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गुरुवार, 9 सितंबर 2021

मेरी चाहत  

नहीं चाहिए हीरा मोती, नहीं चाहिए बंगला कोठी 
बस अपना कर सकूं गुजारा, चाहूं नहीं कमाई खोटी जब तक जीयूं स्वस्थ रहूं मैं,मुझको अच्छी सेहत देना 
सबके साथ रहूं हिलमिल कर,प्रभु प्यार की दौलत देना

 तूने जब जीवन ये दिया है ,तो सुख दुख भी बांटे होंगे 
कभी फूल बरसाए होंगे ,कभी चुभाये कांटे होंगे 
 सब विपदायें झेल सकूं मैं,मुझको इतनी हिम्मत देना 
सबके साथ रहूं हिलमिल कर, प्रभु प्यार की दौलत देना
 
 ऐसा मेरा हृदय बनाना ,भरा हुआ जो संवेदन से  दुखियारों के काम आ सकूं,मैं तन से मन से और धन से
 श्रद्धा रखूं ,बुजुर्गों के प्रति, मेरे मन में इज़्जत देना 
सबके साथ रहूं हिलमिल कर, प्रभु प्यार की दौलत देना

 रहे नम्रता भरा आचरण और घमंड भी जरा नहीं हो 
 मेरे हाथों कभी किसी का, भूले से भी, बुरा नहीं हो 
 मन में भक्ति, तन में शक्ति और सब के प्रति चाहत देना 
सब के साथ रहूं हिलमिल कर ,प्रभु प्यार की दौलत देना

मदन मोहन बाहेती घोटू
सफेदी का चमत्कार 

सफेदी की चमकार
 बार-बार 
 लगातार 
 जी हां ,हम सबको है सफेदी से प्यार 
 सफेद चूने से पोत कर रखते हैं घर की दरो दीवार 
रोज ब्रश करते हैं रखने को दांतों की सफेदी बकरार
 मेहनत करके,टैक्स भर के ,
सफेद कमाई की जाती है 
 वर्षों के अनुभव के बाद सर पर सफेदी आती है 
 सफेद रंग में चीनी का मिठास है 
 सफेद रंग में नमक का स्वाद है 
 सफेद रंग में वाष्प की गरमाई है 
 सफेद रंग में बर्फ़ की ठंडाई है 
 सफेद रंग में दूध की पौष्टिकता है 
 सफेद रंग में रुई की कोमलता है 
 सफेद रंग झरनो की तरह निर्मल है 
 सफेद रंग हिमालय की तरह सुदृढ़ है
 सफेद रंग शांति का द्योतक है 
 सफेद रंग में धूप की चमक है
सफेद कबूतर उड़ा के शांति का संदेश दिया जाता है 
तो क्यों कुछ लोगों का खून सफ़ेद पड़ जाता है
तो क्यों कुछ सफेदपोश नेता काली कमाई करते हैं 
सफेद दाढ़ी वाले कुछ बाबाओं की काली करतूतें है 
तो क्यों लोग सफेद बगुला भगत बने शिकार करते हैं 
तो क्यों कुछ लोग सफेद झूठ बोलने से नहीं डरते हैं
कई लोग जो खुद को बतलाते दूध के धुले हैं 
वे सब सफेद रंग को बदनाम करने में तुले हैं 

मदन मोहन बाहेती घोटू

रविवार, 5 सितंबर 2021

गुरु गुड़, चेला शक्कर 

गुरुजी तो रह गए लघु जी, चेले गुरु घंटाल हो गए 
गुरु जी अब भी फटे हाल है, चेले मालामाल हो गए

 गुरुजी रहे सिखाते अ आ इ ई क ख ,एबीसीडी 
 वह अब भी नीचे है ,चेले चढ़े तरक्की की हर सीढ़ी खड़ा बेंच पर किया गुरु ने, वो है अब कुर्सी पर बैठे 
 वह अब ऐंठे ऐंठे रहते ,कान गुरु ने जिनके ऐंठे
 जिनको गुरुजी ने पीटा था,जमकर पैसे पीट रहे हैं बहुत बड़े वह ढीठ आजकल ,बचपन से जो ढीठ रहे हैं 
गुरु थे मुर्गा जिन्हें बनाते, वह मुर्गा हलाल हो गए 
 गुरु जी अब भी फटे हाल हैं,चेले मालामाल हो गए 
 
गुरुजी की गई मास्टरी,चेले मास्टर बहुत बड़े हैं 
जिन्हें क्लास से बाहर करते,दफ्तर बाहर आज खड़े हैं
लंगडी भिन्न सिखाई जिनको, भिन्न हुई उनकी बोली है 
गुरुजी गुड़ की डली रह गए, चेले शक्कर की बोरी है 
जिनको बारह खड़ी सिखाई, उनके आज हुए पौबारा 
कोई नेता कोई अफसर ,कोई बड़ी फैक्ट्री वाला 
दो दूनी चार भुलाया उनने, दो के कई हजार हो गए 
गुरुजी तो अब भी फटेहाल हैं,चेले मालामाल हो गए

मदन मोहन बाहेती घोटू
 शिक्षक दिवस पर धन्यवाद ज्ञापन
 
 है धन्यवाद टीचर ,तुमने मुझे पढ़ाया 
 पग पग पे सीख देकर, जीना मुझे सिखाया 
 
करता था काम चोरी ,आदत मेरी सुधारी 
गालों पर चपत मारी ,हाथों पर बेंत मारी 
देकर के सजा अक्सर ,मुर्गा मुझे बनाया 
पग पग पे सीख देकर, जीना मुझे सिखाया

मुझे डाटते थे अक्सर, कहते थे मैं गधा हूं 
उपकार आपका ये, मै मानता सदा हूं
मेरा गधत्व जागा ,जो अब है काम आया 
पग पग पर सीख देकर ,जीना मुझे सिखाया 

कक्षा में बेंच ऊपर ,करके खड़ा सजा दी 
उपहास सहते रहना, आदत मेरी बना दी 
निर्लज्ज हंसते रहना, चिकना घड़ा बनाया 
पग पग पर सीख देकर, जीना मुझे सिखाया

साहब की बात मानूं, बीबी की बात मानूं
बच्चों की बात मानूं,मैं सब की बात मानूं
ऑबिडिएंट इतना ,तुमने मुझे बनाया 
पग पग पे हाथ सीख देकर, जीना मुझे सिखाया

 ट्रेनिंग ये आपकी अब, मेरे काम आ रही है 
 डाट और डपट का कोई ,होता असर नहीं है 
 मैं ढीठ बना सहता,जाता हूं जब सताया 
 पग पग पे सीख देकर, जीना मुझे सिखाया
 है धन्यवाद टीचर, तुमने मुझे पढ़ाया

मदन मोहन बाहेती घोटू
 

गुरुवार, 2 सितंबर 2021

चुहुलबाजियां

चिढ़ा चिढ़ा कर तुम्हें सताना, मेरे मन को बहुत सुहाता 
यूं ही चुहुलबाजियों में बस,अपना वक्त गुजर है जाता 

 हम दोनों ही बूढ़े प्राणी ,इस घर में रह रहे इकल्ले कामकाज कुछ ना करना है,बैठे रहते यूं ही निठल्ले 
 कब तक बैठे देखें टीवी ,बिन मतलब की गप्पें मारे 
 सचमुच,बड़ा कठिन होता है, कैसे अपना वक्त गुजारें
 इसीलिए हम तू तू,मैं मैं, करते मजा बहुत हैआता 
 यूं ही चुहुलबाजियों में बस,अपना वक्त गुजर है जाता
  
 कई बार तू तू मैं मैं जब ,झगड़े में परिवर्तित होती 
 बात बिगड़ती,मैं इस करवट और तू है उस करवट सोती 
तेरा रूठना,मेरा मनाना, यह भी होता है एक शगल है 
 यूं ही मान मनौव्वल में बस,जाता अपना वक्त निकल है 
हिलमिल फिर हम एक हो जाते,तू हंसती मैंभीमुस्कुराता 
 यूं ही चुहुलबाजियों में बस ,अपना वक्त गुजर है जाता
 
इसी तरह मेरी तुम्हारी, आपस में चलती है झकझक 
जबतक हम तुम संगसंग है तबतक इस घर में है रौनक
तुम कितनी ही रूठ जाओ पर भाग्य हमारा कभी न रुठे 
अपनी जोड़ी रहे सलामत ,साथ हमारा कभी न छूटे ईश्वर रखे बनाकर हरदम ,सात जन्म का अपना नाता 
यूं ही चुहुलबाजियों में बस, अपना वक्त गुजर है जाता

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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