मिलन की आग
जगमगाती हो दिलों में ,प्यार की जब रौशनी,
अन्धेरा हो या उजाला ,फर्क कुछ पड़ता नहीं
भले दीपक रहे जलता ,या बुझाया जाय फिर,
मिलन की अठखेलियों में ,फर्क कुछ पड़ता नहीं
दिल के अंदर जब सुलगती हो मिलन की आग तो. ,
रात दिन ना देखता है,नहीं मौसम देखता
गमगमाता पुष्प हो तो प्यार में पागल भ्र्मर ,
डूबता रसपान में ,ना मुहूरत ,क्षण देखता
स्वयं ही होता समर्पण ,हो मिलन का जोश जब ,
होश रहता कब किसी को ,फर्क कुछ पड़ता नहीं
जगमगाती हो दिलों में प्यार की जब रौशनी,
अँधेरा हो या उजाला ,फर्क कुछः पड़ता नहीं
डूबता जब प्यार में तो भूल जाता आदमी ,
देखती है चाँद ,तारे और सूरज की नज़र
प्रेम लीला में रंगीला होता है वो इस कदर ,
डूबता अभिसार में है ,पागलों सा बेखबर
इस तरह अनुराग की वह आग में है झुलसता ,
मस्त होकर पस्त होता ,फर्क कुछ पड़ता नहीं
जगमगाती हो दिलों में,प्यार की जब रौशनी,
अन्धेरा हो या उजाला फर्क कुछ पड़ता नहीं
मदन मोहन बाहेती'घोटू'