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रविवार, 25 अक्टूबर 2020

गाली देना ही अच्छा है

अगर गालियां दे लेने से ,जाती निकल भड़ास हृदय की ,
तो घुट घुट गुस्सा करने से ,गाली देना ही अच्छा है
मन के शिकवे और गिले सब,चिल्ला कर के जाहिर कर दो,
अगले को मालूम पड़ जाता ,कि तुम्हारे मन में क्या है
मन हो जाता साफ़ गलतियां ,अपनी सब लेते सुधार है ,
गलतफहमियां  कम  हो जाती ,फिर से प्यार पनपने लगता
होते रिश्ते जो कगार पर ,टूट फूट अलगाव राह पर ,
उनमे पुष्प प्यार के खिलते ,सब कुछ अच्छा लगने लगता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
हाल- ए -बुढ़ापा

आते याद जवानी के दिन ,जब हम मचल मचल जाते थे ,
दीवाने हो पगला जाते ,जवां हुस्न के जलवे लख  कर
हुई बुढ़ापे में ये हालत ,छूटे नहीं पुरानी आदत ,
मन बहलाते ,देख हुस्न को ,यूं ही दूर से ,बस तक तक कर
पति हुए बेंगन का भड़ता ,पत्नी रही मलाई कोफ्ता ,
मगर स्वाद मारे बेचारे ,खुश रहते है ,बस चख चख कर
भीनी भीनी खुशबू वाली ,मिस सी {मिस्सी}रोटी गरम चाहिए
तन्दूरी गोभी भी खाते ,लेकिन तन से दूरी रख कर
कभी जोश में दौड़ा करते ,चुस्ती फुर्ती भरे हुए थे ,
अब थोड़ी भी मेहनत करलो ,बुरा हाल होता है थक कर
दुष्ट बुढ़ापा ऐसा आया , जोश ए जवानी ,हुआ सफाया ,
अपना समय बिताते है हम ,बस आपस में ही झक झक कर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कोरोना के संकट में

हमने कोरोना संकट में ,ऐसा कठिन वक़्त काटा था
दिन में दहशत और रात में ,सपनो में भी सन्नाटा था
एक अजीब खौफ छाया था ,बंद हुई थी सारी हलचल,
मन के सागर में रह रह कर ,उठता ज्वार और भाटा था
महरी ,कामवालियां सब के ,आने पर प्रतिबंध लगा था
घर का काम,मियां बीबी और बच्चों ने मिल कर बांटा था
सब अपनों ने ,अपनों से ही ,बना रखी ऐसी दूरी थी ,
सबने चुप्पी साध रखी  थी ,हर मुख बंधा हुआ पाटा था
पटरी पर से उतर गयी थी ,अच्छी खासी चलती  गाड़ी ,
बंद सभी उद्योग पड़े थे ,अर्थव्यवस्था में घाटा था
पूरी दुनिया ,गयी चरमरा ,ऐसा कुछ माहौल बना था ,
कोरोना के वाइरस  ने ,सबको बुरी तरह काटा था  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
दूरी बना कर रखो

सतयुग में भी कभी एक रावण होता था
बुद्धिमान ज्ञानी  पंडित था ,
लेकिन वह अपने मस्तक पर ,
कई बुराई को  ढोता  था
वह जब तक भी जिया ,उन्माद में जिया
अन्ततः राम ने उसका हनन किया
राम चाहते तो अपने तीखे बाणो से ,
काट सकते थे ,उसके बुराइयों वाले सर ,
और रहने देते  उसके मस्तक पर
सिर्फ एक सर
मानवता का ,बुद्धिमता का और ज्ञान का
वह भी अधिकारी हो सकता था सन्मान का
मगर ये हो न सका ,
क्योंकि बुरी सांगत का फल
अच्छाइयों को भी भुगतना पड़ता है ,
आज नहीं तो कल
और उसके अहंकार और बुराइयों के
सरों पर ,बुरी संगत का ये असर पड़ा
कि उसके ज्ञान और विवेक के,
सभी सरों को भी कटना पड़ा
और इस दृष्टान्त से हम ले ये सीख
अच्छाई और बुराई के बीच ,
अंतर बनाकर ही रखना है ठीक
इसलिए  हम भी  बीमारियों से ,
दो गज की दूरी बनाये रखें
और दुष्ट कोरोना से बचें

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' ,
 
भये प्रकट कृपाला

कल मुझे नज़र आया ,
एक विचित्र सा  साया
जिसके सर के दोनों तरफ ,
ढेर सा  बोझा लटक रहा था
वह बौखलाया सा ,
इधर उधर भटक रहा था
मैंने पूछा ,आप कौन है ,
क्या है आपकी पहचान
वो बोला ,अरे मुझे पहचाना नहीं ,
मैं रावण हूँ श्रीमान
मैंने पूछा ,आपके सर पर ये लदा क्या है
बोला एक तरफ झूंठ है ,आतंकवाद है ,
विस्तारवादी नीतियां है
और दूसरी तरफ बारूद है ,हथियार है ,
 और युद्ध  के लिए ,मिसाइलें तैयार है
दोनों तरफ विनाश ही विनाश है
बस ,मौके की तलाश है
मैं पहले आपके पड़ोस लंका में ही रहता था
जमाना मुझे रावण कहता था
पर जब से मुझे आपके राम ने है मारा
मैं ,उसका प्रेत
बोझा समेत ,
भटक रहा हूँ बेचारा
आपके ही देश के आसपास
कभी पकिस्तान में ,
कभी चीन में है मेरा वास
मैंने कहा तो फिर क्यों
होरहे हो इतने बदहवास
वो बोला मैं बहुत भयभीत हूँ और परेशान
सुना है हिन्दुस्थान में ,
फिर से प्रकट हो गए है राम
नरेंद्र मोदी है जिनका नाम
कहीं फिर से न कर दे मेरा काम तमाम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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