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गुरुवार, 1 जुलाई 2021

डॉक्टर दिवस पर धन्यवादज्ञापन 

 दर्द देकर जरा सा, जो दर्द का करता निवारण
  डॉक्टर है 
  व्याधियों से दूर बच कर ,रह रहे हम जिसके कारण 
  डॉक्टर है 
  खिला कर कड़वी दवा जो ,नींद मीठी सुलाता है 
  डॉक्टर है 
  चुभा कर के सुई ,तन के ताप को जो भगाता है 
  डॉक्टर है 
  स्वस्थ और तंदुरुस्त रहने के बताता हमें नुस्खे ,
  डॉक्टर है 
  दीर्घ जीवन पा रहे  हम, है बदौलत आज उसके 
  डॉक्टर है 
 करोना की विभीषिका में,जान अपनी डाल जोखिम डॉक्टर ने 
 जान कितनों की बचाई, करी सेवा रात और दिन 
 डॉक्टर ने 
 खाने पीने में हमारे ले के आये अनुशासन
 डॉक्टर जी 
 आज डाक्टर दिवस पर है आपका धन्यवादज्ञापन  डॉक्टर जी

मदन मोहन बाहेती घोटू

बुधवार, 30 जून 2021


एक बेटी की फ़रियाद -माँ से

तेरी कोख में माँ ,पली और बढ़ी मैं
पकड़ तेरी ऊँगली,चली, हो खड़ी मैं
तेरे दिल का टुकड़ा हूँ ,मैं तेरी जायी
 नहीं होती बेटी ,कभी भी  परायी

तूने माँ मुझको ,पढ़ाया लिखाया  
सहीऔर गलत का है अंतर सिखाया  
नसीहत ने तेरी बनाया है  लायक
रही तू हमेशा ,मेरी मार्ग दर्शक
तूने संवारा है व्यक्तित्व मेरा    
तेरे ही कारण है अस्तित्व मेरा
तेरा रूप, तेरी छवि, प्यार हूँ मैं
जीवन सफ़र को अब तैयार हूँ मैं
मिले सुख हमेशा,यही करके आशा
मेरे लिए ,हमसफ़र है तलाशा
बड़े चाव से बाँध कर उससे बंधन
किया आज तूने ,विवाह का प्रयोजन
ख़ुशी से  करेगी ,तू मेरी बिदाई
नहीं होती बेटी ,कभी भी परायी

सभी रस्म मानूंगी ,जो है जरूरी
मगर दान कन्या की ,ना है मंजूरी
न सोना न चांदी ,इंसान मैं हूँ
नहीं चीज दी जाये ,जो दान में हूँ
मुझे दान दे तू ,नहीं मैं सहूंगी
तुम्हारी हूँ बेटी ,तुम्हारी रहूंगी
दे आशीष मुझको,सफल जिंदगी हो
किसी चीज की भी,कभी ना कमी हो
फलें और फूलें ,सदा खुश रहें हम
रहे मुस्कराते ,नहीं आये कोई ग़म
कटे जिंदगी का ,सफर ये सुहाना
मगर भूल कर भी ,मुझे ना भुलाना
रहे संग पति के ,हो माँ से जुदाई
नहीं होती बेटी ,कभी भी पराई

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

मंगलवार, 29 जून 2021

आम आदमी

 मैं आदमी आम हूं  अनमना हू
 बजाते हैं सब ही मैं वो झुनझुना हूं 
 आश्वासनो के लिए ही बना हूं 
 बहुत ही परेशां, दुखों से सना हूं
 
मैं वक्ता नहीं हूं पर बकता नहीं हूं
 कमजोरियों को ,मैं ढकता नहीं हूं 
 बिना पेंदी जैसा लुढ़कता नहीं हूं 
 बुरों के करीब में भटकता नहीं हूं
 
 सही जो लगे मुझको, लिखता वही हूं
 सच्चाई के रास्ते से डिगता नहीं  हूं
 बिकाऊ नहीं हूं ,मैं बिकता नहीं हूं 
 जो भीतर हूं बाहर से दिखता वही हूं 
 
धनी हूं मगर मैं धुरंधर नहीं हूं 
हमेशा जो जीते ,सिकंदर नहीं हूं 
हिलोरे है मन में, समंदर नहीं हूं
कला मेरे अंदर ,कलंदर नहीं हूं

प्रणेता हूं लेकिन मैं नेता नहीं हूं 
खुशी बांटता, कुछ भी लेता नहीं हूं 
हारा नहीं पर विजेता नहीं हूं 
चमचों का बिल्कुल चहेता नहीं हूं

 जब आता इलेक्शन सभी खोजते हैं
  मिलता जो मौका, सभी नोचते हैं 
  मेरे हित की बातें नहीं सोचते हैं 
  मेरे नाम पर सब उठाते मजे हैं 
  
ये शोषण दिनोदिन ,मुझे खल रहा है 
बहुत ही दुखी ,मेरा दिल जल रहा है 
जिसे मिलता मौका ,मुझे छल रहा है 
नहीं अब चलेगा, जो यह चल रहा है 

मेरे दिल में लावा, उबल अब रहा है 
ये ज्वालामुखी बस ,धधक अब रहा है
बहुत सह लिया, अब न जाता सहा है
नई क्रांति को यह ,लपक कब रहा है 

मदन मोहन बाहेती घोटू
एक फूल की जीवन यात्रा 

केश की शोभा बन, रूपसी बाला के ,
सुंदर से बालों पर सजता सजाता हूं 
केशव की मूरत को, फूलों की माला में,
गुंथ कर मैं पूजन में, पहनाया जाता हूं 
या अंतिम यात्रा में ,मानव के जीवन की,
 शव पर में श्रद्धा से ,किया जाता अर्पित हूं
 केश से केशव तक ,जीवन से ले शव तक 
 मानव की सेवा में , सर्वदा समर्पित हूं

घोटू
बादल बरसे  यह मन तरसे 

काले काले मेघ घिरें है, रिमझिम पानी बरस रहा 
गरम चाय के साथ पकोड़े ,खाने को मन तरस रहा 

 बारिश की बूंदों से भीगी, धरती आज महकती है 
 सोंधी सोंधी इसकी खुशबू, कितनी प्यारी लगती है 
 कहीं तले जा रहे समोसे , जिव्हा उधर लपकती है 
 बाहर पानी टपक रहा है, मुंह से लार टपकती है 
 गरम जलेबी,रस से भीनी,मन पर कोई बस न रहा  काले कले मेघ घिरें है, रिमझिम पानी बरस रहा
 
भीगा भीगा, गीला गीला, प्यारा प्यारा यह मौसम 
पानी की बौछारें ठंडी,हुआ तर बतर तन और मन 
घर में ऑफिस खोले बैठे ,पिया करोना के कारण मानसून पर सून न माने,सुने नहीं मेरी साजन 
पास पास हम ,आपस में पर ,सन्नाटा सा पसर रहा 
काले काले मेघ घिरें है,रिमझिम पानी बरस रहा

मदन मोहन बाहेती घोटू

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