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शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

पति के जन्मदिवस पर

पति के जन्मदिवस पर

अगर आज का दिन ना होता ,
जन्म आपका ना हो पाता
तो फिर कोई पुरुष दूसरा ,
शायद मेरा पति कहलाता
हो सकता है तुम सा हंसमुख ,
और रंगीन मिजाज न होता
अपनी पत्नी को खुश रखने ,
का तुम सा अंदाज न होता
हो सकता है नहीं नाचता ,
तुम सा ,एक इशारे भर पर
और तुम सा शायद ना रखता ,
मुझे बिठा कर ,अपने सर पर
तो फिर थोड़े से ही दिन में ,
जब चल जाता मेरा जादू
अपनी सारी भूल हेकड़ी ,
वो आ जाता मेरे काबू
'यस सर ' जो सुनता दफ्तर में ,
पर घर पर 'यस मेडम'कहता
छोटे मोटे हर कामो में ,
मुझ पर सदा आश्रित  रहता
तुम जैसे आज्ञाकारी पति तो,
अब मिलते ही है मुश्किल से
जो पत्नी की ख़ुशी देख कर,
खुश होते है सच्चे दिल से
तुम कितने प्यारे ,भोले हो ,
मेरी मन माला के मोती
वो अच्छा भी हो सकता था ,
लेकिन तुमसी बात न होती
हो सकता है कि वह थोड़ा ,
चालू और उच्श्रंखल  होता
ताक झाँक कर दिल बहलाता ,
 मन का थोड़ा चंचल होता
तो मै ऐसी नाथ ,नाथती ,
कर ना पाता ,बात फालतू
और धीरे धीरे बन जाता ,
तुम्हारी ही तरह पालतू
निज कमाई ,सारी की सारी ,
सीधा मुझको ला पकड़ाता
मेरा सच्चा अर्द्धांगी बन ,
काम काज में हाथ  बटाता
तुम जैसा सीधा ,शरीफ ना,
यदि वो टेढ़ा मेढ़ा  होता
तो फिर त्रियाचरित दिखला कर,
मैंने उसे उधेड़ा  होता
तुम सा भोलाभाला  ना हो ,
कोई सिरफिरा जो मिल जाता
तो महीने दो महीने में ही ,
दे तलाक ,मै करती टा टा
ज्यादा ही बिगड़ैल किसम का,
यदि मिल जाता जीवनसाथी
तो दहेज़ के उत्पीड़न का ,
ठोक मुकदमा,जेल भिजाती
उसके साथ ,सात फेरे खा,
मै जीवनभर उसे घुमाती
शादी से तौबा कर लेता ,
उसको ऐसा पाठ पढ़ाती
 मेरा कहना नहीं मानता ,
सुख से सांस नहीं ले पाता
यदि जो कोई पुरुष दूसरा ,
यदि जो मेरा पति बन जाता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नारी ,तेरे रूप अनेक

नारी ,तेरे रूप अनेक

सुबह सुबह भ्रमण और व्यायाम
फिर योग क्रियाएं और प्राणायाम
दुबली पतली,अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत
 चिरयौवना , नारी तेरे रूप अनेक
एक हाथ में बच्चे की ऊँगली थामे
दूसरे हाथ से देती उसे कुछ खाने
बस पकड़ाने भागती,टांग स्कूल का बेग
ममतामयी माँ,नारी तेरे रूप अनेक
घर की सफाई और सुन्दर सजाना
स्वादिष्ट नाश्ता और भोजन बनाना
सबको खिलाना और करना घर की देख रेख
कुशल गृहणी ,नारी तेरे रूप अनेक
बूढ़े सास ससुर की सेवा और सम्भाल
घर के  सदस्यों का रखना पूरा ख्याल 
 मृदुल व्यवहार करती हुई,कुशल  और नेक
आदर्श बहू ,नारी तेरे रूप  अनेक
हर समस्या में पति को सही सलाह देना
परिवार हित में ,सदा उचित निर्णय लेना
तन मन से  पूर्ण समर्पण  ,निष्ठां  और विवेक
सच्ची सलाहकार ,नारी तेरे रूप अनेक
रात को सजीधजी ,रम्भा सी रमणी
पति की परमप्रिया ,प्रेममयी पत्नी
पति पर अपना प्यार लुटाती हुई विशेष
अभिसारिका,नारी तेरे रूप अनेक

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शुक्रवार, 8 जुलाई 2016

ये उन दिनों की बात है

ये उन दिनों की बात है

ये उन दिनों की बात है
जब रेडियो  पर हर बुधवार
बिनाका गीतमाला सुनता था सारा परिवार
फिर आये विविध भारती के  फ़िल्मी गाने
सुनने लगे हम सब ,होकर दीवाने
फिर गले में लटकाने  वाला ट्रांजिस्टर आया
नयी क्रांति लाया
फिर 'टू इन वन '
ने बदल डाला जीवन
छोटे छोटे कैसेटों में कितने ही गीत
लेते थे दिल को जीत
और फिर जब टीवी आया तो घरों  की,
छतों पर ,एंटीना सर उठाने लगे  
'कृषिदर्शन  से चित्रहार तक ,
सब टीवी से चिपके नज़र आने लगे
ये उन  दिनों बात है
जब टेलीफोन के काले चोगे ,
आदमी का स्टेटस दिखाते थे
डायल के छिद्रों में ,उँगलियों से ,
नंबर घुमाते घुमाते ,हम थक जाते थे
फिर भी मुश्किल से ही लाइन मिल पाती थी
टेलीफोन की घंटी  आवाज ,कितना लुभाती थी
फिर पेजर
 कुछ दिनों आया नज़र
पर जब से मोबाइल आया है
सबके मन भाया  है
ऐसी क्रांति छा  गई  है
कि दुनिया मुट्ठी में आ गई है
रोज रोज  परिवर्तन ,
जिंदगी को संजोते गए
दुनिया तरक्की करती गई ,
और हम बूढ़े होते गए
ये उन दिनों की बात है
जब गाँव में जगह जगह लाल डब्बे ,
मुंह खोले नज़र आते थे
जिनमे चिट्ठी डाल ,हम अपने
परिचितों को  संदेशे पहुंचाते थे
उनदिनों एक बहुप्रतीक्षित इंसान ,
रोज रोज आता था
खाकी वस्त्र पहने ,वो डाकिया कहलाता था
जब वो प्रेमपत्र और संदेशे लाता था
दिल को कितना आनंद पहुंचाता था
वो लिफ़ाफ़े में खुशबू  भरे खत
वो पैगामे मोहब्ब्त
जिन्हे बार बार चूम ,पढ़ा जाता था
मन को कितना सुहाता था
ये उन दिनों की बात है
जब न मोबाइल होता था
न ईमेल होता था
न व्हाट्सएप था ,
न चेटिंग का खेल होता था
दिन भर में पचासों बार
अपनी महबूबा को दिखलाना प्यार
और मोबाईल पर लाइव तस्वीर का दीदार
इतनी जानी पहचानी सी लड़की से ,
जब होता है विवाह
तो प्यार और हनीमून का सारा थ्रिल ,
हो जाता है तबाह
हम खुशनसीब है कि हम,
 उस जमाने में पैदा हुए थे
जब रेडिओ की सुई सेट करके ,
गाने सुने जाते थे
जब हम चूड़ी का बाजा बजाते थे
 जब कि छत पर चढ़ कर,
 एंटीना सेट किया जाता था
जिससे  साफ़ पिक्चर नज़र आता था
जब फोन का डायल घुमाते ,
थक जाया करती थी उँगलियाँ
जब पोस्टमेन का लाया लिफाफा ,
जीवन में भर देता था रंगीनियाँ
 आज भी मै जब वो पुराने ,सहेजे हुए ,
प्रेमपत्र पढ़ता हूँ तो नथुनो में ,
वो पुराने प्रेम की महक भर जाती है
वो भूली हुई दास्ताँ ,फिर से ज़िंदा हो जाती  है
और ये जब भी पढ़ता हूँ,बार बार  होता है
मुझे फिर से अपने प्यार  की याद आती है
वरना आज के युग में तो ,कल की की हुई चेटिंग ,
आज डिलीट हो जाती  है

मदन मोहन 'बाहेती 'घोटू'

मुझको कभी 'डिलीट' न करना

              मुझको कभी 'डिलीट' न करना

 मीठे मीठे ख्वाब दिखा कर ,देखो मुझको 'चीट 'न करना
मुझ से आँख फेर मत लेना,बेगानो  सा  'ट्रीट '  न करना
मुझे नहीं 'ईमेल' भेजना  ,और भले ही 'ट्वीट' न  करना
फेस 'फेसबुक'पर दिखला कर ,'व्हाट्सएप'पर'ग्रीट 'न करना
बचपन वाली प्यार मोहब्ब्त ,फिर से  भले 'रिपीट ' न करना
लेकिन अपनी 'मेमोरी' से ,मुझको कभी  'डिलीट' न  करना 

घोटू

बुधवार, 6 जुलाई 2016

भगवान का ज्ञान

     भगवान का ज्ञान

वो भगवान का बड़ा भक्त था
पूजापाठ और सेवा में रहता अनुरक्त था
रोज नहा धोकर ,मंदिर जाता था
बड़े विधिविधान से पूजा कर ,भजन जाता था
भगवान की मूरत पर,चढ़ावा चढाता था
नवरात्रों में भंडारा करवाता था
ख़ुशी खुशी सब खर्चा ,खुद ही उठाता था
देख कर के उसकी सेवाभाव का प्रदर्शन
एक दिन अचानक,प्रकट हो गए भगवन
बोले वत्स,तू जो ये मंदिर में ,
इतनी सेवाभाव दिखाता है
बोल क्या चाहता है ?
भक्त बोल प्रभु ,आपने ही मुझे बनाया है
आज मै जो कुछ हूँ,आपकी ही माया है
ये जो थोड़ा बहुत चढ़ावा चढ़ा ,
मैं आपका अभिनंदन कर रहा हूँ
ये सब तुम्हारा ही दिया हुआ है ,
तुम्ही को अर्पण कर रहा हूँ
 पूजा कर रहा हूँ,आपके गुण गा रहा हूँ 
अपने निर्माता के प्रति ,
अपना कर्तव्य निभा रहा हूँ
आपका आशीर्वाद और कृपा चाह रहा हूँ
भगवान बोले वत्स ,
तू मंदिर में मुझे रोज माथा नमाता है
पर ये भूल जाता है
मैंने तो पूरे संसार का निर्माण किया है ,
पर तेरा एक और निर्माता है
वो तेरे पिता और माता है
क्या तूने कभी अपने ,
उन निर्माता का भी ख्याल किया है
जिन्होंने तुझे जनम दिया है
रोज रोज मंदिर में मुझे  पूजता है
क्या अपने बूढ़े माँ बाप के पास बैठ ,
दो मिनिट भी उनके हालचाल पूछता है
मेरी पत्थर की मूरत पर, परशाद चढाता है
और उन्हें दाने दाने को तरसाता है
तूने कितनी ही बार मुझ पर पोशाक चढ़ाई
पर क्या अपने पिताजी  के लिए ,
एक कमीज भी बनवाई
तुझे पता भी है कि उनके कपड़े,
कितने पुराने  और बदरंग हो रहे है
वो कितने फटेहाल है और तंग हो रहे है
तूने रोज  रोज मुझ पर कितने रूपये चढ़ाए है
क्या अपने माँ बाप को ,जेब खर्च के लिए ,
सौ रूपये भी पकड़ाए है
मातारानी की मूरत पर कितनी चूनर चढाता है
क्या कभी अपनी माँ के लिए ,
एक नयी साडी भी लाता है
तूने मुझपर चांदी का छतर चढ़ाया है
पर क्या कभी तुझे अपने पिताजी की ,
जीर्णशीर्ण छतरी बदलने का भी ख्याल आया है
तेरे माता पिता ,
जो है जीवित देवता,
उनकी उपेक्षा कर रहा है
और मुझ पत्थर की मूरत से ,
कृपा की अपेक्षा कर रहा है
 मैं तो पत्थर की मूरत  हूँ ,
न तेरा चढ़ावा मेरे काम का है,
न मैं तेरा चढ़ाया परशाद खाऊंगा  
अरे मूरख ,अपने बूढ़े माँ बाप की सेवा कर ,
अगर वो प्रसन्न होंगे ,
मैं अपने आप प्रसन्न हो जाऊँगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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