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बुधवार, 4 अगस्त 2021

चिंतन 

चिंतन बदलो ,तन बदलेगा
जीवन का कण कण बदलेगा 

कई व्याधियां है जो अक्सर ,
तन के आसपास मंडराती 
इनमें से आधी से ज्यादा ,
चिंताओं के कारण आती 
गुस्से में ब्लड प्रेशर बढ़ता, 
हो अवसाद, नींद उड़ती है 
किडनी, लीवर की बीमारी ,
मानस स्थिति से जुड़ती है 
यदि तुम सोचो मैं बीमार हूं 
तो बुखार भी चढ़ जाएगा 
यदि तुम सोचो मैं स्वस्थ हूं,
 जीवन में सुख बढ़ जाएगा 
 परेशानियां इस जीवन में ,
 सब पर आती, मत घबराओ 
 बड़े धैर्य से उनसे निपटो,
 चिंता में मत स्वास्थ्य गमाओ 
 तिथि मौत की जब तय है तो,
  रोज-रोज क्यों जीना घुट कर 
  हंसी खुशी से क्यों न गुजारें,
   हम अपने जीवन का हर पल 
   
   मस्त रहोगे, मन बदलेगा 
   मुस्कराओ,मौसम बदलेगा 
   चिंतन बदलो, तन बदलेगा 
   जीवन का कण कण बदलेगा

  मदन मोहन बाहेती घोटू
मैं की मैं मैं 

तुम मुझको अपना मैं दे दो, मैं तुमको दे दूंगा अपना मैं रहे प्रेम से हम मिलजुल कर ,बंद करें अब तू तू मैं मैं 

जब तक तुममें मैं, मुझमें मैं ,अहम अहम से टकराता है 
अहम अगर जो हम बन जाये,तो जीवन में सुख आता है अपनी मैं का विलय करें जो,हम में, सोच बदल जाएगी रोज-रोज की खींचातानी, हम होने से थम जाएगी 
और जिंदगी बाकी अपनी फिर बीतेगी मजे मजे में 
तुम मुझको अपना मैं दे दो, मैं दे दूं तुमको अपना मैं

 दुनिया में सारे झगड़ों की, जड़ है ये मैं की बीमारी 
 मैं के कारण ही होती है, जग में इतनी मारामारी  मैं सब कुछ हूं,मेरा सब कुछ,सोच सोच हम इतराते हैं खाली हाथ लिए है आते,खाली हाथ लिये जाते हैं  
तो फिर क्यों झगड़ा करते, क्या मिल जाता हमको इसमें तुम मुझको अपना मैं दे दो ,मैं तुमको दे दूं अपना मैं 
 रहे प्रेम से, हम मिलजुल कर,बंद करें अब तू तू मैं मैं

मदन मोहन बाहेती घोटू
बारिश तब और अब 

अब भी पानी बरसा करता, अब भी छाते बादल काले पर अब आते मजे नहीं है, वह बचपन की बारिश वाले

 अब ना घर के आगे कोई, बहती है नाली पानी की, 
 ना कागज की नाव बनाकर बच्चे उसमें छोड़ा करते
 नहीं भीगने से डर लगता, बारिश का थे मजा उठाते,
  नंगे पैरों छप छप छप छप ,उसके पीछे दौड़ा करते
  
 अब न कबेलू वाली छत है ,जिससे टप टप टपके पानी जहां-जहां चूती छत ,नीचे बर्तन और पतीला रखना 
  पूरे परिवार के संग, बैठ मजा लेना बारिश का, 
और वह मां का बड़े प्यार से, गरमा गरम पकौड़े तलना

 वह बारिश में भीग नाचना,उछल कूद और करना मस्ती, जब स्कूल की रेनी डे की छुट्टी की थी घंटी बजती  
बना घिरोंदे गीली माटी से, खुश होना खेला करना 
हरी घास पर लाल रंग की बीरबहूटी जब थी  मिलती  

तब बादल की गरज और थी, तब बिजली की चमकऔरथी ,
रिमझिम मस्त फुहारों में जब ,नाचा करती वर्षा रानी 
तब बारिश में जीवन होता, मेह के संग था नेह बरसता,
अब तो केवल आसमान से, बस बरसा करता है पानी

मदन मोहन बाहेती घोटू
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मंगलवार, 3 अगस्त 2021

बारिश तब और अब 

अब भी पानी बरसा करता, अब भी छाते बादल काले पर अब आते मजे नहीं है, वह बचपन की बारिश वाले

 अब ना घर के आगे कोई, बहती है नाली पानी की, 
 ना कागज की नाव बनाकर बच्चे उसमें छोड़ा करते
 नहीं भीगने से डर लगता, बारिश का थे मजा उठाते,
  नंगे पैरों छप छप छप छप ,उसके पीछे दौड़ा करते
  
 अब न कबेलू वाली छत है ,जिससे टप टप टपके पानी जहां-जहां चूती छत ,नीचे बर्तन और पतीला रखना 
  पूरे परिवार के संग, बैठ मजा लेना बारिश का, 
और वह मां का बड़े प्यार से, गरमा गरम पकौड़े तलना

 वह बारिश में भीग नाचना,उछल कूद और करना मस्ती, जब स्कूल की रेनी डे की छुट्टी की थी घंटी बजती  
बना घिरोंदे गीली माटी से, खुश होना खेला करना 
हरी घास पर लाल रंग की बीरबहूटी जब थी  मिलती  

तब बादल की गरज और थी, तब बिजली की चमकऔरथी ,
रिमझिम मस्त फुहारों में जब ,नाचा करती वर्षा रानी 
तब बारिश में बारिश होती ,तब बारिश में जीवन होता
अब तो केवल आसमान से, बस बरसा करता है पानी

मदन मोहन बाहेती घोटू
,

 बरसा है पानी

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