जीवन चर्या
होती भोर,निकलता सूरज ,धीरे-धीरे दिन चढ़ता है
हर पंछी को दाना चुगने, सुबह निकलना ही पड़ता है
बिना प्रयास सांस ही केवल ,जब तक जीवन, आती जाती
किंतु उदर में जब कुछ पड़ता , तब ही जीवन ऊर्जा आती
चाहे चींटी हो या हाथी, सबको भूख लगा करती है इतने संसाधन प्रकृति में, सबका पेट भरा करती है लेकिन अपना हिस्सा पाने ,सबको कुछ करना पड़ता है
हर पंछी को दाना चुगने ,सुबह निकलना ही पड़ता है
कितने ही भोजन के साधन, विद्यमान है ,आसपास है अपने आप नहीं मिलते पर ,करना पड़ता कुछ प्रयास है ज्यादा उर्जा पाने ,थोड़ी उर्जा करना खर्च जरूरी बैठे-बैठे नहीं किसी की ,कोई इच्छा होती पूरी
भूख लगे ,मां दूध पिलाएं, बच्चे को रोना पड़ता है
हर पंछी को दाना चुगने, सुबह निकलना ही पड़ता है
मदन मोहन बाहेती घोटू