दो सौ दिन और दो सौ रातें
मुझको छोड़ अकेला घर में
गयी परीक्षा के चक्कर में
बीबीजी ने बी ए कर लिया ,पर आने का नाम नहीं था
इम्तहान मेरे धीरज का ,ये उनका इम्तहान नहीं था
उनके मन में डिग्री पाने की बस एक चाह थी केवल
मैंने उन्हें केजुअल छुट्टी ,दी थी एक माह की केवल
लेकिन बार बार एक्सटेंशन को उनने अप्लाय कर दिया
मेरे सभी तार और चिट्ठी ,को बस नो रिप्लाय कर दिया
और कैजुअल छुट्टी को जब ,अर्नलीव उनने कर डाला
एक बार यूं लगा पड़ गया है मेरी किस्मत पर ताला
मुझे न सिर्फ विरह की पीड़ा ,खाने की भी तो दिक्कत थी
सूना सूना घर लगता था चली गयी घर की रौनक थी
लेकिन तीर धनुष से छूटा ,लौट आना आसान नहीं था
इम्तहान मेरे धीरज का ,ये उनका इम्तहान नहीं था
गए राम वनवास मगर क्या वो सीता को छोड़ सके थे
पांडव गलने गए ,द्रौपदी से पर क्या मुख मोड़ सके थे
किसको कौन छोड़ता है जी ,रावण जब सीता ले भागा
हुआ भयंकर युद्ध ,राम ने ,अरे समंदर भी था लांघा
लेकिन मेरा धीरज देखो ,देखो मेरी मर्यादा को
रहा अकेला बिन बीबी के ,सात माह से भी ज्यादा को
सात माह किसको कहते है ,दो सौ दिन और दो सौ रातें
जी हाँ मैं इसका सबूत हूँ ,मैंने स्वयं अकेले काटे
सच बतलाना मुझको क्या यह ,मेरा त्याग महान नहीं था
इम्तहान मेरे धीरज का ,ये उनका इम्तहान नहीं था
कोई मेरे दिल से पूछे ,कैसे महीने सात गुजारे
मैं उन बिन कितना तड़फा हूँ ,रात गुजारी गिन गिन तारे
एक एक दिन महीने सा था ,बरस बरस सी रात लगी थी
प्राणप्रिया बिन जिया ,जिंदगी मुझको बड़ी अनाथ लगी थी
यही ख़ुशी है ,इस जुदाई में ,थोड़ा पैसा जोड़ सका हूँ
उनकी धमकी से न डर सकूं ,खुद को ऐसा मोड़ सका हूँ
वैसे भी मैं रहा लाभ में ,बनिए का बेटा हूँ भाई
गयी अकेली ,ब्याज सहित वो ,दो होकर के वापस आयी
यही मिला है फल धीरज का ,इसमें भी नुक्सान नहीं था
इम्तहान मेरे धीरज का ,ये उनका इम्तहान नहीं था
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
मुझको छोड़ अकेला घर में
गयी परीक्षा के चक्कर में
बीबीजी ने बी ए कर लिया ,पर आने का नाम नहीं था
इम्तहान मेरे धीरज का ,ये उनका इम्तहान नहीं था
उनके मन में डिग्री पाने की बस एक चाह थी केवल
मैंने उन्हें केजुअल छुट्टी ,दी थी एक माह की केवल
लेकिन बार बार एक्सटेंशन को उनने अप्लाय कर दिया
मेरे सभी तार और चिट्ठी ,को बस नो रिप्लाय कर दिया
और कैजुअल छुट्टी को जब ,अर्नलीव उनने कर डाला
एक बार यूं लगा पड़ गया है मेरी किस्मत पर ताला
मुझे न सिर्फ विरह की पीड़ा ,खाने की भी तो दिक्कत थी
सूना सूना घर लगता था चली गयी घर की रौनक थी
लेकिन तीर धनुष से छूटा ,लौट आना आसान नहीं था
इम्तहान मेरे धीरज का ,ये उनका इम्तहान नहीं था
गए राम वनवास मगर क्या वो सीता को छोड़ सके थे
पांडव गलने गए ,द्रौपदी से पर क्या मुख मोड़ सके थे
किसको कौन छोड़ता है जी ,रावण जब सीता ले भागा
हुआ भयंकर युद्ध ,राम ने ,अरे समंदर भी था लांघा
लेकिन मेरा धीरज देखो ,देखो मेरी मर्यादा को
रहा अकेला बिन बीबी के ,सात माह से भी ज्यादा को
सात माह किसको कहते है ,दो सौ दिन और दो सौ रातें
जी हाँ मैं इसका सबूत हूँ ,मैंने स्वयं अकेले काटे
सच बतलाना मुझको क्या यह ,मेरा त्याग महान नहीं था
इम्तहान मेरे धीरज का ,ये उनका इम्तहान नहीं था
कोई मेरे दिल से पूछे ,कैसे महीने सात गुजारे
मैं उन बिन कितना तड़फा हूँ ,रात गुजारी गिन गिन तारे
एक एक दिन महीने सा था ,बरस बरस सी रात लगी थी
प्राणप्रिया बिन जिया ,जिंदगी मुझको बड़ी अनाथ लगी थी
यही ख़ुशी है ,इस जुदाई में ,थोड़ा पैसा जोड़ सका हूँ
उनकी धमकी से न डर सकूं ,खुद को ऐसा मोड़ सका हूँ
वैसे भी मैं रहा लाभ में ,बनिए का बेटा हूँ भाई
गयी अकेली ,ब्याज सहित वो ,दो होकर के वापस आयी
यही मिला है फल धीरज का ,इसमें भी नुक्सान नहीं था
इम्तहान मेरे धीरज का ,ये उनका इम्तहान नहीं था
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '