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रविवार, 14 जून 2020

चौदह दिन का क्वारंटाइन

एक केस कोरोना का मोहल्ले में हो गया ,
सब वासिंदों के मन को एक दहशत से भर दिया
बीमार भरती हो गया जा अस्पताल में ,
चौदह दिनों को मोहल्ले को सील कर  दिया
बाहर निकल न सकता कोई ,घर में कैद है ,
सब बेक़सूर लोगों को भी मिल रही सजा ,
बारिश कहीं पे हुई थी ,कीचड कहीं पे है ,
कोविद ने ऐसा जीवन को तब्दील कर दिया

बदल गया है मिजाज थोड़ा मौसम का ,
हमारे जीने का अंदाज नहीं बदला है
धुन में थोड़ा सा बदलाव आ गया लेकिन ,
वो ही साजिंदे है और साज नहीं बदला है
एक मनहूसियत सी फैला दी हवाओं ने ,
एक दहशत सी गयी पसर पूरे मंजर में ,
ऐसे हालातो ने है कैद कर रखा हमको ,
सज़ा मासूम को ,रिवाज नहीं बदला है

घोटू 

शुक्रवार, 12 जून 2020

टावर -१ के सील होने पर

बाहर निकल सकते नहीं ,घर में कैद है ,
क्योंकि पड़ोस में कोई बीमार हो गया
मारी है ऐसी मार करोना के खौफ ने ,
अब चैन से जीना भी है दुःश्वार हो गया
 कोई ने ख़ता की है मग़र क़ैद है कोई ,
बरसात उनके घर हुई ,हम भीग रहे है ,
कितना अजीब दुनिया ने दस्तूर बनाया
कैसा अजीब लोगों का व्यवहार हो गया

'घोटू '

बुधवार, 10 जून 2020

पीने की चाहत

ना जरूरत है मधुशाला की ,ना जरूरत है मधुबाला की ,
ना जरूरत है पैमानों की ,प्याले भी सारे  रीते है
किसको फुरसत है ,मधुशाला जा  भरे पियाला और पिये ,
हम वो बेसबरे बंदे है , सीधे बोतल से पीते  है
ली दारू बोतल ठेके से ,गाडी में आये और खोली ,
आधी से ज्यादा बोतल तो  ,गाडी में निपटा देते है
लेते संग में नमकीन नहीं ,ना गरम पकोड़े आवश्यक ,
हम तो मादक मदिरा पीकर ,मस्ती का जीवन जीते है

है इतने दर्द जमाने में ,कि उन्हें भूलने के खातिर ,
जब हो जाते है परेशान ,ये काम कर लिया करते है
पानी की जगह बीयर पीते ,शरबत की जगह पियें वाइन ,
जैसा महफ़िल का रुख देखा ,हम जाम भर लिया करते है  
करने को कभी गलत ग़म को,या कभी मनाने को खुशियाँ ,
कोई न कोई बहाने से ,तर हलक़ कर लिया करते है
दुनिया के दिए हुये जख्मो ,को सीने से बेहतर पीना ,
ये दारू नहीं ,दवाई है ,पी जिसे  जी लिया  करते है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कब लौटेगी जिंदगी ढर्रे पे

फैल रही बेचैनी, जर्रे जर्रे पे
कब लौटेगी यार जिंदगी ढर्रे पे

घबराहट से भरा हुआ माहौल है
सभी व्यवस्थायें अब डांवाडोल है
आम आदमी बुरी तरह घबराया है
सभी तरफ एक सन्नाटा सा छाया है
हालत बिगड़ी हुई बहुत बाज़ारों की
अस्पताल में भीड़ लगी ,बीमारों की
कोरोना का कोप इस तरह फैल रहा
हर परिवार, दंश है इसके झेल रहा
है सबके मुख बंद ,बंध रहा पट्टा है
बैठा हुआ देश का  अपने  भट्टा  है
दुःख के बादल ,छाये गाँव मुहल्ले पे
कब लौटेगी यार  जिंदगी  ढर्रे पे

बहुत ढीठ ये कीट कोरोना वाइरस है
जिसके आगे सारी दुनिया बेबस है
दो हज़ार और बीस पड़ रहा भारी है
पटरी से उतरी विकास की गाडी है
इतने है प्रतिबंध ,लोग है मुश्किल में
बार बार भूकंप ,ख़ौफ़ लाते दिल में
सीमा पर दुश्मन संग गहमागहमी है
सागर तट ,तूफानों की बेरहमी  है
डरे हुए सब,फैली मन में दहशत ये
 कब छोड़ेगी ,पिंड हमारा,आफत ये
कब बरसेगी ,फिर से ख़ुशी धड़ल्ले से
कब लौटेगी  यार जिंदगी ढर्रे पे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

सोमवार, 8 जून 2020

सन 2020

परेशानियां मुंह फाड़े है ,मन में उठती टीस रे
कब तक हमें सतायेगा सन दो हजार और बीस रे

जब से आया नया बरस ये ,मचा रहा उत्पात है
कितनी मुश्किल,परेशानियां,लाया अपने साथ है
मानवता का दुश्मन बन कर,फैल रहा है कोरोना
त्रसित दुखी इस बिमारी से दुनिया का कोना कोना
बंद देश का सब उत्पादन ,रेलें ,सड़क ,बाज़ार है
तार तार है अर्थव्यवस्था ,लाखों लोग  बेकार  है
श्रमिक पलायन करें गाँव को ,डर वाला  माहौल है
सब चिन्तित ,घर घुस बैठे ,खुशियों का बिस्तर गोल है
है तबाही का तांडव करते ,भारत में तूफ़ान है  
पूरब से ले पश्चिम तट पर , सागर लिये  उफान है
मौसम बदले ,कालचक्र से तू हमको मत पीस रे
कब तक हमें सतायेगा सन दो हज़ार और बीस रे
 
दिल्ली में दंगे करवा कर ,खूब   मचाई बरबादी
हिन्दू मुस्लिम बीच घृणा की खाई तूने खुदवा दी
इधर पडोसी पाक , बड़ी नापाक़ हरकतेँ करता है
और उत्तर में चीनी ड्रेगन ,गीदड़ भभकी  भरता है
दुर्घटना पर दुर्घटना है ,ओले कहीं ,कहीं शोले
और ऊपर से टिड्डी दल ने ,खेतों पर हमले बोले
दो महीने में सात बार ,आया भूकंप ,हिली धरती
बतला तेरा इरादा क्या है ,पूछ रही दुनिया डरती
बहुत नचाया  तूने हमको ,कितना और नचायेगा  
अभी सात महीने बाकी है,तू क्याक्या दिखलायेगा
विश्व युद्ध तो नहीं तीसरा ,लिखा तेरे  नसीब  रे
कब तक हमें सताएगा सन  दो हज़ार और बीस रे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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