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शनिवार, 24 जुलाई 2021

बोलो मुझे खरीदोगे क्या

बोलो मुझे खरीदोगे क्या मैं बिकाऊ 
गारंटी है तीन माह की ,मैं टिकाऊ हूं
 मैं बिकाऊ हूं
 घर घर मेरी पहुंच ,मीडिया मुझको कहते 
 पुलिस और सब अफसर मुझसे डर कर रहते
  मैं जिसकी भी चाहूं उसकी हवा बहा दूं
  कभी अर्श से फर्श ,फर्श से अर्श चढ़ा दूं 
  जो खरीदता ,काम में उसके, बहुत आऊं हूं
   बोलो मुझे खरीदोगे क्या , मैं बिकाऊ हूं 
   मैं बिकाऊ हूं 
   मैं ,मौसम वैज्ञानिक हूं ,दल बदलू नेता 
   शामिल होता उस दल में ,जो कुर्सी देता 
   अपनी जाति वर्ग में मेरी बड़ी कदर है 
   मैं रहता जिस ओर,वोट सब पढ़े उधर है 
   राजनीति का चतुर खिलाड़ी ,मैं कमाऊं हूं 
   बोलो मुझे खरीदोगे क्या, मैं बिकाऊ हूं
    मैं बिकाऊं हूं
     मैं प्रसिद्ध हूं ,बुद्धिजीवी ,कलाकार हूं 
     उल्टे सीधे ,वामपंथी रखता विचार हूं 
     अब मुशायरे कम होते ,ना रही कमाई 
     जो कुछ देता ,कह देता, उसकी मनचाही 
     इसी बहाने ,चर्चा में, मैं आऊं जाऊं हूं 
     बोलो मुझे खरीदोगे क्या ,मैं बिकाऊ हूं
     मैं बिकाऊ हूं

   मदन मोहन बाहेती घोटू

शुक्रवार, 23 जुलाई 2021

तीरंदाज हो गए 

हम मोह में जिनके बंधे उन्ही के दर्शन को मोहताज हुये 
 जाने क्या बात हुई ऐसी , वो हमसे है नाराज हुये 
हमने जिन से रिश्ता जोड़ा, वो बीच राह में छोड़ गए, 
 चलता न किसी पर भी बस है,हम इतने बेबस आज हुये
हम प्यार में जिनके पागल हैं, नित मानमनौव्वल करते है ,
हर बात पर आपा खो देते, वो इतने तुनक मिजाज हुये 
हम बड़ी शान से पहन रहे, है तार तार हो रही जींस, 
तन दिखलाऊऔर फटे वस्त्र,अब फैशन के आगाज हुये 
मॉडर्न बनने के चक्कर में ,हमने ऐसा यू-टर्न लिया  
हम भूल संस्कृति को अपनी अब पश्चिम के मोहताज हुऐ 
जिनके दादा और परदादा ,ना मार सके एक भी मेंढक, 
क़िस्मत देखो उनके बेटे अब तीखे तीरंदाज हुये
साबुन जैसी उनकी यादें ,घिसघिस के झाग में बदल गई,
कुछ मन का मैलापन निकला ,कुछ साफ पुराने राज हुऐ
 घोटू ठोकर खा सब गिरते,हम ठोकर खाकर संभल गए, 
जीवन में सफलता पाने के, हम सीख गए अंदाज नये

मदन मोहन बाहेती घोटू

हम मियां बीवी 

हम कितने ही लड़े और क़िस्मत को कोसे 
पर रहना है एक दूजे के सदा भरोसे 
अपना दिल से दिल का रिश्ता  बहुत करीबी 
हमें बनाया है ईश्वर ने मियां बीबी

सुनते हैं कि सभी जोड़ियां, पति पत्नी की ,
बना भेजता, आसमान से ,स्वयं विधाता 
उसे निभाया करते हैं हम पूरा जीवन ,
जब आपस में यह प्यारा बंधन बंध जाता 
अब तुम चाहे रहो प्यार से या फिर झगड़ो,
सुलह अंत में पर होती ही होती अक्सर 
जरा प्यार की गर्मी मिलती , पिघला देती, 
भले बर्फ से जमे हुए हो, तीखे तेवर 
एक दूजे हम साथ ,हमारी खुश ये नसीबी 
हमे बनाया है ईश्वर ने मियां बीबी

जब दो बर्तन साथ रहे टकराते ही हैं ,
पर उनकी खटपट का है संगीत निराला 
कभी रूठना, कभी मनाना ,टोका टाकी ,
अच्छा लगता नोकझोंक का चाट मसाला 
बिन तकरार, प्यार का पूरा मजा ना आता,
 कुछ नमकीन ,जरूरी होती ,मीठे संग है 
 समझौते की ताजी चटनी, स्वाद बढ़ाती,
 और जीवन के भोजन में आती उमंग है 
 इस जीवन का स्वाद बदल पाए न कभी भी 
 हमे बनाया है ईश्वर ने भी मियां बीबी

मदन मोहन बाहेती घोटू

बुधवार, 21 जुलाई 2021

कोविड में

 कोविड में कुछ कर न सके हम,दूरी रखनी थी कायम ,
  चुपके-चुपके, इनसे उनसे,नैन लड़ाना सीख गए
 मुख पर उनके मास्क,हमारे मुख पर भी था मास्क चढ़ा 
बातचीत तो हो ना पायी, बात बढाना सीख गए 
 अब जब मुख से मास्क हटा तो यह पहचान नहीं होती
 थे वे कौन रसीले नैना, जिनसे नयन लड़ाए थे ,
 निश्चित शोख हसीना होगी, अच्छा टाइम पास हुआ,
 लॉकडाउन में दिल पर अपने लॉक लगाना सीख गए

मदन मोहन बाहेती घोटू
माता रानी के भक्त हो गए

बंधे हुए रहते थे मोह माया बंधन में 
दुनियादारी से वह आज विरक्त हो गए 
कल तक रहते लिप्त भोग में और लिप्सा में,
 वह देखो माता रानी के भक्त हो गए

 तन पर नहीं लुनाई रही, आई जर्जरता,
 निर्बलता में अंकपाश में घेर लिया है 
 चिकने तन पर लगी झुर्रियां झलक मारने ,
 धीरे-धीरे यौवन ने मुंह फेर लिया है 
 अपनो  का अपनापन भी है लुप्त हो रहा,
 घर में हम अनचाहे से अब फक्त हो गए 
 कल तक रहते लिप्त भोग में और लिप्सा में 
 अब देखो मातारानी के भक्त हो गए
 
 मन तो बहुत चाहता पर तन साथ ना देता,
 सांप छछूंदर गति हुई कुछ कर ना सकते 
  फूल महकते हैं गुलशन में सुंदर सुंदर,
  मन मसोसकर अपना केवल उनको तकते
  कल तक हरे भरे थे छाया ,फल देते थे 
  पातहीन अब  सूखे हुए दरख़्त हो गए
  कल तक रहते लिप्त भोग मेंऔर लिप्सा में,
  अब देखो माता रानी के भक्त हो गए
    
    ऐसा ना है कि उनमें कुछ कमी नहीं है ,
    रस्सी भले जल गई, लेकिन बट न गया है 
    अब भी सब पर रौब पुराना दिखलाते हैं ,
    बात बनाने का अपनी पर हठ गया है 
    जिद्दी, अड़ियल, नहीं किसी की कोई सुनते,
     अपने थोथे सिद्धांतों में सख्त हो गए 
     कल तक रहते लिप्त भोग में और लिप्सा में,
     वह देखो माता रानी के भक्त हो गए

मदन मोहन बाहेती घोटू

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