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मंगलवार, 10 अगस्त 2021


शब्दों का फंडा 

उनके घर क्या कार आ गई अब उनका आकार बढ़ गया  जबसे उनके नयन लड़े हैं ,आपस में है प्यार बढ़ गया पहन शेरवानी इठला वो ,खुद को शेर समझ बैठे हैं 
घर में कुर्सी मेज नहीं है, मेजबान पर बन बैठे हैं 
विष का वास मुंह में जिनके हम उनका विश्वास न करते
 सदा चार की बात करें जो ,सदाचार व्यवहार न करते असरदार वह नहीं जरा भी, फिर भी है सरकार कहाते हारे ना,वो जीत गए हैं ,फिर भी हार गले लटकाते
है मकान तो उनका पक्का, किंतु कान के वह है कच्चे चमचे से खाते ,खिलवाते,पर खुद कहलाते हैं चमचे 
जब से उनके भाव बढ़े हैं ,हमको भाव नहीं देते हैं 
उड़ना जब से सीख गए हैं, सबके होश उड़ा देते हैं 
होता मन में मैल अगर तो मेल नहीं मिलता है मन का 
टांके भिड़े सिले ना फिरभी चालू हुआ सिलसिला उनका कुछ भी उनमें नहीं नया रे ,पर है उनके बारे न्यारे 
भारी सर तो चल सकता है,भारी पैर न चले जरा रे 
नाम लौंग पर बड़ी शार्ट है ,तेज हीन पर तेज पान है 
न तो दाल है ना चीनी है ,दालचीनी का मगर नाम है कहते हैं पूरी उसको पर ,आधी भी है खाई जाती 
और गुलाबजामुन में खुशबू ना गुलाब,जामुन की आती  ना अजवाइन में वाइन है नाशपति में नहीं पति है 
और पपीता बिना पिता के,हर एक शब्द की यही गति है
कहते जिसको गरममसाला,वो बिलकुल ठंडा होता है
शब्द गुणों के डबल रोल का ,ऐसा ही फंडा होता है

मदन मोहन बाहेती घोटू
कलदार रुपैया

याद जमाना आता कल का ,होता था कलदार रुपैया कितना नीचे आज गिर गया, देखो मेरे यार रुपैया

एक तोला चांदी का सिक्का,एक रुपैया तब होता था चलता तो खनखन करता,यह सबका ही मन मोहता था 
जब यह आता था हाथों में, सब के चेहरे खिल जाते थे कभी टूटता ,तो तांबे के चौंसठ पैसे मिल जाते थे 
इसके हाथों में आने से ,आया करते सोलह आने 
इतनी ज्यादा क्रयशक्ति थी, हम सब थे इसके दीवाने इसके छोटे भाई बहन थे,, एक अधन्ना,एक इकन्नी
 एक दुअन्नी,एक चवन्नी,अच्छी लगती मगर अठन्नी लेकिन इसने धीरे-धीरे अवनति का है दामन थामा 
लुप्त हो गए भाई बहन सब,बचा सिर्फ हैअब आठआना इतना ज्यादा सिकुड़ गया है,ना चलता ना होती खनखन अबतो जाने कहां उड़गया हल्का फुल्का कागज का बन इतना ज्यादा टूट गया वह, बदले सौ में ,चौंसठ पैसे 
कोई सिक्का नजर आता, इसके दिन बिगड़े हैं ऐसे 
दो हजार के नोटों में भी अब इसका अवतार हो गया नेताओं ने भरी तिजोरी, इसका बंटाधार हो गया 
 बेचारा अवमूल्यन मारा ,है कितना लाचार रुपैया
 याद जमाना आता कल का, होता था कलदार रुपैया

मदन मोहन बाहेती घोटू

सोमवार, 9 अगस्त 2021

प्रतिशत 

सारे नेता, सारे अफसर, रहते हैं बस इस जुगाड़ में 
उनका प्रतिशत जाए उन्हें मिल,बाकी दुनियाजाएभाड़में

 यह प्रतिशत वाली बीमारी इतनी ज्यादा फैल रही है 
 हर कोई इसका शिकार है जनता इसको खेल रही है चपरासी बाबू या अफसर पंच विधायक मंत्री नेता 
 काम कराने का कोई भी बस अपना कुछ प्रतिशत लेता सड़क बनाने से लेकर के ,बड़े-बड़े रक्षा के सौदे 
 हमने देखा शत-प्रतिशत ये, बिना प्रतिशत के ना होते साहब जी को नगद चाहिए नेता मांगी कहकर चंदा बहुत अधिक कब फैल रहा है ,सभी तरफ ये गोरखधंधा काम कराना प्रतिशत दे दो,सब कुछ नगद न कुछ उधार में
सारे नेता सारे अफसर ,रहते हैं बस इस जुगाड़ में
उनका प्रतिशत जाए उन्हें मिल बाकी दुनिया जाए भाड़ में 

खुद को कहें देश का सेवक ,जड़े देश की खोद रहे हैं निजी स्वार्थ की सिद्धि करने, यह प्रगति को रौंद रहे हैं घटिया माल खरीद रहे हैं, गुणवत्ता पर ध्यान न देते प्रतिशत देखकर काम कराते, उनके अपने कई चहेते सब्जबाग दिखलाने वाले ,अपना बाग उजाड़ रहे हैं 
और बाद में भोले बनकर ,अपना पल्ला झाड़ रहे हैं प्रतिशत है दस्तूर बन गया कुछ दफ्तर में यह रूटीन में किसी एक को प्रतिशत दे दो, बंट जाता है सभी टीम में भले आज जो चीज खरीदी,अगले दिन बिकती कबाड़ में 
सारे नेता सारे अफसर रहते है बस इस जुगाड़ में 
उनका प्रतिशत जाए उन्हें मिल,बाकी दुनिया जाए भाड़ में

 यह कोटेशन ,टेंडर बाजी,खानापूर्ति है कागज की 
 सांप मरे, लाठी ना टूटे , जान बची रहती है सबकी प्रतिशत लेकर काम कराते,खोट नहीं इनके इमान में कोई दूध का धुला नहीं है, सब के सब नंगे हमाम में कोई अपने हाथ न गंदे ,करता ,चमचों से खाता है 
उसको उसका प्रतिशत मिलता और पेट जबभर जाताहै  काम ठीक से तब होता है जब वह ले लेता डकार है कोई बगुला भगत बन रहा, खुद ही मच्छी रहा मार है और जब फसंते,तो फिर चक्की पीसा करते हैं तिहाड़ में
सारे नेता, सारे अफसर, रहते हैं बस इस जुगाड़ में
उनका प्रतिशत जाएं उन्हे मिल,बाकी दुनिया जाए भाड़ में

मदन मोहन बाहेती घोटू

रविवार, 8 अगस्त 2021

प्यार और समझ

सोच समझ कर कदम बढ़ा तू, दिल ने कितना ही समझाया
 बिन समझे ही  प्यार हुआ पर , बिन समझे ही साथ निभाया 

कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं ,जिनको हम तुम नहीं बनाते 
ईश्वर द्वारा निर्मित होते ,और ऊपर से बनकर आते इसीलिए हम सोच समझकर उन्हें निभाए समझदारी है एक दूसरे को हम समझे, रहना संग उमर सारी है 
कुछ तो नयन नयन से उलझे,और कुछ दिल से दिल उलझाया
बिन समझे ही प्यार हो गया, बिन समझे ही साथ निभाया 

 प्यार हुआ करता है दिल से ,नहीं समझ की जरूरत पड़ती 
 जितना साथ साथ हम रहते ,प्रीत दिनों दिन जाती बढ़ती 
 सामंजस्य बना आपस में ,जीवन सुख से जी सकते हैं अगर समर्पण हो आपस में, सुख का अमृत पी सकते हैं प्रेम भाव में डूब गया जो, जीवन का आनंद उठाया 
 बिन समझे ही प्यार हो गया, बिन समझे ही साथ निभाया

मदन मोहन बाहेती घोटू

शुक्रवार, 6 अगस्त 2021

तेरी जय जय 

 तू तारों सी झिलमिल झिलमिल 
 तू चंदा सी चम चम चम चम 
 मस्त हवा सी शीतल शीतल 
खिली धूप सी आंगन आंगन 

तू पर्वत की ऊंची ऊंची 
तू गहरी गहरी सागर सी
 तू बादल सी भरी-भरी सी 
 दिल पर छाई नीलांबर सी 
 
तू गंगा सी निर्मल निर्मल 
तू नदिया सी बहती कलकल
तू झरने सी झरती झर झर  
प्यार बरसता क्षण क्षण पल पल 

तेरा मन है सावन सावन 
 बरसा करती रिमझिम रिमझिम 
 तेरी छवि है नयन नयन में ,
 श्वास श्वास में तेरी सरगम
 
तू राधा की भोली भोली
तू कान्हा सी माखन माखन 
तेरी खुशबू मधुबन मधुबन 
महक रही तू चंदन चंदन 

खिली कली सी नवल नवल तू 
तू गुलाब सी कोमल कोमल
 तेरा तन है कंचन कंचन 
 तेरा मन है चंचल चंचल 
 
सरस्वती सी सरस सरस तू 
तू लक्ष्मी सी वैभव वैभव 
तू दुर्गा सी निर्भय निर्भय 
तेरी जय जय तेरी जय जय

मदन मोहन बाहेती घोटू

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