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मंगलवार, 10 दिसंबर 2019

मेरे प्यार का दुश्मन


ये कान लगा कर सुनती है जब वो इनसे कुछ कहता है

ये उससे चिपकी रहती है ,वो इनसे चिपका रहता है

ये मेरी ओर देखती ना ,बस उससे नज़र मिलाती है

और एक हाथ से पकड़ उसे ,फिर दूजे से सहलाती है

वो थोड़ी सी हरकत करता तो उसके पास दौड़ती है

हद तो तब होती बिस्तर पर भी ,उसको नहीं छोड़ती है

वो नाजुक नाजुक हाथ कभी ,सहलाया करते थे हमको

बालों में फंसा नरम ऊँगली,बहलाया करते थे हमको

वो ऊँगली हाथ सलाई ले ,सर्दी में बुनती थी स्वेटर

सर दुखता था तो बाम लगा ,जो सहलाती थी मेरा सर

वो ऊँगली जिसमे  चमक रहा अब भी सगाई का है छल्ला

हो गयी आज बेगानी सी ,है छुड़ा लिया मुझसे पल्ला

ऐसी फंस गयी मोहब्बत में ,उस स्लिम बॉडी के चिकने की

करती रहती है चार्ज उसे ,और  मेरे पास न टिकने की

वो इन्हे संदेशे देता है ,घंटों तक इनको तकता है

अपने सीने में खुले आम ,इनकी तस्वीरें रखता है

उससे इनने दिल  लगा लिया ,और तोड़ दिया है मेरा दिल

मेरी जान का दुश्मन मोबाईल ,मेरे प्यार का दुश्मन मोबाईल


मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

प्यार करो तुम 'स्टाइल 'से


इश्क़ नहीं आसान जरा भी ,

ये तो है एक आग का दरिया

इसमें डूबो ,तब जानोगे ,

तकलीफें होती है क्या क्या

मुश्किल बहुत पटाना लड़की ,

कई बेलने पड़ते पापड़

उसके  घर के और गलियों के ,

कई लगाने पड़ते चक्कर

अपनी चाह प्रकट करने का

कोई खोजना होगा रस्ता

,प्रेम प्रदर्शन करना होगा ,

लेकिन आहिस्ताआहिस्ता

उसके मन को मोहित करने ,

के उपाय अपनाने होंगे

प्रेम नीर से सींचों उपवन  

तब ही पुष्प सुहाने होंगे

कई जतन करने पड़ते है ,

यार मिला करता मुश्किल से

इसीलिये यदि प्यार करो तो ,

प्यार करो तुम स्टाइल से


लड़की होती है शरमीली ,

धीरे धीरे हाथ आएगी  

जल्दी जल्दी अगर करोगे ,

तो वो शायद भड़क जायेगी

जैसी तड़फ तुम्हारे दिल में ,

उतनी उसमे भी जगने दो

थोड़ी थोड़ी आग मिलन की

उसके दिल में भी लगने दो

उसका हृदय जीतना होगा ,

धीरे धीरे ,नहीं एकदम

मत बरसो घनघोर घटा से ,

बरसो तुम सावन से रिमझिम

अगर प्यार के मीठे फल का ,

सच्चा स्वाद तुम्हे है चखना

तो फिर उसके पक जाने तक ,

तुम्हे पड़ेगा धीरज रखना

समय लगेगा ,किन्तु लगेगी ,

तुम्हे चाहने ,सच्चे दिल से

इसीलिये यदि प्यार करो तो ,

प्यार करो तुम स्टाइल से


टाइम लगता ,आसानी से ,

नहीं कोई लड़की पटती है

उसके मन की झिझक हमेशा ,

धीरे धीरे ही घटती है

तुम्हे प्रतीक्षा करनी होगी ,

झटपट की मत करना गलती

तुम उतावले हो जाते हो ,

वो न पिघलती इतनी जल्दी

दे उपहार ,उसे बहलाओ ,

उसकी जुल्फों को सहलाओ

दिल में घुसो ,नयन द्वारे से ,

'आई लव यू 'उससे कहलाओ

इतनी मन में आग लगा दो ,

कि वह भी हो जाय दीवानी

मिलन प्रेमियों का हो जाए ,

हो सुखांत यह प्रेमकहानी

लाये दिवाली फिर जीवन में ,

प्रेम दीप ,अपनी झिलमिल से

अगर प्यार करना है तुमको ,

प्यार करो तुम स्टाइल से


मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

 

,

 पैसे की दास्तान    

कल  बज रहा था एक गाना 
बहुत पुराना 
ओ जाने वाले बाबू ,एक पैसा दे दे 
तेरी जेब रहे ना खाली 
तेरी रोज मने दीवाली 
तू  हरदम मौज उड़ाए
कभी न दुःख पाए -एक पैसा दे दे 
एक पैसे का नाम सुन 
मेरी आँखों के आगे लौट आया बचपन 
जब था एक पैसे के मोटे से सिक्के का चलन
माँ  के पैर दबाने पर
या दादी की पीठ खुजाने पर 
हमें कई बार पारितोषिक के रूप में मिलता था ,
उगते सूरज की ताम्र आभा लिए 
एक पैसे का सिक्का ,
जब हाथ में आता था 
बड़ा मन भाता था 
हमें अमीर बना देता था 
ककड़ी वाला लम्बा गुब्बारा दिला देता था 
या नारंगी वाली मीठी गोली खिला देता था 
हमारे बड़े ठाठ हो जाते थे 
हम कभी आग लगा हुआ चूरन ,
या कभी चने की चाट खाते थे 
बचपन का वह बड़ा हसीन दौर होता था 
खुद खरीद कर खाने का ,
मजा ही कुछ और होता था 
वो एक पैसे का ताम्बे का सिक्का ,
हमें थोड़ी देर के लिए रईस बना देता था 
और उस दिन उत्सव मना देता था 
जैसे जैसे मैं बड़ा होता गया ,
पैसा छोटा होता गया 
और एक दिन किसी ने उसकी आत्मा ही छीन ली 
उसका दिल कहीं खो गया 
और वो एक छेद वाला पैसा हो गया   
जैसे जैसे उसकी क्रयशक्ति क्षीण होती गयी 
उसकी काया जीर्ण होती गयी 
और एक दिन वो इतना घट गया 
कि  माँ की बिंदिया जितना ,
एक नया पैसा बन कर सिमट गया 
पता नहीं जेब के किस कोने में खिसक जाता था 
गिर भी जाता तो नज़र नहीं आता था 
न उसमे खनक थी ,न रौनक थी,
और उसकी क्रयशक्ति भी हो गया था खात्मा  
ऐसा लगता था की बीते दिनों की याद कर ,
आंसू बहाती हुई है कोई दुखी आत्मा  
उसके भाई बहन भी आये जो 
दो,पांच और दस पैसे के चमकीले सिक्के थे 
पर मंहगाई की हवा में सब उड़ गए ,
क्योंकि वो बड़े हलके थे 
फिर चवन्नी गयी ,अठन्नी गयी ,
रूपये का सिक्का नाम मात्र को अस्तित्व में है ,
पर गरीब दुखी और कंगाल  है
अगर जमीन पर पड़ा भी मिल जाए 
तो लोग झुक कर उठाने की मेहनत नहीं करते ,
इतना बदहाल है 
अब तो भिखारी भी उसे लेने से मना कर देता है ,
उसे पांच या दस रूपये चाहिये 
बस एक भगवान के मंदिर में कोई छोटा बड़ा नहीं होता 
आप जो जी में आये वो चढ़ाइये
पैसे की हालत ये हो गयी है कि 
उसका अस्तित्व लोप हो गया है ,बस नाम ही कायम है 
कई बार यह सोच कर होता बड़ा गम है 
लोग कितने ही अमीर लखपति करोड़पति बन ,
पैसेवाले तो कहलायेंगे 
पर आप अगर उनके घर जाएंगे
तो शायद ही एक पैसे का कोई सिक्का पाएंगे 
उनके बच्चों ने कदाचित ही ,एक पैसे के
 ताम्बे के सिक्के की देखी  होगी शकल  
क्योंकि अपने पुरखों को कौन पूजता है आजकल
बस उनका 'सरनेम 'अपने नाम के साथ लगाते है 
वैसे ही लोग पैसा तो नहीं रखते ,
पर पैसेवाले कहलाते है 
वाह रे पैसे 
तूने भी बुजुर्गों की तरह ,
दिन देख लिए है कैसे कैसे 

मदन मोहन बाहेती ' घोटू '
आदरणीय  माताजी की प्रथम पुण्यतिथि पर

आज तुम्हारा मृत्यु पर्व माँ ,जब तुमने जग छोड़ा था
चली गयी तुम,रोता और विलखता ये दिल तोडा था
तुम बिन कितना सूनापन सा व्याप्त हो गया जीवन में
जब भी याद तुम्हारी आती  ,आँखें भरती  अंसुवन में
तुम थी तो घर में रौनक थी ,हलचल थी,उजियारा था
हम पर ममता की छाया थी ,संबल और  सहारा था
तेरे आँचल में खुशियां थी ,हम सब हँसते गाते थे
तेरे ही निर्देश हमेशा , सही दिशा  दिखलाते थे  
तूने हरदम हमें संभाला ,सुख दुःख में ढाढ़स बाँधा
रहे संतुलित ,रखी सुरक्षित,परिवार की मर्यादा
माता ,तेरी आशीषें ही ,जीवन सफल बनायेंगी
दुर्गम पथ कोआलोकित कर राह हमें दिखलायेगी  
तेरे आदर्शों पर चल कर ,हम जीवन निर्वाह करें
हिलमिल कर परिवार हमेशा ,सुखी रहे,यह चाह करें

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

रविवार, 8 दिसंबर 2019

जीवन -सात दिन का

सारा जीवन सात दिनों का ,पहले दो दिन बचपन के
तीन दिवस ऊर्जा परिपूरित ,कहलाते है यौवन के
छटे  दिवस तक ,ढीले पड़ते ,पुर्जे सारे इस तन के
आये बुढ़ापा दिवस सातवें ,हम तुम पड़ते ठन्डे है
ये  जीवन का सन्डे  है
संडे का  दिन छुट्टी का दिन ,काम नहीं आराम करो
बहुत थक लिये ,पिछले छह दिन ,अब थोड़ा विश्राम करो  
सुबह देर तक सोवो  प्रेम से और रंगीली शाम करो
अपनी सब चिंताएं छोडो आया असली 'फन डे ' है
ये जीवन का सन्डे है
हमें याद आते है वो दिन ,जब हम नौकरी करते थे
सन्डे की छुट्टी के खातिर ,कितना अधिक तरसते थे
कई काम सन्डे को, करने खातिर छोड़ा करते थे
काम पेन्डिंग सब पूरे कर ,हमने गाड़े झंडे है
ये जीवन का सन्डे है
यह  तो एक  आराम पर्व है हमको  ,यूं  न बिताना है
जितना भी बन सके ,दीन  दुखियों को सुख पहुँचाना है
बहुत कमाया धन जीवन में ,अब तो पुण्य कमाना है
मन को रमा ,राम में ,तजने सब हथकंडे है
ये जीवन का सन्डे है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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