
ऐसे में जब कोई हमउम्र बुढ़िया नजर आती है 
उसे देख उल्टी गिनती गिनने लगता है मेरा मन 
ये कैसी दिखती होगी ,जब इस पर छाया रहा होगा यौवन
इसके ये सफेद बाल ,कभी सावन की घटा से लहराते होंगे 
इसके गाल गुलाबी होते होंगे, जुलम ढाते होंगे 
तना तना, कसा कसा बदन लेकर जब चलती होगी 
कितनों के ही दिलों में आग जलती होगी 
आज चश्मे से ढकी आंखें ,कभी चंचल कजरारी होती होंगी 
प्यार भरी जिनकी चितवन कितनी प्यारी होती होगी 
जिसे ये एक नजर देख लेती होगी वो पागल हो जाता होगा 
कितने ही हसीन ख्वाबों में खो जाता होगा  
देख कर इस की मधुर मधुर मुस्कान 
कितने ही हो जाया करते होंगे इस पर कुर्बान और जब यह हंसती होगी फूल बरसते होंगे इसकी एक झलक पाने को लोग तरसते होंगे इसकी अदाएं हुआ करती होगी कितनी कातिल 
मोह लिया करती होगी कितनों का ही दिल 
इसे भी अपने रूप पर नाज होता होगा 
बड़ा ही मोहक इसका अंदाज होता होगा 
जिस गुलशन का पतझड़ में भी ऐसा अच्छा हाल 
तो जब बसंत रहा होगा तो होगा कितना कमाल 
खंडहर देखकर इमारत की बुलंदी की कल्पना करता हूं 
और आजकल इसी तरह वक्त गुजारा करता हूं 
कभी सोचता हूं काश मिल जाती ये जवानी में 
तो कितना ट्विस्ट आ जाता मेरी कहानी में 
जाने कहां कहां भटकता रहता है मन पल पल 
वक्त गुजारने के लिए यह है एक अच्छा शगल 
फिर मन को सांत्वना देता हूं कि काहे का गम है 
तेरी अपनी बुढ़िया भी तो क्या किसी से कम है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

गुरुवार, 15 जून 2023

बुढ़ापा कैसा होता है 

आदमी हंसता तो कम है आदमी ज्यादा रोता है 
बुढ़ापा कैसा होता है ,बुढ़ापा ऐसा होता है 

नज़र से थोड़ा कम दिखता ,बदन में है सुस्ती छाती 
कदम भी डगमग करते हैं ,नींद भी थोड़ा कम आती 
जलेबी ,रबड़ी और लड्डू ,देखकर ललचाता है दिल
बहुत मन करता खाने को, पचाना पर होता मुश्किल 
परेशां रहता है अक्सर, चैन मन अपना खोता है 
बुढ़ापा कैसा होता है ,बुढ़ापा ऐसा होता है 

बसाते बेटे अपना घर ,जब उनकी हो जाती शादी 
बेटियों को हम ब्याह देते हैं ,चली ससुराल वो जाती 
अकेले रह जाते हैं हम, बड़ी मुश्किल से लगता मन 
वक्त काटे ना कटता है ,खटकता है एकाकीपन 
बच्चों का व्यवहार भी न पहले जैसा होता है 
बुढापा कैसा होता है , बुढापा ऐसा होता है

उजड़ने लगती है फसलें, माथ पर काले बालों की 
दांत भी हिलने लगते हैं ,न रहती रौनक गालों की 
कभी ब्लड प्रेशर बढ़ जाता , कभी शक्कर बढ़ जाती है 
बिमारी कितनी ही सारी ,घेर कर हमें सताती है 
बदलते हालातों से हम ,किया करते समझौता है 
बुढ़ापा कैसा होता है ,बुढ़ापा ऐसा होता है 

मदन मोहन बाहेती घोटू
आशीर्वाद
1
मैंने गुरु सेवा करी ,बहुत लगन के साथ 
हो प्रसन्न गुरु ने कहा, मांगो आशीर्वाद 
मांगो आशीर्वाद ,कहा प्रभु दो ऐसा वर 
सुख और शांति मिले ,मुझे पूरे जीवन भर 
कहा तथास्तु गुरु ने , मैं प्रसन्न हो गया 
पाया आशीर्वाद गुरु का धन्य हो गया 
2
लेकिन फिर ऐसा हुआ कुछ कुछ मेरे साथ 
शादी की बातें चली ,बनी नहीं पर बात 
बनी नहीं पर बात,दुखी मन मेरा डोला 
गया गुरु के पास, शिकायत की और बोला 
गुरुवर फलीभूत ना आशीर्वाद तुम्हारा 
सुखी नहीं में दुखी ,अभी तक बैठा कुंवारा
3
गुरु बोले शादी करो ,खो जाता है चैन
पत्नी की फरमाइशें, लगी रहे दिन रेन
लगी रहे दिन रेन ,रोज की होती किच-किच
 सास बहू के झगड़े में इंसां जाता पिस
 मेरे वर ने रोक रखी तेरी बरबादी 
सुख शांति से जी, या फिर तू कर ले शादी

मदन मोहन बाहेती घोटू 
कैसे अपना वक्त गुजारूं

हंसी खुशी से मौज मनाते, अभी तलक जीवन जिया है 
यही सोचता रहता मैंने ,क्या अच्छा ,क्या बुरा किया है 
बीती यादों के बस्ते पर, धूल चढ़ी ,कब तलक बुहारूं
कैसे अपना वक्त गुजारूं

करने को ना काम-धाम कुछ, दिन भर बैठा रहूं निठल्ला 
कब तक टीवी रहूं देखता ,मन बहलाता रहूं इकल्ला 
इधर-उधर अब ताक झांक कुछ ,करने वाली नजर ना रही 
मौज और मस्ती सैर सपाटा ,करने वाली उमर ना रही 
लोग क्या कहेंगे, करने के पहले , सोचूं और विचारूं
कैसे अपना वक्त गुजारूं

पहले वक्त गुजर जाता था ,पत्नी से तू तू मैं मैं कर 
अब पोते पोती सेवा में ,वह रहती है व्यस्त अधिकतर 
झगड़े की तो बात ही छोड़ो ,उसे प्यार का वक्त नहीं है 
बाकी समय भजन कीर्तन में, वह मुझसे अनुरक्त नहीं है 
भक्ति भाव का भूत चढ़ा है ,उस पर ,कैसे उसे उतारूं 
कैसे अपना वक्त गुजारूं

अब तो बीती,खट्टी मीठी ,यादें ही है एक सहारा 
बार-बार जिनको खंगाल कर,करता हूं मैं वक्त गुजारा 
मित्रों के संग गपशप करके, थोड़ा वक्त काट लेता हूं 
दबी हुई भड़ास ह्रदय की, सबके साथ बांट लेता हूं 
एकाकीपन में जो बहती ,कैसे अश्रु धार संभालू 
कैसे अपना वक्त गुजारूं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 11 जून 2023

मामूली आदमी 

मैं एक मामूली आदमी हूं
पहले मैं खुद को आम आदमी कहता था 
संतोषी और सुखी रहता था 
पर जब से केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाई है 
आम आदमी बनने का नाटक कर ,
आम आदमी की खिल्ली उड़ाई है 
कहीं आम आदमी की,अपने घर को 
सुधारने के लिए छियांलिस करोड़ रुपए
खर्च करने की औकात होती है 
पर इन नेताओं की अलग ही जात होती है 
गले में मफलर डालने भर से 
कोई आम आदमी नहीं बन जाता 
पर जनता को बरगलाने के लिए ,
यह नाटक है किया जाता 
यूं भी आजकल आम के दाम 
छू रहे हैं आसमान 
आम खाना, आम आदमी की पहुंच से 
बाहर हो रहा है 
इसलिए आम आदमी ,आम आदमी नहीं रहा है 
आजकल आम आदमी की पहुंच में है मूली इसलिए आम आदमी ,बन गया है मामूली 
मेरी औकात भी मूली पर आकर है थमी 
और मैं बन गया हूं मामूली आदमी 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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