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रविवार, 23 जून 2019

बचपन की यादें

हमें बचपन की वो बातें सुहानी याद आती है
बेफिकर छुट्टी गरमी की मनानी याद आती है  
जहाँ हम खेलते  थे कंचे और लट्टू घुमाते थे ,
पेड़ की छाँव, वो पीपल पुरानी याद आती है
वो पानी के पताशे ,आलू टिक्की ,दही के भल्ले ,
चाट वो भरती  थी जो मुंह में पानी ,याद आती है
तली जो देशी घी में ,चासनी में डूब इतराती ,
जलेबी वो रसीली और सुहानी याद आती है
तपिश मुंह की मिटाते ,रंगबिरंगे बर्फ के गोले ,
मलाई दूध की कुल्फी जमानी याद आती है
चौकड़ी खेलते थे रोज पत्ते पीसते जिसके ,
हमें वो ताश की  गड्डी ,पुरानी याद आती है
कभी हम तोड़ते थे दूर से ही मार कर पत्थर ,
कभी वो पेड़ पर चढ़ ,जामुन खानी याद आती है
कोई कपडा न बचता ,जिसपे ना हो आम के धब्बे ,
रोज वो डाट  हमको माँ की खानी याद आती है
हमारे हाथ में पकड़ाती थी चुपके से दुअन्नी ,
उमड़ता प्यार आँखों में ,वो नानी याद आती है
वो छत पर पागलों सा भीगना ,बरसात होने पर ,
नाव कागज़ की ,पानी में तैरानी याद आती है
वो लंगड़े भूत के किस्से ,जिन्हे सुनसुन के डर लगता,
चाव से सुनते दादी की ,कहानी याद आती है  
झपकते ही पलक ,छुट्टी का मौसम बीत जाता था ,
खुलते स्कूल ,बढ़ती परेशानी  याद आती है

घोटू 

शनिवार, 22 जून 2019

अनोखा प्यार

प्यार लैला ने मजनू से  किया
शीरी ने फरहाद से किया
सोहनी ने महिवाल से किया
इन सबका प्यार था लाजबाब
फिर भी ये मिलने में रहे नाकामयाब
एक दुसरे से सदा के लिए दूर हो गए
पर उनके प्यार के किस्से मशहूर हो गए
प्यार राधा ने कृष्ण से किया ,
पर पूरी नहीं हो पायी उसकी चाह
कृष्णजी ने उसे छोड़ ,
आठ आठ पटरानियों से किया विवाह
और सभी के साथ ,
कुशलता से किया था निर्वाह
एक पति द्वारा कई पत्नियों को रख पाना
राजा रजवाड़ों का प्रचलन है पुराना
मुस्लिम धर्म में भी वाजिब है तीन निकाह
पर हिन्दू कानूनन कर सकते है एक ही विवाह
क्योंकि हमने जन्म से पाए है ऐसे संस्कार
चाहते न चाहते हुए भी ,
एक पत्नी के साथ जिंदगी देते है गुजार
पर एक पत्नी के कई पति होना ,
ऐसा किंचित ही होता पाया था
वो तो महाभारत काल में ,
एक मात्र द्रौपदी थी ,
जिसने पांच पांच पतियों का साथ ,
बखूबी निभाया था
पर हमारे जीवन में आज भी एक अद्भुत मिसाल है
एक नाजुक सी मुलायम पत्नी ,
जिसे अपने बत्तीस पतियों से प्यार है
सभी पति सख्त है ,बाँध कर रखते है ,
उसे अपने घेरे में  
बेचारी मुश्किल से ही निकल पाती है ,
कभी नहीं रह पाती अकेले में
पर फिर भी उनका प्यार है  बेमिसाल
ये सब रखते है एक दुसरे का कितना ख्याल
आप यकीन कीजिये मेरी बातों का
ये किस्सा है आपकी जिव्हा और बत्तीस दाँतों का


ये बत्तीस पति बेचारे ,
मेहनत कर ,खाना चबाने के बाद
अपनी नाजुक पत्नी जिव्हा को ,
देते है खाने का पूरा स्वाद
अपनी प्यारी पत्नी को खिलाते है ,
खुद नहीं चखते है
देखो अपनी पत्नी का कितना ख्याल रखते है
नाजुक से प्यारी पत्नी के प्रति
बहुत प्रीत है उनके मन में
पत्नी चंचल और बातूनी है ,
रखते है उसे अपने नियंत्रण में
ख्याल रखते है उसका पल पल
सख्त है ,औरों को चुभते भी है ,
पर बीच में रहती हुई पत्नी को ,
कभी भी नहीं करते घायल
पत्नी भी अपने पतियों पर ,
लुटाती है ढेर सारा प्यार
सभी का रखती है पूरा पूरा ख्याल
कहीं से भी कोई कतरा दाँतों में यदि फंसता है
तो वह जिव्हा के मन को बहुत खटकता है
बार बार जा जा कर ,धकेलती है उसे बाहर
कैसे भी निकल जाय ,करती है कोशिश जी भर
ये उसका ,अपने पतियों के प्रति ,
सच्चे प्रेम का परिचायक  है
पति और पत्नी ,दोनों ही कितने लायक है
हम पति पत्नियों को भी ,
इनसे कुछ सबक लेना चाहिए
एक दुसरे की तरफ पूरा ध्यान देना चाहिए

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
तुझको छूकर

तुझको छूकर सारे दर्द भुला देता मैं
तुझको छूकर ,मौसम सर्द भुला देता मैं
तुझको छूकर ,मन मेरा हो जाता चंचल
तुझको छूकर ,तन में कुछ हो जाती हलचल
तुझको छू कर ,मुझे सूझती है शैतानी
तुझ छूकर ,करने लगता ,मैं मनमानी
मादक तेरी नज़रें जब मुझसे मिलजाती
हो जाता है मेरा मन ज्यादा  उन्मादी
और छुवन जब ,मिलन अगन बन लगती जलने
साँसों के स्वर ,जोर जोर से लगते चलने
पहुंच शिखर पर ,जब ढल जाती ,सब चंचलता
छा जाती है तन में मन में एक शिथिलता
थम जाता सारा गुबार ,उफनाते तन का
ऐसे ही तो होता है बस  अंत छुवन का

घोटू    
         राजनीती का चलन

मैं  रख्खुँ  ख्याल तुम्हारा ,तुम मेरा ख्याल रखो
तारीफ़ करे जो अपनी ,कुछ चमचे पाल रखो
हम राजनीती चमकायें ,रह कर के अलग दलों में
टोपी सफ़ेद मैं पहनू ,तुम टोपी लाल  रखो

हम एक दुसरे दल के ,हो खुले आम आलोचक
पर आपस में मिल जाएँ ,यदि सिद्ध हो रहा मतलब
पाँचों ऊँगली हो घी में ,जब ऐसा मौका  आये ,
तुम आधा माल मुझे दो खुद आधा माल रखो        
मैं रख्खुँ ख्याल तुम्हारा ,तुम मेरा ख्याल रखो

हम तुम दोनों के दल में ,कोई भी हो पावर में
लोगों का काम करा कर ,बरसायें लक्ष्मी घर में
कोई भी घोटाले में ,ना आये नाम किसी का ,
ये लूटपाट का धंधा ,कुछ सोच सम्भाल रखो
मैं रख्खुँ ख्याल तुम्हारा ,तुम मेरा ख्याल रखो

है कमी कौन इस दल की उस दल की भी कमजोरी
थोड़ी तुमको मालुम है ,मालुम है मुझको थोड़ी
हम इसका लाभ उठायें ,ऊँचे पद पर चढ़ जाये ,
जब जरूरत हो मैं सीधी ,तुम उलटी चाल  रखो
मैं  रख्खुँ ख्याल तुहारा ,तुम मेरा ख्याल रखो

मदन मोहन बाहेती ;घोटू ' 
एक ऐसा भी हो रविवार

एक ऐसा भी हो रविवार
दिन भर हो मस्ती ,प्यार प्यार
रत्ती भर भी ना काम करें
बस हम केवल आराम करें
इतनी सी इस  दिल की हसरत
पूरा दिन फुरसत ही फुरसत
जब तक इच्छा ,तब तक सोयें
सपनो की दुनिया  में  खोयें
हों चाय ,पकोड़े ,बिस्तर पर
घर  बैठें मज़ा करें  दिन भर
ना जरुरत जल्द नहाने की
ना फ़िक्र हो दफ्तर जाने की
रख एक रेडियो ,सिरहाने
बस सुने पुराने हम गाने
या बैठ धूप में हम छत पर
हम खाये मूंगफली तबियत भर
या बाथरूम में चिल्ला कर
गाना हम गायें ,जी भर कर
मस्ती में गुजरे दिन सारा
मिल जाय प्यार जो तुम्हारा
सोने में सुहागा  मिल जाए
हमको मुंह माँगा मिल जाए
तुम मुझमे ,मैं तुम में खोकर  
बस  एक दूसरे के होकर
हम उड़े एक नयी दुनिया में
एक दूजे की बाहें थामे
जो इच्छा हो, खाये  पियें
एक दिन खुद के खातिर जियें
कम से कम महीने में एक बार
एक ऐसा भी हो रविवार
भूलें सब चिंता और रार
दिन भर बरसे बस प्यार प्यार

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '





 



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