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शनिवार, 13 जुलाई 2019

हे भगवान ,आप  इतने सोते क्यों हो ?

हे परमपिता ,आप तो सबके पालनकरता  है
आप ही  की कृपादृष्टि  से सबका पेट भरता है
हे जगन्नाथ
आप चौबीसो घंटे रहते हो ड्यूटी पर तैनात
निश्चित ही थक जाते होंगे
परेशान  हो कर पक जाते होंगे
इसलिए गर्मियों की फसल कट जाने के बाद ,
जब अन्न का भण्डारण हो जाता है घर घर
तब  थोड़े से बेफ़िकर होकर
आप भी सोचते होंगे ,अभी कम है काम
कर लू थोड़ा सा आराम
यही सोच कर हे कमल नयन
आप चले जाते है करने को शयन
ठीक है ,थोड़ा आराम तो वाजिब है ,
पर आप तो लेटते ही ऐसे सपनो में खोते है
कि एक दो दिन नहीं ,
देव शयनी एकादशी से ,देवउठनी  एकादशी तक,
पूरे चार माह तक सोते है
चार माह की लम्बी नींद ,
प्रभुजी ये तो 'टू मच 'है
कुम्भकरण भी इतना नहीं सोता होगा ,ये सच है
आप जैसा रिस्पोंसिबल देवता ,
क्या इतनी लम्बी नींद सोता है
क्या आपको पता है ,
आप जब सोते है ,क्या क्या होता है
आप जब सो जाते है
कोई भी शुभ काम नहीं हो पाते है
न शादी न विवाह
कंवारे भरते है आह ,
लोगों में असंतोष बढ़ता है
आपके सोने से ,
शादी करके साथ साथ सो सकने वाले ,
संभावित जोड़ों को अकेला सोना पड़ता है
जैसे स्कूल में  अध्यापक जब छुट्टी पर जाते है
 तो कक्षा के बच्चे मस्ती और मौज मनाते है
इसी तरह उधर आप  सोते है माह चार
लोग मनाते है खूब त्यौहार
गुरु लोग ,अपनी पूजा करवा लेते है
गुरुपूर्णिमा मना लेते है
और शिवशंकर ,
भक्तों से कांवड़ में भरवा कर गंगाजल
अपने ऊपर चढ़वा लेते है
  जल का भंडारण करवा लेते है
उधर आप शेषनाग की शैया पर सोये होते है ,
इधर नागपंचमी मन जाती है
हरियाले मौसम में हरियाली तीज आती है
मन जाता है रक्षाबंधन,भाईबहन के प्यार का त्योंहार
जन्मष्टमी को आप  ले लेते है कृष्णावतार
और राधाष्टमी को राधारानी भी प्रकट हो जाती है
पंद्रह दिन का श्राद्धपक्ष और
नौ दिन की नवरात्रि आती है
विजयादशमी को आपके अवतार राम ,
रावण का हनन करके सीता को छुड़ा लाते है
 शरद पूर्णिमा को आपके अवतार श्रीकृष्ण ,
गोपियों संग रास रचाते है
करवा चौथ पर सुहागिने व्रत कर के ,
अपने पति की लम्बी उमर का वरदान पाती है
और तो और आपकी पत्नी लक्ष्मीजी
आपको छोड़कर ,दीवाली पर ,
सबसे अपना पूजन करवाती है
अन्नकूट होता है ,सूर्यषष्ठी होती है
और गोवर्धन की भी पूजा होती है
मतलब हरदिन ,
कुछ न कुछ त्योंहार मनाये जाते है
आपके सोये रहने का  लोग पूरा मजा  उठाते है
हे  परमेश्वर ,हम सब आपकी संताने है
नित्य काम करते है और आराम भी करते है नित्य
यही प्रकति  का नियम है ,
तो हमारी समझ में नहीं आता ,
आपके चार माह लगातार सोने का औचित्य
आज जरूरी आपको ये बताना है
क्या ये आपकी कोई लीला है ,
या लक्ष्मीजी से पेअर दबवाने का बहाना है
ऐसे हालात होते क्यों है  
हे भगवान ,आप इतने दिन सोते क्यों है ?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

गुरुवार, 11 जुलाई 2019

कॉम्पिटिशन

समझ न पड़ता ,किस रस्ते पर ,आज जमाना आमादा है
काम  भले ही कम होता है ,पर कॉम्पिटिशन  ज्यादा  है
कल बीबीजी का खत आया ,दो पन्नो में ,सौ अक्षर थे
उनमे भी आधे से ज्यादा ,प्यारे प्रियतम या डिअर थे
उनकी एक मैरिड बहन है ,हुआ बरस भर ही शादी को
मगर  चीन से लड़ने के हित  बढ़ा रही है आबादी  को
तो मेरी उन सालीजी और बीबी में कॉम्पिटिशन  है
किसका पति ज्यादा अच्छा ,किसमें लेटर लिखने का फ़न है
सौ बार भले ही नाम हमारा लिखदो पर लम्बा हो लेटर
अबके से मैं ही जीतूंगी ,अबके से हारेगी सिस्टर
तो अब बढ़ गयी भैया ,कॉम्पिटिशन तगड़ा होगा
दूर तमाशा देखे मुर्गी ,अब मुर्गो में झगड़ा होगा
मैंने साफ़ लिख दिया उनको ,जो तुम झगड़ो चीज चीज में
तुम जानो और काम तुम्हारा जाने मैं क्यों पडूँ बीच में
आज बात लेटर की ही है ,जाने कल बाजी लग जाए
देखें उनमे अब से पहले ,मौसी किसको कौन बनाये
बात औरतों की है भैया कौन खबर कल फिर बढ़ जाए
वो जीते जो सबसे पहले ,फूटबाल की टीम बनाये
फिर भी बात मान बीबी की ,लम्बा खत लिखने बैठा हूँ
देती दूध गाय की लात सहूंगा ,बनिए का बेटा हूँ
क्षमा कीजिये श्रीमती जी ,यदि लेटर में कुछ गलती है
क्योंकि लम्बा खत लिखना है ,इसीलिये कविता लिख दी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
दो सौ दिन और दो सौ रातें


मुझको छोड़ अकेला घर में
गयी परीक्षा के चक्कर में
बीबीजी ने बी ए कर लिया ,पर आने का नाम नहीं था
इम्तहान मेरे धीरज का ,ये उनका इम्तहान नहीं था

उनके मन में डिग्री पाने की बस एक चाह थी केवल
मैंने उन्हें केजुअल छुट्टी ,दी थी एक माह की केवल
लेकिन बार बार एक्सटेंशन को उनने अप्लाय कर दिया
मेरे सभी तार और चिट्ठी ,को बस नो रिप्लाय  कर दिया
और कैजुअल छुट्टी को जब ,अर्नलीव  उनने कर डाला
एक बार यूं लगा पड़ गया है मेरी किस्मत पर ताला
मुझे न सिर्फ विरह की पीड़ा ,खाने की भी तो दिक्कत थी
सूना सूना घर लगता था  चली गयी घर की रौनक थी
लेकिन तीर धनुष से छूटा ,लौट आना आसान नहीं था
इम्तहान मेरे धीरज का ,ये उनका इम्तहान नहीं था

गए राम वनवास मगर क्या वो सीता को छोड़ सके थे
पांडव गलने गए ,द्रौपदी से पर क्या मुख मोड़ सके थे
किसको कौन छोड़ता है जी ,रावण जब सीता ले भागा
हुआ भयंकर युद्ध ,राम ने ,अरे समंदर भी था लांघा
लेकिन मेरा धीरज देखो ,देखो मेरी मर्यादा  को
रहा अकेला बिन बीबी के ,सात माह से भी ज्यादा को
सात माह किसको कहते है ,दो सौ दिन और दो सौ रातें
जी हाँ मैं इसका सबूत हूँ ,मैंने स्वयं अकेले काटे
सच बतलाना मुझको क्या यह ,मेरा त्याग महान नहीं था
इम्तहान मेरे धीरज का ,ये उनका इम्तहान नहीं था

कोई मेरे दिल से पूछे ,कैसे महीने सात गुजारे
मैं उन बिन कितना तड़फा हूँ ,रात गुजारी गिन गिन तारे
एक एक दिन महीने सा था ,बरस बरस सी रात लगी थी
प्राणप्रिया बिन जिया ,जिंदगी मुझको बड़ी अनाथ लगी थी
यही ख़ुशी है ,इस जुदाई में ,थोड़ा पैसा जोड़ सका हूँ
उनकी धमकी से न डर सकूं ,खुद को ऐसा मोड़ सका हूँ
वैसे भी मैं रहा लाभ में ,बनिए का  बेटा हूँ भाई  
गयी अकेली ,ब्याज सहित वो ,दो होकर के वापस आयी
यही मिला है फल धीरज का ,इसमें भी नुक्सान नहीं था
इम्तहान मेरे धीरज का ,ये उनका इम्तहान नहीं था

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बुधवार, 10 जुलाई 2019

रिश्ते

न तेरे हुस्न में बाकी वो करारापन है
न मुझमे बेकरारी और वो बावलापन है
होगये इतने बरस ,हमने निभाये रिश्ते ,
आज भी संग है,खुश है,भला ये क्या कम  है

बीच में कितने ही झगडे हुए ,तकरार हुई ,
हममे से कोई झुका अपना अहम छोड़ दिया
हमारे रिश्तों में जब जब पड़ी दरार कोई ,
उसे सीमेंट से समझौते की ले  जोड़ दिया
कभी ठन्डे थे कभी गर्म ,कभी बरसे  भी ,
अपने रिश्ते रहे ,जैसे बदलता  मौसम है
हो गए इतने बरस ,हमने निभाये रिश्ते ,
आज भी संग है ,खुश है ,भला ये क्या कम है

ख्वाइशें सभी के मन में हजारों होती है ,
नहीं जरूरी है कि सब की सब ही हो पूरी
कोई संतुष्ट नहीं रहता सदा जीवन में ,
कुछ न कुछ तो कहीं पे आ ही जाती मजबूरी
जो भी मिल जाए ,मुकद्दर समझ के खुश हो लो,
कभी है जिंदगी में खुशियां तो कभी गम है
हो गए इतने बरस ,हमने निभाए रिश्ते    ,
आज भी संग है ,खुश है भला ये क्या कम है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शुक्रवार, 5 जुलाई 2019

मन  की बात


साफ़ मैं कहता हूँ वो बात जो हक़ीक़त है ,
जो सही लगती  वही मन की बात करता हूँ
जेठ की चिलचिलाती धूप में और गरमी में ,
कभी भी मैं नहीं सावन की बात करता हूँ

झांकती रहती हो जब मोटे  मोटे  चश्मे से ,
कैसे कह दूँ ,नज़र के तीर तुम चलाती हो
कैसे बतलाऊँ घटा काली जुल्फ तुम्हारी ,
सफेदी उनमे अगर साफ़ नज़र आती हो
तुम्हारे होठों को शोला नहीं बता सकता ,
पसीने को नहीं सबनम की बात करता हूँ
साफ़ मैं कहता हूँ वो बात जो हक़ीक़त है ,
जो सही लगती वही मन की बात करता हूँ

कैसे कह दूँ तुम्हारी चाल है हिरन जैसी ,
दर्द है घुटने में और पाँव एक लचकता है
नहीं कह सकता कली ,पंखुड़ी पंखुड़ी बिखरी है ,
बुढ़ापा साफ़ तेरे अंगो से झलकता है
तुम्हारे चेहरे की सारी लुनाई गायब है ,
रहा ना अब बदन रेशम की बात करता हूँ
साफ़ मैं कहता हूँ वो बात जो हक़ीक़त है ,
जो सही लगती  वही मन की बात करता हूँ

कैसे कह दूँ कि तेरा जलवा कयामत होता ,
देख कर मुझको कभी तुमजो मुस्कराती हो
सच तो ये है कि जब भी गुस्सा तुम्हे आता है ,
आता तूफ़ान ,क़यामत तुम घर में ढाती हो
 तेरे दांतों को मैं मोती नहीं बता सकता    ,
 जीभ पर रखने नियंत्रण की बात करता हूँ
साफ़ कहता हूँ वो बात जो हक़ीक़त है
जो सही लगती वही  मन की बात करता हूँ

कैसे कह दूँ बड़ी मीठी है तुम्हारी  पप्पी ,
मैंने तो अब तलक पाया कभी मिठास नहीं
बदन तुम्हारा ये नमकीन तो है हो सकता
पसीने वाला बदन ,आता मुझको रास नहीं
इशारों पर तुम्हारे ,नाच मै नहीं सकता ,
इसलिए प्यार के बंधन की बात करता हूँ
साफ़ कहता हूँ वो बात जो हक़ीक़त है ,
जो सही लगती वही मन की बात करता हूँ


मदन मोहन बाहेती 'घोटू '


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