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बुधवार, 15 मार्च 2023

गलतफहमी 

तुम आए और रुके
मेरे पैरों की तरफ झुके
मैं मूरख व्यर्थ ही रहा था गदगद 
तुम झुके हो मेरे प्रति होकर श्रद्धानत 
और छूना चाहते हो मेरे पाद
चरण स्पर्श कर मांगने आए हो आशीर्वाद 
पर तुम्हारे झुकने में नहीं कोई श्रद्धा का भाव था
  यह तो तुम्हारा नया पैंतरा था, दाव था 
 तुम तो झुके थे खींचने के लिए मेरी टांग 
 या चीते की तरह झपट कर लगाने को छलांग 
तुम्हारा धनुष सा झुकना तीर चलाने के लिए था 
या चोरों सा मेरे घर में सेंध लगाने के लिए था तुम झुके थे सर्प की तरह दंश मारने
 या फिर कुल्हाड़ी की तरह मुझे काटने 
और मैं यूं ही हो गया था गलतफहमी का शिकार 
क्योंकि मुश्किल है बदलना तुम्हारा व्यवहार बिच्छू डंक नहीं मारेगा, यह सोचना है नादानी 
और हमेशा खारा ही रहता है समंदर का पानी तुम भले ही लाख धोलो गंगाजल से 
पर सफेदी की उम्मीद मत करना काजल से

मदन मोहन बाहेती घोटू

बुधवार, 8 मार्च 2023

तेरा अबीर, तेरी गुलाल 
सब लाल लाल ,सब लाल लाल 

इस मदमाती सी होली में 
जब ले गुलाल की झोली में 
आया तुम्हारा मुंह रंगने

तुम शर्माई सी बैठी थी ,
कुछ सकुचाई सी बैठी थी 
मन में भीगे भीगे सपने 

मैंने बस हाथ बढ़ाया था
तुमको छू भी ना पाया था,
लज्जा के रंग में डूब गए,
 हो गए लाल ,रस भरे गाल 
 तेरा अबीर,तेरी गुलाल 
 सब लाल लाल, सब लाल लाल

 मेहंदी का रंग हरा लेकिन,
 जब छू लेती है तेरा तन 
 तो लाल रंग छा जाता है 
 
प्यारी मतवाली आंखों में ,
इन काली काली आंखों में ,
रंगीन जाल छा जाता है 

होठों पर लाली महक रही 
चुनर में लाली लहक रही 
है खिले कमल से कोमल ये,
रखना संभाल, पग देखभाल 
तेरा अबीर,तेरी गुलाल 
सब लाल लाल, सब लाल लाल 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

सोमवार, 6 मार्च 2023

यह मेरा घर 

यह तेरा घर, यह मेरा घर 
यह खुशबुओं से तरबतर 
महक हमारे प्यार की ,
सभी तरफ ,इधर-उधर 

यहां पूजा घर में राम है 
बंसी बजाते श्याम है 
हरते गणेश ,सारे क्लेश,
 और रखवाले हनुमान हैं 
 
यह रोज आरती होती है 
जलती माता की ज्योति है 
यहां अगरबत्तियां जल जल कर ,
खुशबू से देती घर को भर 

यहां गमले में फुलवारी है 
हर फूल की खुशबू प्यारी है 
जूही गुलाब चंपा खिलता 
खुशबू और स्वाद सदा मिलता 

जब पके रसोई में भोजन 
तो खुशबू से ललचाता
 मन 
जब हलवा सिक कर महकाता
पानी सब के मुंह में आता 

जब गरम पकोड़े जाय तले
लगते हैं सबको बहुत भले
और छौंक दाल जब लगती 
तो भूख पेट की है जगती 

अम्मा कमरे से पेन बाम 
की खुशबू आती सुबह शाम 
यहां ओडोमास की खुशबू से ,
करते हैं तंग नहीं मच्छर 
यह तेरा घर यह मेरा घर

मदन मोहन बाहेती घोटू 
विनती 

प्रभु मुझ पर कर दे जरा कृपा 
मैंने हरदम तेरा नाम जपा 
श्रद्धा भक्ति से पूजा की ,
मंदिर में जाकर कई दफा 

 मैने कई बार प्रसाद चढ़ा 
 चालीसा भी हर बार पढ़ा
  और तेरे भजन कीर्तन में ,
  भाग लिया था बढ़ा चढ़ा 
  लेकिन इतनी सेवा का भी,
  मिला मुझको नाही कोई नफा
 प्रभु कर दे मुझ पर जरा कृपा 

पूजा की और हवन भी किया 
पंडित जी को भी दान दिया 
नित सुबह शाम आराधन कर,
 मैंने बस तेरा नाम लिया 
 पर मुझे न कुछ ईनाम मिला ,
 ये कैसी बतला तेरी वफा 
 प्रभु कर दे मुझ पर जरा कृपा

 तू तो बस चुप चुप रहता है
 और हमें नहीं कुछ देता है 
 क्या तू अपने सब भक्तों की ,
 बस यूं ही परीक्षा लेता है 
 अब एक लॉटरी खुलवा दें ,
 इनाम दिला दें अबकी दफा 
 प्रभु मुझ पर कर दे जरा कृपा

मदन मोहन बाहेती घोटू 
तेरा आना 

तुम आती तो रजनीगंधा, दिन में भी महकने लगती है 
ठिठुराती सर्द शिशिर में भी, कोकिल सी कुहुकने  लगती है 
एक आग मिलन की गरमी की,मेरे दिल में दहकने लगती है
 दिल मेरा चहकने लगता है ,मेरी चाल बहकने लगती है 
 तेरे आने की आहट से ,मन में छा जाती
  मस्ती है 
  बिजलियां सैंकड़ों गिर जाती,जब तू मुस्कुराती हंसती है 
 तेरी मतवाली चाल देख ,भूचाल सा मन में 
 उठता है 
 ऐसी हो जाती हालत है कि चैन हृदय का
  लुटता है 
  मन करता मेरे आस-पास, तुम बैठो यूं ही नहीं जाओ 
  मैं पियूं रूप रस , घूंट घूंट,तुम प्यार की मदिरा छलकाओ

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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