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मंगलवार, 21 अगस्त 2018

कब सुधरेंगे 

आरोप और प्रत्यारोपों का ,फैला गंद ,छंटेगा कब तक 
टांग खींचना ,एक दूजे की ,होगा बंद ,हटेगा  कब तक 
सत्ता के चक्कर में कब तक ,कौरव पांडव युद्ध करेंगे 
हरेक बात पर ,छेड़छाड़ कर,एक दूजे को क्रुद्ध करेंगे 
कब तक भाईचारा यूं ही ,बिखरेगा हो टुकड़े, टुकड़े 
इस उलझन में ,कौन करेगा ,दूर हमारे ,सबके दुखड़े 
इतने झगड़े ,दंड फंद कर ,भाईचारा ,खाक मिलेगा 
इस कानूनी दांवपेंच में ,कुछ भी नहीं ,तलाक़ मिलेगा 
क्यों न हमें सदबुद्धि आती ,क्यों हम इतने सत्ता लोलुप 
क्यों न कोई इनको समझाता ,क्यों बैठे है सब के सब चुप 
बहुत हो चूका ,बंद करो ये नाटक ,मत फैलाओ भ्रान्ति 
हमें प्रगति ,सदभाव चाहिए ,आवश्यक  है घर में शांति 
ये आपस की कलह ,सुलह में ,जब  बदलेंगे,तब ये होगा 
सुर बदलेंगे,आपस में हम ,गले मिलेंगे ,तब ये होगा 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

आओ ,फटे हुए रिश्तों को सिये 

आओ हम तुम ,हंसीख़ुशी का जीवन जियें 
मिलजुल बैठें ,फटे हुये ,रिश्तों  को सियें 

सुई तीखी ,तेज, नज़र हमको आती है 
देती पीड़ा ,दर्द ,चुभोई  जब जाती  है 
किन्तु सुई वोही चुभती जब बन इंजेक्शन 
रोग मिटाती ,पीड़ा हरती ,है भेषज  बन  
काँटा जब चुभ जाता ,होती पीर भयंकर 
सुई से ही वो काँटा  निकला करता ,पर 
करें सही उपयोग ,ख़ुशी का अमृत पियें 
मिलजुल  बैठें ,फटे हुये ,रिश्तों को सियें 

धागा अगर प्रेम का सुई संग  जुड़ जाता 
तो फिर उसके तीखेपन का रुख मुड़ जाता 
सी कर फटे हुये वस्त्रों को जोड़ा करती 
अगर छिद्र हो ,उसे रफू करके वो भरती 
सुई ने कपडे सी, हमको सभ्य बनाया 
पर हम करते ,सुई चुभो कर ,मज़ा उठाया 
थोड़ा सुधरें ,दूर करें अपनी भी कमियें 
मिलजुल बैठें ,फटे हुये रिश्तों को सियें 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

सोमवार, 20 अगस्त 2018

बात मुझसे मत करो 

बुढ़ापे में लड़कपन की ,बात मुझसे मत करो 
जवानी ,बेधड़कपन की,बात  मुझसे मत करो 
उमर  की चाय में डूबे ,लुगलुगे अब  होगये  ,
बिस्कुटों के कड़कपन की ,बात मुझसे मत करो 
गिल्ली डंडा खेलने के दिन पुराने लद गये ,
खेलते थे जब दनादन ,बात मुझसे मत करो 
चटकती कलियाँ थी जिन पर मंडराती थी तितलियाँ ,
महकते से उस चमन की ,बात मुझसे मत करो 
निकलते तो खिड़कियों से झांकती थी लड़कियां ,
हमारे उस बांकपन की ,बात मत मुझसे करो 
लिपट  जिससे होंश खोते ,होते थे मदहोश हम,
महकते चंदन बदन की ,बात मत मुझसे करो 
आया कब और पंख फैला कब अचानक उड़ गया ,
बीत कैसे गया यौवन ,बात मत मुझसे करो 
संग थे खुशिया  बरसती ,और सुखी परिवार था , 
बिखरों  के बेगानेपन की ,बात मुझसे मत करो 
कहीं पर ईंटे है टूटी ,कहीं उखड़ा पलस्तर ,
खंडहर होते भवन की ,बात मुझसे मत करो 
ना तो समिधाएं बची है और ना है  आहुति ,
पूर्ण  होते इस हवन की ,बात मत मुझसे करो 


मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बस इतना प्यार मुझे देना 

इतना भी प्यार न चाहूं मैं ,जिसको न सकूं मैं रख  संभाल 
इतना न उपेक्षित भी करना ,कि देना निज मन से निकाल 
मेरे तो लिए यही बस है ,कि  डालो  तुम मुझ पर प्रेमदृष्टी 
ना  तो मैं चाहूँ  अतिवृष्टी  ,ना  मुझे चाहिए  अनावृष्टी 
बस प्रेम भरी रिमझिम बारिश ,सिंचित मेरा तनमन करदे 
बस इतना प्यार मुझे देना  जो रससिक्त जीवन कर दे 

ना प्यार चाहिये उदधि सा विस्तृत,उसमे  है  खारापन 
जिसमे हो ज्वार  कभी भाटा,घटता बढ़ता लहरों का मन  
जो चाँद देख कर घटे बढे ,उठ उठ कर लौट जाए लहरे 
नदियों के जल का मीठापन ,उससे मिलने पर ना ठहरे 
ना प्यार कूप जैसा सीमित,ना हो विशाल वह सागर सा 
मीठाजल,सीमित प्रेमपाश ,मैं चाहूँ प्यार सरोवर सा 

ना सीमित नदी सा तटों बीच  ,ना कभी बाढ़ बन कर उमड़े 
ना सूख बहे एक धारा सा  , कूलों  से इतना  जा बिछड़े 
मैं चाहूँ सरस सलिल सरिता ,कलकल करके बहती जाये 
जिसमे मेरी जीवन नैया ,मंथर गति  चलती  मुस्काये  
यह मोड़ उमर का ऐसा है ,तुम पस्त और मैं भी हूँ थका
बस एक चुंबन ही प्यार भरा ,निशदिन तुम देना मुझे चखा  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
सच ,हम कितने बेसबरे है 

हमने जो कुछ भी पाया है ,उससे भी ज्यादा पाने को 
मौकापरस्त है ,मौका पा ,जल्दी से उसे भुनाने को   
कच्ची केरी का पाल लगा ,जल्दी से  आम बनाने को 
अपने सारे संबंधों का ,जी भर कर लाभ उठाने  को 
करते गड़बड़ी ,हड़बड़ी में ,करते प्रयास अधकचरे है 
सच हम कितने बेसबरे है 
किस्मत ने जितना दिया हमें ,उससे ना है संतोष हमे 
औरों को आगे बढा  देख ,मन में आता है  रोष  हमें 
हम भी कुछ कर दिखला ही दे ,आने लगता है जोश हमे 
पर नहीं सफलता जब मिलती ,तो आता है आक्रोश हमें 
और अपना रौब दिखाने को ,हम बनने लगते जबरे है 
सच हम कितने बेसबरे है 
हम आज बीज बो ,फल पाने ,कल से अधीर हो जाते है 
कितना ही सींचों रोज रोज ,फल मौसम में ही आते है 
कितने ही लोग प्रगतिपथ पर ,नित नित रोड़े अटकाते है 
बाधा से लड़ ,धीरे धीरे ,हम  निज  मंजिल को पाते है  
इस धूपछांव के जीवन में ,हम बन जाते चितकबरे है 
सच हम कितने बेसबरे है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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